Kaushal Anand
Ranchi : झारखंड में वर्ष 2006 में लागू हुआ वनाधिकार कानून की स्थिति अच्छी नहीं है. मगर फिर भी जिन गांवों में इस कानून के तहत सामुदायिक एवं निजी वन पट्टे दिये गये हैं, वहां के ग्रामीणों का जीवन में काफी बदलाव आया है. जंगल भी संरक्षित हो रहे हैं. ग्राम सभा सशक्त हुई है, महिलाएं जागरूक हुई हैं. बच्चे पढ़ रहे हैं और पुरुष-महिला मिलकर खेती-बाड़ी कर रहे हैं. ग्रामीण खुद योजना बनवाकर उसे पास करा रहे हैं और खुद काम भी कर रहे हैं. इससे गांव में ठेकेदारी प्रथा भी खत्म हो रही है.
जंगल को बचाना है तो ग्रामीणों को वन पट्टा देना होगा
मतलब साफ है कि अगर हमें इस प्रकृति-जंगल को बचाना है तो ग्रामीणों को वन पट्टा देना होगा. नहीं तो आने वाली जेनरेशन तक पेड़े-पौधे और जंगल ही समाप्त हो जायेंगे. ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में जंगल को बचाना और संरक्षित करना ही एक उपाय बचा है और इसका संरक्षण झारखंड ग्रामीण-आदिवासी ही कर सकते हैं. वनाधिकार कानून और वन पट्टा की स्थिति जानने के लिए शुभम संदेश ने इससे लाभान्वित हुए पंचायत और गांव का दौरा किया. इस संवाददाता ने गुमला जिला स्थित बसिया प्रखंड की आर्या पंचायत के कुरूदेगा गांव का जायजा लिया. यहां के ग्रामीणों ने खुद अपनी पूर्व और वर्तमान की स्थिति के बारे में बताया.
2018 से किया जा रहा था सामूहिक प्रयास, 2022 में मिला सामुदायिक वन पट्टा
गांव के ग्राम प्रधान मंगल केरकेट्टा ने बताया कि वन पट्टा लेना इतना आसान नहीं था. ग्राम सभा की स्थापना तो 2004 में हुई मगर वन पट्टा लेने का प्रयास 2018 में हुआ. न केवल इस गांव के बल्कि आसपास के अन्य गावों के लोगों के साथ ग्राम सभा हुई. जिसमें वन पट्टा लेने का प्रयास शुरू हुआ. काफी प्रयास और भाग-दौड़ के बाद 2022 में 167.526 एकड़ का वन पट्टा मिला. इसमें स्थानीय संस्था प्रदान की अहम भूमिका रही. इसके लोगों ने हमें जागरूक किया और अंत तक साथ दिया.
वन पट्टा मिलने से जंगल में जानवर दिखने लगे, पेड़ कटाई पर लगी रोक
वन पट्टा मिलने के साथ ही वन का सीमांकन किया गया. पेड़ कटाई पर तुरंत रोक लगा दी गयी. ग्राम सभा की अनुमति के बिना किसी के भी जंगल में प्रवेश पर रोक लगायी. यहां तक कि वन में एक सिंगल टांगी से पेड़ कटाई पर रोक लगायी गयी. इससे जंगल में मोर, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, सुअर सहित कई जंगली जानवरों और पशु-पक्षियों की संख्या बढ़ने लगी. कहा कि आगे का लक्ष्य है. जंगल में मिलने वाले औषधीय पौधों की पहचान कर उसे संरक्षित किया जाये.
महिला समिति बनी, महिलाओं को कर्ज मिलने लगा
गांव की महिला समिति की अध्यक्ष नमानी टोपनो बताया कि वन पट्टा मिलने के बाद महिलाएं जागरूक हुईं. महिला समिति बनायी गयी. हर महिला हर सप्ताह 10 रुपया जमा कराती हैं. अब खाता में हमेशा डेढ़ से दो लाख रुपया रहते हैं. महिलाओं को जरूरत पड़ने 25 पैसे इंटरेस्ट की दर पर 100 रुपये को लोन देते हैं. महिलाएं अब दूसरे से कर्ज नहीं लेती हैं.
खेती-बाड़ी बढ़ी, अब सभी बच्चे पढ़ते हैं
महिला समिति की महिला सुरजीता जोजा ने बताया कि ग्राम सभा सशक्त होने और वन पट्टा मिलने के बाद खेती-बाड़ी बढ़ी है. खुद से कंपोजिट खाद बनाकर वे लोग हर तरह की सब्जी, परवल, तरूबुजा, हाईब्रीड आम और कटहल की खेती करती हैं. इससे उनलोगों का इनकम बढ़ी. अब गांव के सारे बच्चे स्कूल जाते हैं. गांव की कई लड़कियां शहर में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं.
झारखंड में वन पट़टा वितरण की स्थिति अच्छी नहीं
राष्ट्रीय वनाधिकार कानून पूरे देश में 2006 में लागू हो गया. मगर आज 18 साल बीत जाने के बाद भी ग्रामीणों को सामुदायिक एवं निजी वन पट्टा सही ढंग से नहीं मिल रहा है. झारखंड में दिसंबर 2022 तक वन पट्टा के लिए 1 लाख से अधिक आवेदन आ.. मगर इनमें 30 हजार किसी न किसी कारण से रिजेक्ट हो गये जबकि 10 हजार पेंडिंग हैं. सामुदायिक वन पट़्टा के कुल 3724 आवेदन कल्याण विभाग को प्राप्त हुए जिसमें इसमें से कुल अब तक 2104 को ही सामुदायिक वन पट़टा मिल सका है. ग्रामीणों को इस पट्टे को लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. इसके बावजूद विभागीय ताना-बाना में कई ग्रामीण थक-हारकर इसे छोड़ देते हैं. अगर सरकार वन अधिकार कानून के तहत जंगल में रहने वाले ग्रामीणों को सही से सामुदायिक एवं निजी वन पट्टा दे दे तो न केवल गांव की दशा बदलेगी बल्कि जंगल भी संरक्षित हो सकेंगे.
वन पट्टा वितरण की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में
झारखंड : 1.53 लाख एकड़
उड़ीसा : 4.54 लाख एकड़
छत्तीसगढ़ : 4.46 लाख एकड़