NewDelhi : जस्टिस नरीमन ने सरकार की आलोचना करने वालों पर राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर चिंता जताते हुए कहा, यह समय राजद्रोह कानूनों को पूरी तरह खत्म करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देने का है. बता दें कि जस्टिस नरीमन हाल में मुंबई के एक लॉ स्कूल के वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि देश में राजद्रोह कानून को लेकर कुछ सालों से चर्चा जारी है. विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर इस कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाता रहा है.
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जस्टिस नरीमन ने इस कानून को खत्म करने की वकालत की
सुप्रीम कोर्ट भी इस तरफ इशारा करता रहा है. अब SC के रिटायर्ड जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने इस कानून को खत्म करने की वकालत कर रहे हैं. खबर है कि जस्टिस इस कानून को कोलोनियल माइंडसेट (औपनिवेशिक प्रवृत्ति) वाला कानून बताया है. जस्टिस नरीमन ने वर्चुअल कार्यक्रम में कहा, दुर्भाग्य से हाल के दिनों में सरकार की आलोचना करने वाले युवा, छात्र व स्टैंडअप कॉमेडियंस पर राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किये गये. यह कानून औपनिवेशिक प्रवृत्ति का है. देश के संविधान में इसके लिए कोई जगह नहीं है.
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भड़काऊ भाषण देने वालों से ठीक से निपटा नहीं जा रहा
जस्टिस नरीमन का आरोप था कि, एक ओर राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किया जा रहा है. भड़काऊ भाषण देने वालों से ठीक से निपटा नहीं जा रहा. कुछ लोग एक विशेष समूह के नरसंहार का आह्वान करते हैं, लेकिन इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती. कहा कि अधिकारी भी उदासीन हैं. दुर्भाग्य से सत्ता में उच्च स्तर पर बैठे लोग न केवल ऐसी भड़काऊ भाषा पर खामोश हैं, बल्कि उसका लगभग समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने हाल ही कहा था कि हेट स्पीच न केवल असंवैधानिक हैं, बल्कि एक अपराध है.
हेट स्पीच पर न्यूनतम सजा का प्रावधान हो
जस्टिस नरीमन ने सुझाव दिया कि संसद को हेट स्पीच के लिए न्यूनतम सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, हेट स्पीच के आरोपी को तीन साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है. लेकिन ऐसा कभी होता नहीं दिखता. सुझाव दिया कि यदि हम कानून के शासन को मजबूती देना चाहते हैं, तो संसद न्यूनतम सजा के प्रावधान के लिए कानून लाये.