Jamshedpur (Dharmendra Kumar) : जीएसटी काउंसिल द्वारा हाल ही में हुई बैठक में पैक किए अथवा लेबल लगाए गए सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों एवं कुछ अन्य वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने की सिफारिश की गई. इससे देश भर के खाद्यान्न व्यापारियों में बेहद रोष एवं आक्रोश है. इस क्रम में कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने सोमवार को नई दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस मुद्दे पर देश के सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को उनके राज्य के खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं के व्यापारी एक ज्ञापन देकर इस निर्णय को वापस लेने की मांग करेंगे. संवाददाता सम्मेलन में दिल्ली ग्रेन मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गुप्ता एवं दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप जिंदल ने बताया कि इस संबंध में देश भर के अनाज व्यापारियों के संगठनों से लगातार संपर्क किया जा रहा है. सभी संगठन इस निर्णय से बेहद नाराज हैं. सभी राज्यों में राज्य स्तर के खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं के व्यापारियों का सम्मेलन इसी सप्ताह उनके अपने राज्यों में होगा. इसके बाद दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया जाएगा. इसमें खाद्यान्न से जुड़े देश भर के व्यापारी नेता भाग लेंगे.
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कर का दायरा बड़ा करना चाहिए : सुरेश सोंथालिया
वहीं कैट राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया ने कहा कि निश्चित रूप से कर संग्रह में वृद्धि होनी चाहिए. लेकिन आम लोगों की आवश्यक वस्तुओं को कर स्लैब में लाने के बजाय कर का दायरा बड़ा करना चाहिए. जिससे जो लोग अभी तक कर के दायरे में नहीं आये हैं, उनको कर के दायरे में लाया जाए.जिससे केंद्र एवं राज्य सरकारों का राजस्व बढ़ेगा.उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार बड़े ब्रांड वाले खाद्यान्न को कर के दायरे में लाया गया.उन्होंने कहा की सरकार की मंशा आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को कर से बाहर रख उनके दाम सदैव कम रखने की रही है.अब ऐसा क्या हो गया जिससे इन बुनियादी वस्तुओं पर कर लगाना पड़ रहा है.सोंथालिया ने इन वस्तुओं को 5% कर दायरे में रखने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश में सभी बड़े ब्रांड की कंपनियां देश की आबादी के केवल 15 प्रतिशत लोगों की ही जरूरतों की पूर्ति करते हैं.जबकि बड़े स्तर पर देश के सभी राज्यों में छोटे निर्माता जिनका अपना लोकल लेबल होता है. देश की 85 प्रतिशत आबादी की मांग को पूरा करते हैं. ऐसे में इन वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में आने से जहां छोटे निर्माताओं एवं व्यापारियों पर कर पालन का बोझ बढ़ेगा.वहीँ आम लोगों को मिलने वाली बुनियादी वस्तुएं भी महंगी हो जाएंगी.