Jamshedpur : सिविल कोर्ट जमशेदपुर स्थित डालसा (जिला विधिक सेवा प्राधिकार) सभागार में रविवार को घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 पर सेमिनार का आयोजन किया गया. झालसा (झारखंड राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकार) के निर्देश पर आली एनजीओ की ओर से आय़ोजित सेमिनार में रिसोर्स पर्सन के रूप में डालसा के मिडिएटर अधिवक्ता केके सिन्हा एवं आली संस्था की समन्वयक रेशमा सिंह, अधिवक्ता बबली एवं पिंकी सिंह मौजूद थीं. सेमिनार में मौजूद पैनल लॉयर को उक्त अधिनियम में वर्णित कानूनी पहलूओं एवं प्रावधानों से अवगत कराया गया.
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महिला का इमोशनल, सायक्लोजिकल टॉर्चर भी हिंसा
डालसा के मिडिएटर अधिवक्ता केके सिन्हा ने पैनल लॉयर्स को बताया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 1860 में बना था. लेकिन समय-समय पर इसमें संशोधन एवं बदलाव किए गए. उक्त अधिनियम में हिंसा की शिकार महिलाओं के संरक्षण से जुड़े प्रावधानों को 2005 में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि हिंसा एवं प्रताड़ना के कई प्रकार हैं-किसी महिला का इमोशनल, सायक्लोजिकल टॉर्चर भी हिंसा-प्रताड़ना की श्रेणी में आएगा. यहां तक कि सास का अपनी बहू को ताना मारना भी घरेलू हिंसा कहलाएगा. जिसके लिये कानून में सजा का प्रावधान है. उन्होंने उक्त अधिनियम पर विस्तार से प्रकाश डाला. जिसके तहत घरेलू हिंसा क्या है, संरक्षण अधिकारी के कर्तव्य व भूमिका, पुलिस के कर्तव्य, पीड़िता के भविष्य की आश्रय एवं पीड़िता को न्याय संगत मिलने वाली अन्य सुविधाएं आदि शामिल हैं.
कानून में 60 दिनों में निपटारा का प्रावधान, लग जाते हैं वर्षों
डालसा के मिडिएटर केके सिन्हा ने बताया कि घरेलू हिंसा से जुड़े मामले संज्ञान में आने के बाद संरक्षण पदाधिकारी अथवा पुलिस की ओर से तीन दिनों के भीतर नोटिस जारी किया जाएगा. उसका जल्द से जल्द अनुसंधान पूरा कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की जाएगी. उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा से जुड़े मामले की सुनवाई प्रथम श्रेणी के न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में होती है. घरेलू हिंसा अधिनियम के सेक्शन 14 में ऐसे मामलों में काउसलिंग, रि-काउंसलिंग, मिडिएशन वगैरह का भी प्रावधान है. निचली अदालत से मामला का निपटारा होने के 30 दिनों के भीतर ऊपरी अदालत में अपील की जा सकती है. सेमिनार में दो दर्जन से अधिक पैनल लॉयर शामिल थीं.
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