Kiriburu (Shailesh Singh) : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला अन्तर्गत लौहांचल के बड़ाजामदा में स्थित केंद्रीय चिकित्सालय पिछले दो दशकों से खुद बीमार है. यह अस्पताल विभिन्न खदानों में कार्य करने वाले मजदूरों का इलाज करने में पूरी तरह से अक्षम साबित हो रहा है. इस अस्पताल की सारी व्यवस्था पूरी तरह से धारासायी हो चुकी है. खाना पूर्ति के लिये यहां सिर्फ एक चिकित्सक व दो-तीन नर्सों की नियुक्ति की गयी है, ताकि केन्द्र सरकार से इस अस्पताल के लिये आने वाली फंड का बंदर बांट किया जा सके. उल्लेखनीय है कि बड़ाजामदा का यह केन्द्रीय अस्पताल शेष अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है. लगभग 27 एकड़ जमीन में निर्मित 52 बेड क्षमता वाले इस अस्पताल का शुभारंभ 17 सितंबर 1978 को केंद्रीय राज्य श्रम मंत्री लारंग साई द्वारा किया गया था.
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मजदूरों व उनके परिजनों के बेहतर इलाज के लिए किया गया था अस्पताल का निर्माण
इस अस्पताल के निर्माण झारखंड-ओडिशा स्थित विभिन्न खदानों में कार्य करने वाले मजदूरों व उनके परिजनों का बेहतर व निःशुल्क इलाज करने के उद्देश्य से किया गया था. इस अस्पताल में आने वाले मरीजों का इलाज और तमाम व्यवस्था पर होने वाले खर्च की भरपायी तमाम खदानों के डिस्पैच से आने वाले खर्च से किया जाता था. अर्थात शेष फंड के रूप में इस चिकित्सा व्यवस्था को संचालित करने के लिए तमाम खदान प्रबंधने प्रति टन अयस्क की प्रेषण पर केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित रकम देती थी. इसी पैसे के बदौलत प्रारंभ में यहां सभी रोगों के विशेषज्ञ चिकित्सक, बेहतर एक्स-रे मशीन, पैथोलौजी, एम्बुलेंस, दवा आदि की तमाम सुविधाएं थी. हालांकि, बदलते समय के अनुसार यहां सारी सुविधाएं खत्म होती गई.
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अस्पताल में केवल एक डॉक्टर, वह भी मौके पर नहीं रहते उपलब्ध
आज आलम यह है कि इस अस्पताल में वर्तमान समय में एक चिकित्सक डॉ. दीपक कुमार के अलावा दो-तीन नर्सों को छोड़ कुछ भी नहीं है. अस्पताल का सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर, बेड, एम्बुलेंस, एक्स-रे मशीन आदि लगभग पूरी तरह से नष्ट हो चुका है. यही कारण है कि कोई मरीज यहां अपना इलाज कराने नहीं जाता है. यदि कोई चला भी गया तो एक नर्स के सिवाय मौके पर डॉ आदि कोई उपलब्ध नहीं दिखता. साथ ही यहां दवा भी नहीं मिलता. विदित हो कि इस अस्पताल प्रांगण में एक मात्र कुआं हैं, जो जर्जर स्थिति में है. जिसका पानी पीने लायक नहीं है, लेकिन इसके सिवाय यहां दूसरी कोई व्यवस्था भी नहीं है.
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श्रम कल्याण आयुक्त की देखरेख में अस्पताल होता है संचालित
यह अस्पताल श्रम कल्याण आयुक्त की देखरेख में संचालित होता है. हाल ही में कपछ माह पूर्व रांची से श्रम कल्याण आयुक्त ने इस अस्पताल का दौरा भी किया था. लेकिन अस्पताल की व्यवस्था कैसे सुधरेगी उस पर कुछ भी नहीं कहा. अस्पताल के चिकित्सक डॉ. दीपक का कहना था कि हमने कई बार उच्च अधिकारी को यहां की व्यवस्था सुधारने व सुविधाओं को बहाल करने के लिये पत्र लिखा. लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ. उनका कहना है कि खदानों के बंद होने की वजह से शेष निधि में पर्याप्त फंड नहीं आने की वजह से संभवतः व्यवस्था नहीं सुधर पा रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब लौह अयस्क की तमाम खदानें इस लौहांचल क्षेत्र में संचालित थी व लौह अयस्क का कारोबार चरम पर था, तब क्यों नहीं व्यवस्था सुधारी गई? वहीं, अब जब डीएमएफटी फंड में खदान प्रबंधने प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये जमा कर रही है, फिर भी स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो रहा है?
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