- बजट में मंजूरी मिलने के बाद भी
- कई योजनाएं अधर में लटकीं
Ranchi: झारखंड विधानसभा में तीन मार्च को पेश होने वाले बजट को लेकर लोगों के बीच चर्चा जोरों पर है. 27 फरवरी से बजट सत्र भी शुरू हो रहा है. इसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होगी. मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए लोग अनुमान लगा रहे हैं कि बजट में किन-किन प्रस्तावों को इस बार जगह मिलनी चाहिए. अलग-अलग वर्ग अपनी आवश्यक्ता के अनुसार अपनी राय जाहिर कर रहे हैं. वैसे तो हर साल बजट में योजनाएं ली जाती हैं. लेकिन बजट में प्रावधान के बावजूद यानी मंजूरी मिलने के बाद भी सभी योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पातीं. कुछ योजनाएं शुरू हो भी जाती हैं तो वह समय पर पूरी नहीं हो पाती और योजना का लाभ समय पर नहीं मिल पाता है. झारखंड के विभिन्न जिलों में ऐसी कई योजनाएं हैं जो अब भी पूरी नहीं हो पाई है. कुछ योजनाएं अधर में लटकी हैं. ये कब पूरी होंगी, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. शुभम संदेश की टीम ने इससे जुड़ी जानकारी हासिल की है. पेश है रिपोर्ट.
रांची के कांटाटोली फ्लाईओवर का निर्माण कार्य अब भी अधूरा
रांची के कांटाटोली फ्लाईओवर का निर्माण कार्य अब भी अधूरा है. लोग बेसब्री से इस फ्लाईओवर के निर्माण का इंतजार कर रहे हैं. इसका निर्माण कार्य शुरू हुए एक साल से ज्यादा हो गया है. टेंडर लेने वाली अहमदाबाद की दिनेश अग्रवाल एंड संस कंपनी को 2 साल में काम को कंप्लीट करना है. फ्लाईओवर की लंबाई बढ़ने के कारण करीब 2 एकड़ जमीन का फिर से अधिग्रहण किया जाना है, लेकिन अबतक जमीन का वैल्यूशन ही नहीं हुआ है. वैल्युएशन होने के बाद ही रैयतों को मुआवजा मिलेगा और फिर जमीन खाली होगी. फ्लाईओवर का बजट 225 करोड़ रुपये का है. इसमें से 199 करोड़ रुपये से फ्लाईओवर बनेगा और बाकी बचे 26 करोड़ रुपये जमीन अधिग्रहण में खर्च किये जाने हैं.
40 करोड़ का प्रोजेक्ट 225 करोड़ का हो गया…
कांटाटोली फ्लाईओवर राजधानी वासियों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है. न यह कंप्लीट हो रहा है और न ही प्रोजेक्ट रद्द हो रहा है. इसका काम रुक रुक कर चल रहा है. 2018 से फ्लाईओवर का निर्माण शुरू होने के बाद से कांटाटोली होकर गुजरने वाले लोगों को हर दिन जाम में फंसना पड़ रहा है. फ्लाइओवर निर्माण की योजना 2016 में बनी थी. 2017 में इसका काम आवंटित किया गया था. भू-अर्जन पूरा होने के बाद जून 2018 से काम शुरू किया गया था. जून 2020 तक कांटाटोली फ्लाइओवर बन कर तैयार हो जाना चाहिए था, लेकिन फिर काम बंद हो गया. जब फ्लाईओवर निर्माण की योजना बनी तब बजट 40 करोड़ था, फिर 84 करोड़ पहुंचा. उसके बाद 187 करोड़ रुपये हो गया. अब इसका बजट 225 करोड़ रुपये हो गया है.
- कंपनी को 2 साल में काम कंप्लीट करना है
- करीब 2 एकड़ जमीन का फिर से अधिग्रहण किया जाना है
1250 मीटर के फ्लाईओवर की लंबाई 2240 मीटर हो गई
पहले फ्लाईओवर की लंबाई 1250 मीटर थी,लेकिन हेमंत सरकार ने इसकी की लंबाई बढ़ाते हुए 2240 मीटर कर दी है. फ्लाईओवर के लिए पहले 4.70 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन अब लंबाई बढ़ने से करीब 2 एकड़ अतिरिक्त जमीन का अधिग्रहण होगा. इसमें सरकारी और रैयती जमीन शामिल है. कंपनी फ्लाईओवर का काम जल्द से जल्द निपटाना चाहती है, लेकिन जमीन अधिग्रहण और शिफ्टिंग जैसी प्रक्रियाओं के देर होने से उसकी परेशानी बढ़ गई है. अगर जल्द ही सारी प्रक्रियाएं पूरी नहीं हुई तो शायद यह कंपनी भी तय समय पर कांटाटोली फ्लाईओवर का निर्माण पूरा नहीं कर पाएगी.
बजट सत्र को लेकर भाजपा विधायक दल की बैठक आज
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र 27 फरवरी से शुरू हो रहा है. बजट सत्र को लेकर भाजपा विधायक दल की बैठक 27 फरवरी को दिन 1 बजे से यह बैठक प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की अध्यक्षता में होगी. इसमें विधानसभा के बजट सत्र को लेकर चर्चा होगी. बैठक में भाजपा हेमंत सरकार को घेरने के लिए अपनी रणनीति बनाएगी. सत्र के दौरान राज्य सरकार 3 मार्च को वित्तीय वर्ष 2023-24 का बजट पेश करेगी. बजट सत्र 23 मार्च तक चलेगा. सत्र के बीच में ही होली का अवकाश भी होगा. बजट सत्र के दौरान सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक भी लाएगी. बजट के पूर्व चालू वित्तीय वर्ष के लिए तृतीय अनुपूरक बजट भी लाया जाएगा.
सरकार की घोषणाएं जो अबतक पूरी नहीं हुईं
चालू वित्तीय वर्ष में हेमंत सरकार ने कई घोषणाएं की. जिसे अब तक सरकार जमीन पर नहीं उतार पायी. यानी कहा जा सकता है कि क्या वर्तमान सरकार केवल घोषणओं वाली सरकार है. घोषणा की जमीनी हकीकत तो यही कह रही है. चालू वित्तीय वर्ष में हेमंत सरकार ने 1.01 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया.
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत जन वितरण प्रणाली से छूटे योग्य लोगों में 15 लाख व्यक्तियों को राशन देने के लिए सरकार ने अगस्त 2020 में राज्य खाद्य सुरक्षा योजना की घोषणा की. पिछले बजट में इस संख्या को बढ़ाकर 20 लाख करने की घोषणा हुई. जन वितरण प्रणाली में 15 लाख अतिरिक्त व्यक्ति तो जुड़ गए, लेकिन इन्हें नियमित रूप से हर महीने राशन नहीं मिलता है. पिछले पांच महीनों में तो अधिकतर कार्डधारियों को अनाज नहीं मिला है.
- सरकार के अनुसार अनाज खरीदने, संबंधित निविदा व ट्रांसपोर्ट में विलंब हो रहा है. सरकार ने जन वितरण प्रणाली अंतर्गत सभी राशन कार्डधारियों को सस्ते दर पर दाल देने की भी घोषणा की थी, लेकिन एक साल बाद भी यह फिलहाल कागज़ पर ही सीमित है.
- कक्षा 1-8 के बच्चों के मध्याह्न भोजन में 5 अंडे व आंगनवाड़ी में 3-6 वर्ष के बच्चों को 6 अंडे प्रति सप्ताह की घोषणा राज्य सरकार ने पिछले दो साल में कई बार की. लेकिन आज तक बच्चों की थाली तक अंडे नहीं पहुंचे ,कभी बजट का बहाना तो कभी अंडे के कॉन्ट्रैक्ट के लिए केंद्रीय निविदा में देरी का बहाना बनता रहा.
- केवल नई घोषणाएं ही नहीं, बल्कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के सही कार्यान्वयन के प्रति भी सरकार उदासीन है. हाल में महिला व बाल विकास मंत्री के खुद के विधानसभा क्षेत्र में एक स्वतंत्र नागरिक सर्वेक्षण में पाया गया कि आंगनवाड़ी की स्थिति दयनीय है. केवल आधे केंद्र ही नियमित रूप से खुलते हैं.
- घोषणाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त बजट आवंटन के साथ-साथ सही नीति की भी ज़रूरत है. 1.5 साल पहले लागू की गई मुख्यमंत्री सर्वजन पेंशन योजना (राज्य की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं का सार्वभौमिकरण) के बाद पेंशन योजनाओं के बजट का आवंटन बढ़ा एवं अनेक बुज़ुर्ग व विधवाओं को पेंशन मिलनी शुरू हुई. लेकिन अभी भी पेंशन योजनाएं सार्वभौमिकरण से कोसों दूर है. योजनाओं से संबंधित जटिलताओं के कारण अनेक बुज़ुर्ग व विधवा पेंशन से वंचित हैं.
- राज्य के बुजुर्गों के आधार कार्ड में कम उम्र दर्ज होना एक आम समस्या है. कोई अन्य उम्र प्रमाण व आधार में उम्र सुधार प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण अनेक योग्य वृद्ध पेंशन से वंचित हैं. साथ ही, सालों पहले पति की मृत्यु का प्रमाण पत्र बनवाने में जटिलताओं के कारण अनेक विधवा पेंशन से वंचित हैं. पीड़ितों व नागरिक संगठनों द्वारा कई बार संबंधित मंत्री व पदाधिकरियों से इन समस्याओं के निराकरण की मांग के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई है.
- बेरोज़गारी के दौर में शहरी रोज़गार गारंटी योजना लागू करने वाले चुनिंदा राज्यों में से झारखंड एक हैं.
- 2.5 साल पहले की गई यह घोषणा महज कागज़ तक सिमट गई क्योंकि योजना के लिए आज तक न तो पर्याप्त बजट का आवंटन हुआ और न ही लागू करने के लिए सही नीति बनी. योजनाओं को सही रूप से लागू करने के लिए बिचौलियों और प्रशासन के भ्रष्ट गठजोड़ को भी तोड़ने की ज़रूरत है.
- सार्वजानिक शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. विभिन्न शोधों में पाया गया है कि लॉकडाउन ने प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों की शैक्षणिक क्षमता को कई साल पीछे कर दिया है. लेकिन राज्य सरकार ने लॉकडाउन के घाटे को पाटने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की है.
- राज्य में बड़ी संख्या में सुनसान पड़े स्वास्थ्य केंद्र बताते हैं कि फिलहाल राज्य में प्राथमिकता भवन निर्माण के बजाए सेवा प्रदाताओं की नियुक्ति होनी चाहिए.
- झारखंड में ग्रामीणों, खासकर आदिवासी, दलित व अन्य वंचितों के पोषण, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए राज्य बजट में फोकस तो किया गया. मगर सरकार इस पर बहुत अधिक कुछ नहीं कर पायी.
अबतक पूरा नहीं हो पाया चाईबासा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल
पश्चिम सिंहभूम जिले के जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के द्वारा चिह्नित किया गये जगहों पर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया था. उन्हें प्रस्तावों में चाईबासा में चाईबासा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल बनाने का प्रस्ताव भी था. हॉस्पिटल की कुल लागत 336 करोड़ रुपए है, जिसमें से एक केंद्र की तरफ से 200 करोड़ तथा शेष राशि राज्य सरकार को देनी थी. चाईबासा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल का ऑनलाइन शिलान्यास वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में किया था. तब राज्य में एनडीए की सरकार थी और इसे 2019 में पूरा कर लिया जाना था. इस योजना में 200 करोड़ केंद्र सरकार को और शेष राशि राज्य सरकार को खर्च करना था.पर वह आज तक अधूरी पड़ी हुई है. इस योजना के तहत सदर प्रखंड के उलिझारी में मेडिकल कॉलेज तथा सदर हॉस्पिटल में 100 बेड के हॉस्पिटल का काम किया जा रहा था. पर 2019 के पास से सत्ता के समीकरण के बदलाव होने पर सारी स्थितियों में परिवर्तन आ गया पूर्व में जो कार्य बहुत तीव्र गति से चल रहा था वकारे धीरे धीरे चलते चलते अब पूरी तरीके से बंद हो गया है. इसका उद्देश्य जनजातीय समुदाय को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देना है.चाईबासा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल को बनाए जाने का उद्देश्य जिले के करीब 15 लाख की जनजातीय आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देना है ताकि उन्हें रांची या जमशेदपुर जाने की जरूरत न पड़े.
संवेदक को कार्य से हटाया गया
जानकारी के अनुसार चाईबासा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की मॉनिटरिंग लगातार पीएमओ के द्वारा की जा रही थी, पर सत्ता परिवर्तन के बाद कार्य में धीमी प्रगति को देखते हुए संवेदक को हटा दिया गया. संवेदक को कार्य के विरुद्ध 18 करोड़ का भुगतान भी किया गया, लेकिन कार्य में धीमी प्रगति को देखते हुए उसकी जमा की गई राशि को सीज कर लिया गया है. इस अस्पताल के निर्माण हो जाने से पश्चिम सिंहभूम जिले के ग्रामीण क्षेत्रों एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को इसका अच्छा फायदा मिलता. क्योंकि इसके निर्माण हो जाने के बाद यहां पर हर विभाग के लिए अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो जाती. साथ ही यहां के ग्रामीणों को 70 किलोमीटर दूर जमशेदपुर या 150 किलोमीटर दूर रांची या फिर 300 किलोमीटर दूर भुवनेश्वर नहीं जाना पड़ता. अभी स्थिति यह है कि मरीज के साथ थोड़ी भी विपरीत परिस्थिति होती है तो उसे सदर अस्पताल के द्वारा तुरंत ही बेहतर चिकित्सा सुविधा के लिए रांची से जमशेदपुर रेफर कर दिया जाता है. यह जानते हुए कि जिला जनजातीय बहुल है लोगों की आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर है. ऐसे में जमशेदपुर या रांची जाकर चिकित्सा कराना कितना दूर है. समझा जा सकता है लेकिन कोई विकल्प नहीं होने पर मरीजों के परिजनों को रांची और जमशेदपुर ले जाना उनकी मजबूरी हो जाती है.
दाल के लिए 490 करोड़ का था बजट, गरीबों को नहीं मिल पाया लाभ
रा ज्य के 65 लाख गरीब परिवारों को अब सरकार एक रुपये किलो के हिसाब से दाल की आपूर्ति करने के लिए 490 करोड़ रुपये 2022-23 के बजट में प्रावधान किया था. लेकिन गरीबों को दी जाने वाली दाल सरकार उपलब्ध नहीं करा पायी. योजना खाद्य सार्वजनिक उपभोक्ता मामलों के विभाग का है. 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए योजना का चयन किया गया था. कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद विभाग की ओर से रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल तैयार कर निविदा प्रकाशित की है. सरकार की ओर से गरीब परिवारों को चने की दाल देनी थी. इसलिए चना दाल खरीदने के लिए निविदा भी आमंत्रित की गई थी. लेकिन दाल की अधिक कीमत होने के कारण इसे योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. पूरा बजट प्रावधान लैप्स हो गया. गरीबों को दाल नहीं मिल पायी. 2023-24 के बजट में भी दाल वितरण के लिए करीब 700 करोड़ का बजट तय किया गया था.
झारखंड पेट्रोल सब्सिडी योजना 61.25 करोड़ में करीब 4.5 करोड़ ही हुए खर्च
जिनके पास राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना या झारखंड राज्य खाद्य सुरक्षा योजना का राशन कार्ड उपलब्ध है, उन्हें इस योजना के तहत लाभ प्रदान किया जाना था . इसके लिए सरकार में 2022-23 के बजट में 61.25 करोड़ का प्रावधान किया गया था. लेकिन मात्र 4.5 करोड़ ही योजना में खर्च किए गये.
दो पहिए वाहनों के लिए 10 लीटर पर 250 रुपये मिलनी थी छूट
इस योजना के माध्यम से राज्य के नागरिकों को दो पहिए वाले वाहनों के लिए पेट्रोल की कीमतों पर सब्सिडी प्रदान करनी थी.इसके तहत 1 लीटर पेट्रोल पर 25 रुपया की छूट दी जानी थी.योजना के तहत 1 महीने में 10 लीटर पेट्रोल पर सब्सिडी प्रदान करनी थी. लाभार्थियों को प्रतिमाह 250 रुपये की सब्सिडी राशि प्रदान की जानी थी.
शिक्षा, कल्याण, पर्यटन को लेकर घोषणाएं भी पूरी नहीं हुईं
हेमंत सोरेन सरकार के बजट 2022-2023 में शिक्षा के क्षेत्र कई वादें किए गए थे. उसमें से अधिकांश पूरे नहीं हो पाए. बजट में बच्चों को जाड़े में गर्म पोशाक दिए जाने की घोषणा हुई थी. ठंड में उन्हें स्वेटर तक नहीं मिल पाया. राज्य के सरकारी स्कूलों के बच्चों में लगभग 10 लाख बच्चों को यूनिफॉर्म नहीं मिल पाई. सरकारी स्कूल के 42,000 शिक्षकों को टैब देने का काम पूरा नहीं हुआ. रांची में प्रतियोगिताओं की तैयारी करने वालों के लिए रीडिंग रूम बनाने का सपना अधूरा रह गया. रामगढ़ के गोला डिग्री कॉलेज बनाने की घोषणा हुई थी. वह पूरी नहीं हुई.
कल्याण विभाग की योजना भी धरातल पर नहीं उतर सकी
14 एकलव्य, 9 आश्रम, 4 पीटीजी आवासीय और एक अनुसूचित जनजाति आवासीय उच्च विद्यालय का निर्माण किया जाना था. यह विद्यालय गिरिडीह, पश्चिमी सिंहभूम, चतरा, गढ़वा, धनबाद, पलामू, लातेहार, खूंटी, सरायकेला-खरसावां, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, दुमका, पाकुड़, सिमडेगा, लातेहार, गिरिडीह, पाकुड़, कोडरमा, रांची आदि जिलों में बनना था. विद्यालय तो बनकर तैयार हो गये, लेकिन शुरु नहीं हो सका. कारण यह था कि विद्यालयों के संचालन के लिए गैर सरकारी शैक्षणिक संस्थानों का विभाग एक साल बाद भी चयन नहीं कर पाया.
पर्यटन के लिए घोषणाएं हुई थीं
पर्यटन व संस्कृति को लेकर बजट 2023 में कई घोषणाएं हुई थी. इसमें डैमों व जलाशयों में वाटर स्पोर्ट्स शुरू करना, टूरिस्ट सर्किट विकसित करना, जलप्रपातों में स्काइवॉक और रोप-वे की शुरुआत करने की घोषणा हुई थी. इसी तरह राजधानी में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की घोषणा हुई थी. लेकिन यह घोषणा धरातल पर नहीं हुई. ये सारी घोषणाएं अगर धरातल पर उतर जाती तो आम जनता को काफी राहत मिलती. योजनाएं बनती हैं. उन्हें मंजूरी दी जाती है. फिर उनके पूरा नहीं होने समस्याएं जस के तस रह जाती है.
हजारीबाग :
शिलान्यास के बाद ठंडे बस्ते में सवा तीन करोड़ से बनने वाला स्टेडियम
बरही में पिछले वर्ष बजट में अनमुंडस्तरीय स्टेडियम बनाने का प्रस्ताव पारित किया था. यह स्टेडियम खेलकूद, युवा कार्य विभाग झारखंड सरकार की ओर से सवा तीन करोड़ की राशि से बनाई जानेवाली थी. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में पड़ा है. इसका शिलान्यास आठ अप्रैल 2022 को सांसद जयंत सिन्हा और स्थानीय विधायक उमाशंकर अकेला ने किया था. शिलान्यास के बाद से यह प्रोजेक्टर वहीं का वहीं पड़ा है. विधायक ने कहा कि इस योजना पर सरकार से बात करेंगे. योजना को जल्द पूरा कराने का प्रयास करेंगे. पूर्व मुखिया हरेंद्र यादव ने बताया कि पांच एकड़ में बननेवाले में इस स्टेडियम में इंडोर और आउटडोर दोनों गेम होने थे. ग्रामीण क्षेत्रों के खिलाड़ियों को यहां विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण दिया जाना था. लेकिन शिलान्यास के बाद टेंडर ही नहीं हुआ. इसका मूल कारण राजनीतिक विवाद बताया गया. हर कोई टेंडर में हाथ आजमाने को तैयार हो गया. बाहरी-भीतरी की राजनीति होने लगी. स्टेडियम बन जाने से ग्रामीण खिलाड़ियों को प्रतिभा निखारने का मंच मिलता. साथ ही कई लोगों को रोजगार भी नसीब होता.
जमशेदपुर :
अबतक धरातल पर नहीं उतर पायी बागबेड़ा ग्रामीण जलापूर्ति योजना
बा गबेड़ा की 7, कीताडीह की 4, घाघीडीह की 5, करनडीह की 2 एवं परसुडीह की 3 पंचायतों के 113 गांव एवं रेलवे क्षेत्र की 33 बस्तियों में घर-घर तक पाइप लाइन के माध्यम से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की योजना थी. इसके लिए 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बागबेड़ा जलापूर्ति योजना की नींव द्वारा रखी थी. विश्व बैंक की 237 करोड़ रुपए की योजना को 2018 में पूरा होना था. लेकिन 211 करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद अब तक यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है. तत्कालीन कार्यकारी एजेंसी आइएलएफएस को 211 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है. फिर भी निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हो पाया. इस योजना के धरातल पर उतरने से लगभग 5 लाख लोग इस योजना से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे.
बागबेड़ा जलापूर्ति योजना को पूरा करने की मांग को लेकर बागबेड़ा महानगर विकास समिति द्वारा 427 बार जन आंदोलन किए गए,6 बार विधानसभा का घेराव किया गया, दो बार राजभवन का घेराव हुआ, एक बार 101 लोग के द्वारा बागबेड़ा के जमशेदपुर से रांची तक पदयात्रा कर विधानसभा का घेराव किया गया. इसके बाद अधिकारियों,विधायक और मंत्रियों का आश्वासन तो मिला लेकिन योजना अबतक धरातल पर नहीं उतर पाई .
बोकारो :
30 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य 9 वर्ष बाद भी है अधूरा
बोकारो जिला के ललपनिया में तीस बेड का अस्पताल बन रहा है. 9 वर्ष हो गए, अभी भी अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका. ख़ास बात यह है कि मरीज के लिए अस्पताल नहीं बना, लेकिन चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों के रहने के लिए आवास बन गए हैं. लेकिन देखरेख के अभाव में वह भी जर्जर व खंडहर होता जा रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारें आती जाती रही हैं, लेकिन इस अस्पताल की तकदीर और तस्वीर नहीं बदल सकी. मालूम हो कि फरवरी 2014 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह ( दिवंगत) ने इस अस्पताल की आधारशिला रखी थी. तब ललपनिया सहित आसपास के पंचायत के लोगों को एक उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें तत्कालिक स्वास्थ्य लाभ के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन यह आशा अब निराशा में बदल गई. कांग्रेस के गोमिया प्रखंड अध्यक्ष पंकज पांडेय ने बताया कि जब शिलान्यास हुआ था उस समय काम तेजी से शुरू तो हुआ, फिर अचानक काम धीमा हुआ और बाद में बंद हो गया. मालूम हो कि स्वास्थ्य विभाग से स्वीकृत इस अस्पताल का निर्माण कार्य स्वास्थ्य विभाग के इंजीनियरिंग सेल की देखरेख में हो रहा था. इसके बाद सेल बंद हो गया और झारखंड स्टेट बिल्डिंग कोर्पोरेशन कंस्ट्रक्शन लिमिटेड को जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन यह विभाग भी उम्मीदों को पूरा नहीं कर सका..
जामताड़ा :
अनुमंडलीय कार्यालय भवन की मिली थी मंजूरी, शुरू नहीं हो सका काम
झारखंड सरकार ने साल 2022-23 के बजट में अनुमंडलीय कार्यालय भवन निर्माण के लिए 8.80 करोड़ रूपए की मंजूरी दी गई थी. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी अनुमंडल कार्यालय भवन का निर्माण शुरु नहीं हो सका है. अब जब नए बजट की तैयारी हो रही है, तो 2023-24 के बजट से पांच दिन पूर्व रविवार को विधायक डॉ.इरफान अंसारी ने अनुमंडल कार्यालय भवन निर्माण का शिलान्यास किया है. अनुमंडल कार्यालय परिसर में ही पुराना रिकॉर्ड रूम है, जिसमें जिले भर की जमीन का पर्चा, डीसी, एसी, एसडीओ और डीसीएलआर कोर्ट का अभिलेख सहित महत्वपूर्ण दस्तावेज रखे हुए हैं. इन दस्तावेजों को सुरक्षित शिफ्ट करने के लिए वैक्लपिक रिकॉर्ड रूम की तलाश की जा रही है. रिकॉर्ड रूम के दस्तावेजों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था होने के बाद ही पुराने भवनों को तोड़ा जा सकेगा. इसके बाद नए सिरे से अनुमंडल कार्यालय भवन का निर्माण हो पाएगा. इस संबंध में भवन प्रमंडल के कनीय अभियंता कालीचरण हेंब्रम ने कहा कि रिकॉर्ड रूम को शिफ्ट करने के लिए भवन चिह्नित नहीं हो सका है. इस कारण अनुमंडल कार्यालय भवन का निर्माण प्रारंभ करने में देर हो रही है.
धनबाद :
मंजूरी के बाद भी इंटर बस टर्मिनल का सपना रह गया अधूरा
वित्तीय वर्ष 2022- 23 के आम बजट में राज्य सरकार ने शहरों पर विशेष फोकस किया था. इसका लाभ धनबाद को भी मिला था. कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद धनबाद के बरवाअड्डा से ढाई किलोमीटर दूर पंडुक्की में इंटर स्टेट बस टर्मिनल का काम शुरू हुआ. जुड़को की देख रेख में 50 करोड़ खर्च कर डीपीआर भी बना. इसके बाद दो बार टेंडर निकला, लेकिन टेंडर में किसी संवेदक ने भाग ही नहीं लिया और योजना धरी की धरी रह गई. इस योजना के पूरा होने पर बरटांड़ स्थित बस डिपो का पंडुक्की में स्थानांतरण हो जाता. शहर को सड़क जाम से निजात मिलती. इस टर्मिनल में राज्य के अलग अलग अलग जिलों से बसों का ठहराव होता, साथ ही दूसरे राज्यों से आने वाली बसें भी रुकती. इसके अलावा होटल रेस्टूरेंट, प्रतीक्षालय, ऑटो स्टेंड, कैब आदि की भी सुविधा मिलती. इस योजना के पूरी नहीं होने से धनबाद के लोगों में निराशा है, इस साल के बजट में इसे पूरा होने की उम्मीद है. ज्ञात हो कि रघुबर सरकार के कार्यकाल में चार साल पहले पंडुक्की में 8.5 एकड़ जमीन पर इंटर स्टेट बस टर्मिनल की योजना बनी थी. 257 करोड़ रुपये का बजट था. यह योजना पूरी नहीं हो सकी.
लातेहार :
गजट प्रकाशन व कैबिनेट के फैसले के वर्षों बाद भी अनुपालन नहीं
झारखंड कैबिनेट का फैसला एवं गजट प्रकाशन के वर्षों बाद भी लातेहार से हेरहंज बाया नवादा पथ का चौड़ीकरण नहीं हो पाया. मालूम हो झारखंड सरकार द्वारा 28.7 किलोमीटर लंबी इस सड़क के चौड़ीकरण लिए 79. 4 9 करोड़ रुपए की पुनरीक्षित प्रशासनिक स्वीकृति सितंबर 22 में प्रदान की गई थी. इस पथ के चौड़ीकरण के लिए भू- अर्जन करने की नोटिस झारखंड गजट में प्रकाशित हुए करीब तीन वर्ष गुजर गया है. तीन वर्ष पूर्व ही इस पथ के चौड़ीकरण के लिए भू-अर्जन की कार्रवाई करने का नोटिफिकेशन जारी हुआ है. जानकारी के अनुसार भू -अर्जन विभाग में राशि भी जमा कर दी गयी है, बावजूद भू-अर्जन की कार्रवाई नहीं हो रही है. इस वजह से यह महत्वपूर्ण पथ की चौड़ाई का कार्य लंबित है. मालूम हो कि इस पथ की महत्ता काफी है. इसकी पर्यटक पथों में गिनती की जाती है. गजट प्रकाशन एवं अखबारों में भू-अर्जन की सूचना प्रकाशन के बावजूद इस सड़क का चौड़ीकरण नहीं होने से संशय की स्थिति बनी हुई है. लोगों का कहना है कि सरकार ने गजट प्रकाशित तो कर दी है, लेकिन इस दिशा में कार्रवाई लंबित है. इस सड़क के प्रवेश करते ही जुबली चौक के पास इतनी संकीर्ण है कि एक वाहन के गुजरने से दूसरा वाहन जाम में फंस जाता है.