Jamshedpur (Ashok Kumar) : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू का कहना है कि अगर पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासियों के सुपुर्द नहीं किया गया तो उसे बाबरी मस्जिद की तरह ध्वस्त किया जायेगा. ऐसा करने के लिये खुद आदिवासी मजबूर होंगे. हमारे ईश्वर-मरांग बुरु, हमारा प्रकृति धर्म-सरना धर्म और हमारी धार्मिक और प्राकृतिक आस्था और विश्वास पर किसी की ओर से चोट करना, अब हम आदिवासी और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. मरांग बुरु हमारे लिए राम मंदिर से कमतर नहीं है. राम मंदिर आंदोलन की तरह मरांग बुरु आंदोलन भी आक्रमक हो सकता है. यदि केंद्र, राज्य सरकार तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अविलंब वार्तालाप कर समाधान की पहल नहीं करती है तो बाबरी मस्जिद की तरह जैन मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आदिवासी मजबूर हो सकते हैं. चूंकि मरांग बुरु पर पहला अधिकार हम आदिवासियों का है. जैनों का नहीं है. अन्ततः 11 फ़रवरी 23 से सेंगेल की ओर से आहूत रेल रोड चक्का जाम जोरदार होगा.
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हाई कोर्ट ने 2002 को 1932 के खतियान को किया था खारिज
झारखंड अलग राज्य बने पूरे 22 साल हो गये हैं बावजूद किसी भी सरकार ने स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीति को स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं कर पायी है. अंततः झारखंडी शिक्षित बेरोजगारों के साथ घोर अन्याय हुआ और हो रहा है. अब 1932 के खतियान का अटक-लटक जाना स्वभाविक था. चूंकि पहले भी झारखंड हाई कोर्ट की ओर से यह 27 नवंबर 2002 को खारिज किया जा चुका है.
प्रखंडवार नियोजन नीति लागू हो
किसी भी अन्य राज्य में खतियान आधारित स्थानीयता नीति नहीं है. स्थानीयता का जायज आधार स्थानीय भाषा-संस्कृति और स्थानीय जातिगत सूची (उपराष्ट्रीयता की अवधारणा) हो सकता है. किन्तु सोरेन परिवार को जनहित से ज्यादा वोट और नोट की फिक्र है. अतः झारखंडी जन को रोजगार देने से ज्यादा 1932 के खतियान को हौवा बनाकर उन्हें जनता को ब्लैकमेल करना और झुनझुना थमाना पसंद है. खतियान कभी भी लागू नहीं हो सकता है. अतः झारखंडी जन को रोजगार के लिए “प्रखंडवार नियोजन नीति” को लागू करने के आंदोलन को तेज करना चाहिए. अन्यथा नवयुवकों का बर्बाद होना तय है.
90 फीसदी हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को मिले
झारखंड सरकार के पास उपलब्ध सभी सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों का 90% भाग ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाए. तत्पश्चात आबादी के अनुपात से प्रखंडवार कोटा तय किया जाए. फिर प्रखंड विशेष के कोटा को उसी प्रखंड के अवेदकों से भरा जाए. इसमें खतियान की जरूरत नहीं है. चूंकि सभी स्थानीय माने जा सकते हैं और प्रखंड में उपलब्ध जातियों (एसटी, एससी, ओबीसी आदि) के आबादी के अनुपात से प्रखंड के कोटा को भरा जाए. यह 3 महीनों के भीतर लागू हो सकता है.
आदिवासी-मूलवासी को दिगभ्रमित कर रही सरकार
आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों, संगठनों, बुद्धिजीवियों, नवयुवकों आदि से अपील करता है इसको लागू करने में सहयोग करें. क्योंकि यह स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीतियों को समायोजित करते हुए एक समाधान प्रस्तुत करता है. अन्यथा सोरेन खानदान अपनी राजनीतिक स्वार्थों की जिद में लूट, झूठ और भ्रष्टाचारी सरकार को बनाए रखने की हर संविधान बिरोधी कोशिश जारी रखेगा. भोले भाले नासमझ आदिवासी-मूलवासियों को दिग्भ्रमित करता रहेगा.
मरांग बुरू बचाओ भारत यात्रा को मिल रहा जन समर्थन
सेंगेल का “मरांग बुरू बचाओ भारत यात्रा” 17 जनवरी से जारी है. इसे अपार समर्थन मिल रहा है. धनबाद जिला होते हुए 6 फरवरी को 21 वें दिन चाईबासा प. सिंहभूम में प्रवेश किया गया. ज़िला पहुंचा है। यात्रा का उद्देश्य जन जागरण और जन एकता है. यात्रा का नेतृत्व सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और केंद्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू कर रहे हैं.
11 फरवरी से रेल-रोड जाम के लिये बाध्य
मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को जैनों के कैद से मुक्त करने और 2023 में हर हाल में आदिवासियों के प्रकृति पूजा धर्म-सरना धर्म कोड को लागू करने के लिए सेंगेल 11 फरवरी 2023 से अनिश्चितकालीन रेल रोड चक्का जाम करने को बाध्य है. यह हमारा संविधान सम्मत अधिकार है. सोरेन सरकार ने हम आदिवासियों के ईश्वर-मरांग बुरु को जैनों के हाथ बेचने का पाप किया है. दिशोम गुरु ने पहले 3.50 करोड़ रुपयों में 1993 में झारखंड बेचा था. अब जेएमएम के एमएलए, एमपी और मुख्यमंत्री तालझारी गांव, ललमटिया थाना (गोड्डा जिला) की जमीन पर 19 जनवरी से जबरन बुलडोजर लगाकर आदिवासियों से छीनने का काम कर रही है.
कुरमी को एसटी बनाने के पीछे सोरेन परिवार का षडयंत्र
कुरमी को ST बनाने के पीछे भी सोरेन परिवार का षडयंत्र है. हम सोरेन परिवार को सर्वत्र बेनकाब करने को मज़बूर हैं. लूट, झूठ और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे सोरेन परिवार के पतन के बगैर आदिवासी-मूलवासी का उत्थान असम्भव है. दिशोम गुरु, ईसाई गुरु और गांव-गांव में परंपरा के नाम पर वंशानुगत जमे हुए अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़ माझी हाड़ाम (आदिवासी ग्राम प्रधान) आदिवासी समाज को बर्बाद कर रहे हैं. इनका विरोध जनहित, जनतंत्र और संविधान हित मे जरूरी है.
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