- क्या जीरो रिस्पांसिबिलिटी के साथ काम कर रहे राज्य के ब्यूरोक्रेट
- तस्वीर देख आप भी कहेंगे ऐसा झारखंड में ही संभव है…
Pravin Kumar
Ranchi/Dimka: यह तस्वीर झारखंड की उप-राजधानी दुमका के गोपीकांदर प्रखंड के सुदूरवर्ती आदिवासी बहुल गांव की है. यहां टांयजोड़ पंचायत स्थित पहाड़िया आदिवासी बहुल सिदपहाड़ी गांव की है, जो ग्रामीण झारखंड के हालात को बयां करता है. तस्वीरों से कई सवाल भी खड़े होते हैं. गांव के लोग तीन किलोमीटर दूर दूसरे गांव के कुएं और चापाकल से पीने का पानी लाने को विवश थे. लेकिन एक ही दिन में समस्या छूमंतर हो गया. रांची की लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें…
तस्वीरों में- दूर दराज से पानी लातीं महिलाएं और बच्चे
गांव के ग्रामीणों ने कहा कि 2 दिन पहले तक दोनों टोला के ग्रामीण दूसरे गांव से पानी लाते थे. प्रधान टोला के ग्रामीण पहाड़ से नीचे दूसरे गांव चिरापात्त्थर के कुएं और रोलडीह गांव के चापाकल से पानी लाते थे, जो गांव से करीब दो किमी की दूरी पर है. स्कूल टोला के ग्रामीण भी पहाड़ के नीचे दूसरे गांव से पीने का पानी लाते हैं. स्कूल टोला के ग्रामीण पहाड़ से नीचे दूसरे गांव खैयरबनी के कुएं से पीने का पानी लाते हैं,जो तीन किलोमीटर दूर है और दूसरा रोलडीह गांव के कुएं से पानी लाते हैं, जो दो किलोमीटर दूर है.
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दोनों टोला के ग्रामीणों को ठलान और पथरीले दुर्गम और खतरनाक रास्ते से जंगल होकर पहाड़ से नीचे दूसरे गांवों से पानी लाना पड़ता है. पानी लाने महिला, पुरुष और बच्चे सभी जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि पानी लाने के लिए खेत-खलिहान, जंगल और पहाड़ से गुजरना पड़ता है, सांप, बिच्छु का डर भी बना रहता है. इसके साथ-साथ पहाड़ी रास्ते दुर्गम और पथरीले होने के कारण गिरने और घायल होने की भी संभावना बनी रहती है. कई बार चलने के क्रम में सिर से बर्तन गिर जाता है. पूरा समय पानी लाने में ही बर्बाद हो जाता है.
आदरणीय सर, उक्त मामले में सिदपहाड़ी के प्रधान टोला एवं स्कूल टोला में ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने हेतु चापानल क्रियाशील करा दिया गया है। pic.twitter.com/NcbbACQoa3
— DC_Dumka (@DumkaDc) May 30, 2022
बसंत सोरेन ने Tweet कर की थी समस्या दूर करने की अपील
मीडिया में प्रकाशित खबर पर दुमका विधायक बसंत सोरेन ने ट्विट करते हुए उपायुक्त को टैग किया था. इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और गांव की समस्या से निजात दिलाने को लेकर कार्रवाई शुरू की. कमाल की बात यह रही कि उस गांव में उसी दिन पेयजल की समस्या दूर हो गई. यह आधिकारियों की तत्परता को दिखाता है. लेकिन यह तत्परता जनता के आवेदन पर नहीं दिखाया जाता, आखिर क्यों ?
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ग्रामीणों ने कई बार लगायी थी गुहार
दुमका के एक गांव में पेयजल की समस्या एक दिन में दूर कर दिया गया. यह काम पहले भी किया जा सकता था. दरअसल, ग्रामीणों ने कई बार प्रखंड कार्यालय में गुहार लगायी थी, लेकिन उनकी फरियाद नहीं सुनी गई. लेकिन बसंत सोरेन के एक ट्वीट से ही काम हो गया. इस घटनाक्रम से यह प्रतीत होता है कि नौकरशाह बिना किसी निर्देश के कोई काम नहीं करते, जबकि ऐसी समस्या का निपटरा चुटकियों में किया जा सकता था. इस प्रकरण से यह प्रतीत होता है कि राज्य के ब्यूरोक्रेट्स जीरो रिस्पांसिबिलिटी के साथ काम करते हैं या यूं कहें की गांव की समस्या का समाधान करने में अधिकारी रूचि नहीं दिखाते.