Kiriburu (Sailed Singh) : आजसू जिलाध्यक्ष रामलाल मुंडा ने राज्यपाल से पश्चिमी सिंहभूम जिले के डीडीसी संदीप बक्शी का एसटी सर्टिफिकेट को रद्द करने की मांग की है. इसके लिए उन्होंने राज्यपाल को एक पत्र लिखा है. साथ ही आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो से भी विधानसभा में इस मामला को उठाने को कहा है. उन्होंने राज्यपाल को लिखे पत्र में कहा है कि झारखंड राज्य के अति पिछड़ा आदिवासी बहुल पश्चिमी सिंहभूम जिला में एक सामान्य वर्ग के पिता का पुत्र एसटी (आदिवासी कोटा) से उप विकास आयुक्त के पद पर कार्यरत एवं नौकरी कैसे कर रहा हैं. इस संबंधित मामला झारखंड हाईकोर्ट में लंबित है. झारखंड सरकार और कास्ट स्क्रूटनी कमेटी के सदस्यों के बीच इसे लेकर वर्षों से कोर्ट में केस चल रहा है. कास्ट स्क्रूटनी कमिटी के सदस्य कार्मिक, प्रशासनिक विभाग , मुख्य सचिव और अध्यक्ष, आदिवासी कल्याण आयुक्त के द्वारा उक्त पदाधिकारी को लाभ पहुंचाने के लिए लगातार कोर्ट की अवहेलना की जा रही है.
स्क्रूटनी कमेटी के सदस्यों पर भी कार्रवाई की मांग
इस संबंध में जिला से आदिवासी और सामाजिक संगठनों के साथ-साथ राजनीतिक पार्टी के द्वारा कई बार राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, आदिवासी कल्याण आयुक्त को पत्र सौंपा गया. लेकिन उक्त पदाधिकारी द्वारा अपने राजनीतिक पहुंच, पैरवी और धन के बल से सभी अधिकारी और संबंधित विभाग को मैनेज कर लिया गया है. ऐसी स्थिति में पुनः राज्यपाल के दरवाजे में न्याय के लिए झारखंड के आदिवासी अस्मिता, संस्कृति, संपत्ति को बचाने के लिए कोर्ट के द्वारा मांग की गई रिपोर्ट को भेजवाने की गुहार लगा रहे हैं. साथ ही कास्ट स्क्रूटनी कमेटी के सदस्यों के विरूद्ध कड़ी करवाई करने की आवश्यकता है. उक्त पदाधिकारी के सेवा निवृत होने तक न्यायालय को रिपोर्ट नहीं भेजने के लिए आर्थिक रूप से कास्ट स्क्रूटनी कमेटी को मैनेज किया गया है, जो गंभीर विषय है, और उच्च स्तरिय जांच कराने की आवश्यकता है.
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने दायर किया था पिटिशन
विदित हो कि कोर्ट की आवमाना किए जाने को लेकर जिला के एक सामाजिक कार्यकर्ता नूरी कुंकल के द्वारा पक्ष कार के रूप में न्यायालय में पिटीशन दायर किया गया था. जिसे किसी न किसी रूप से मैनेज कर उक्त केस से हटाने पर मजबूर किया गया. इसकी भी जांच राज्य के आदिवासी हित में जरूरी है. यदि उक्त पदाधिकारी अपने पहुंच पैरवी के बल पर कास्ट स्क्रूटनी कमेटी से अपने पक्ष में न्यायालय को रिपोर्ट दाखिल करवाने में सफल हो जातें हैं तो यहां के आदिवासी का अहित हो जायेगा.