Jamshedpur (Anand Mishra) : जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी में हिंदी दिवस समारोह व्यस्त परीक्षा कार्यक्रमों के बाद भी व्यापक दृष्टिकोण के साथ मनाया गया. मुख्य अतिथि यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो (डॉ) अंजिला गुप्ता ने मुख्य वक्ता कोल्हान विश्वविद्यालय से सेवानिवृत संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो (डॉ) रागिनी भूषण, यूनिवर्सिटी के मानविकी संकायाध्यक्ष सह प्रॉक्टर डॉ सुधीर कुमार साहू, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ पुष्पा कुमारी समेत अन्य अधिकारियों एवं प्राध्यापिकाओं ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. उसके बाद अतिथियों को पौधा भेंट कर एवं झारखंड की संस्कृति से सुसज्जित शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया.
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कुलपति प्रो (डॉ) अंजिला गुप्ता ने अपने अध्यक्षीय भाषण में हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हिंदी सुरीली है, अप्रतिम है, मधुर है, व्यापक है और जनमानस की भाषा है. उन्होंने कहा कि फ्रांस में फ्रेंच दिवस, जर्मनी में जर्मन दिवस, चीन में चीनी दिवस, रूस में रूसी दिवस आदि नहीं मनाए जाते, क्योंकि वहां के देशवासी अपनी भाषा में पलते-बढ़ते हैं, किंतु हमारे देश का दुर्भाग्य कि मैकाले ने हिंदी भाषा को खत्म करने के लिए अंग्रेजियत को शिक्षा में आवश्यक बना दिया. बच्चों को अंग्रेजी में पलने-बढ़ने को विवश कर दिया गया, जो भारत की शिक्षा में बाधक बन गई. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का उदाहरण देते हुए उन्होंने राष्ट्रीयता और समग्र विकास के लिए हिंदी की उपयोगिता को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि अमेरिका और विदेश के अन्य बहुत सारे विश्वविद्यालयों में हिंदी एक सम्पूर्ण भाषा और विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. आज संस्कृत को सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा माना जाता है, जो सरल रूप में हिंदी है. भारत के वैज्ञानिकों और कानपुर जैसे आईआईटी तथा अन्य कई संस्थानों ने भी हिंदी को अपना लिया है. यह शुभ संकेत हैं और हिंदी शीघ्र ही राष्ट्रभाषा के रूप में भारत को सुशोभित करेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है.
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हिंदी पल पल जिए माटी चंदन है : प्रो. रागिनी भूषण
मुख्य वक्ता प्रो रागिनी भूषण ने भाषा के मूल तत्वों की व्याख्या करते हुए हिंदी के महत्व को रेखांकित किया. अक्षरों को मिलाकर शब्द, शब्दों से वाक्य विन्यास और फिर भाषा बनती है. अनुशासित शब्दावली और वाक्यावली के साथ हिंदी भरी पूरी भाषा है. हिंदी संस्कृत भाषा का सरल रूप है. हिंदी दिवस आजतक बस ‘राजभाषा दिवस’ है यह दु:ख व्यक्त करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि हम सभी प्रार्थना करें कि हिंदी दिवस शीघ्र ‘राष्ट्रभाषा पर्व दिवस’ के रूप में मनाई जाय. हिंदी की विविध विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने संप्रेषणीय क्षमता से परिपूर्ण हिंदी को राष्ट्रीयता का प्रतीक बताया. क्षेत्रीय और विदेश की भाषाओं को भी सहजता से समाहित करने की क्षमता के कारण भी हिंदी में राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता है. दूसरी भाषा भी सीखनी चाहिए, यह कहते हुए उन्होंने दोहराया कि हिंदी राष्ट्रभाषा अवश्य बनेगी. अपने संबोधन को और मधुर बनाते हुए उन्होंने हिंदी पर गीत सुनाया जिसके स्वर थे –‘हिंदी पल पल जिएं माटी चंदन है…’.
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हिंदी का प्रसार हो तो सभी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वतः स्वीकार कर लेंगे : डॉ सुधीर कुमार साहू
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए डॉ सुधीर कुमार साहू ने हिंदी को जन-जन के लिए सुलभ भाषा बताया, जो भारत का गौरव है. इतिहास की बात करते हुए उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा बताया था. 14 सितंबर 1949 को हिंदी को एक राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिली. पूरे इतिहास को सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि भाषा को लादने की बात कही जाती थी, किंतु अब स्थिति बदल रही है और गैर हिंदी भाषी दक्षिण के राज्यों में भी अब हिंदी के प्रति विद्रोह जैसी कोई बात नहीं दिखाई देती. उन्होंने कहा कि यदि इसी प्रेमभाव से हिंदी का प्रसार होता रहे तो सभी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वतः स्वीकृत कर लेंगे.
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‘रे प्रवासी जाग तेरे देश का संदेश आया’ : डॉ सनातन दीप
कार्यक्रम को देश की भाषा की संवेदना से जोड़ते हुए संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. सनातन दीप ने ‘रे प्रवासी जाग तेरे देश का संदेश आया…’ शीर्षक गीत को मधुरता के साथ प्रस्तुत कर आगे बढ़ाया. डॉ. पुष्पा ने स्वागत भाषण किया. मंच संचालन हिंदी विभाग की प्राध्यापिका डॉ नूपुर अंविता मिंज व धन्यवाद ज्ञापन उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ रिजवाना परवीन ने किया. कार्यक्रम से पहले हिंदी पखवाड़ा की शुरुआत होते ही यूनिवर्सिटी ने स्वरचित कविता एवं कहानी पर एक प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसकी विजेता छात्राओं को मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता ने पुरस्कृत किया. इस अवसर पर परीक्षा नियंत्रक डॉ रमा सुब्रह्मण्यम, सीवीसी डॉ अन्नपूर्णा झा, डीओ डॉ सलोमि कुजूर, परीक्षा ओएसडी डॉ रूपाली पात्रा, वाणिज्य विभाग की ग्लोरिया पूर्ति, दर्शनशास्त्र विभाग की प्राध्यापिका डॉ अमृता एवं अन्य प्राध्यापिकाओं के साथ बड़ी संख्या में विभिन्न विभागों की छात्राएं उपस्थित थीं.