Saurav Singh
Ranchi: खनन सचिव पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद जेएसएमडीसी (JSMDC) की वसूली की पोल भी खुलने लगी है. झारखंड के रामगढ़, हजारीबाग, बाकारो और धनबाद जिले की सॉफ्ट कोक व हार्ड कोक फैक्टरियों को जेएसएमडीसी के माध्यम से प्रति माह कोयला दिया जाता है. साल में करीब 5 लाख टन कोयला इन फैक्टरियों को मिलता है. अधिकतर फैक्टरियां बंद हैं. फैक्टरी में इस्तेमाल होने वाले कोयले को डेहरी व बनारस की मंडियों में ले जाकर बेच दिया जाता है. यह कारोबार सालों भर और हर सरकार में बेरोकटोक चलता है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि दबंग अफसर हो तो काम संगठित तरीके से होता है और वसूली की रकम भी बढ़ जाती है, नहीं तो चोरी-छिपे.
वसूली की रकम चौंकाने वाली
प्रशासनिक अफसरों द्वारा वसूली को लेकर सूत्रों ने जो दावा किया है, वह चौंकाने वाला है. खनन विभाग (मुख्यालय) के नाम पर प्रति टन 250 रुपये की वसूली होती है. मतलब हर साल करीब 12.50 करोड़ रुपये. इसके अलावा जिलों के पुलिस प्रशासन के अफसरों के नाम पर भी प्रति टन इतनी ही राशि की वसूली की जाती है. मतलब जिले के अफसरों को भी हर साल 12.50 करोड. खबर है कि पहले खनन विभाग के आला अफसरों को सालाना कुछ लाख रुपये मिलते थे. लेकिन हाल में प्रति माह-प्रति टन के हिसाब से वसूली होने लगी थी.
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कारोबारियों को नहीं कोई दिक्कत
अवैध वसूली के इस कारोबार में शामिल लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती. इसकी वजह कोयले पर प्रति टन होने वाली बचत है. फैक्टरियों को कम कीमत पर कोयला मिलता है. वर्तमान में कंपनियों को करीब 4500 रुपये प्रति टन के हिसाब से कोयला मिल रहा है. यही कोयला डेहरी स्थित मंडी में पहुंच कर करीब 10,000 रुपये प्रति टन हो जाता है. एक ट्रक पर करीब 25 टन कोयला लोड होता है. ट्रक भाड़ा करीब 13,000 रुपये होता है. इस तरह कारोबारियों को प्रति ट्रक 1,25,000 रुपया से अधिक और प्रति टन 5,000 रुपये से अधिक की बचत हो जाती है. यही कारण है कि 500-1000 रुपये की अवैध वसूली उनके लिए मायने नहीं रखती.