Kiriburu : भाकपा माओवादी संगठन के दक्षिणी जोनल कमिटी के प्रवक्ता अशोक ने आज प्रेस बयान जारी कर 2022 पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने का ग्रामीणों से आह्वान किया है. इसके विकल्प में गांव-गांव, इलाके इलाके में जनता की जनसत्ता व सरकार के निकाय क्रांतिकारी जन कमेटी का निर्माण करने की बात कही है. उसने पत्र में कहा है कि ग्राम पंचायत के मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य पद पर खड़े होने वाले प्रत्याशी झूम उठे होंगे. झूमेंगे क्यों नहीं क्योंकि चुनाव जीतने से तो पांच साल तक उनके पांचों ऊंगलियां घी में होंगे. हर महीना वेतन मिलेगा, विकास के नाम पर खर्च के लिए अब मुखिया, प्रमुख और जिला परिषद सदस्य को लाखों-करोड़ों रुपए फंड मिलेगा.
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पंचायत चुनाव कितने ही बार हो चुके और मुखिया, सरपंच या पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य बदले गये, उनकी तो तकदीर बदल गई. लेकिन हम ग्रामीण गरीब जनता की तकदरी तो और भी बदतर हुई. इसलिए हम इस पंचायत चुनाव में क्यों हिस्सा लें! ये मुखिया , पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य किस काम के! ना तो पीने को स्वच्छ पानी की व्यवस्था है, आज भी गांवों की जनता नाले व चुंआं के ही पानी पीते हैं. फसल उत्पादन के लिए ना तो तालाब, चैक डैम और नहर बनाकर सिंचाई की व्यवस्था करते हैं, ना तो खाद-बीज, कीटनाशक दवा की व्यवस्था करते हैं. ना तो इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ही है, कहीं अपवाद में स्वास्थ्य केन्द्र है भी तो केवल दिखावे के लिए है. वहां न डॉक्टर आते हैं और न तो कोई दवा उपलब्ध है. स्कूल है तो शिक्षक नहीं, शिक्षक हैं भी तो केवल अपनी हाजिरी बनाने आते हैं. बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं. केवल मध्याह्न भोजन बच्चों को खिलाकर छुट्टी कर देते हैं.
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सरकारी स्कूली शिक्षा का क्या हाल है शिक्षा मंत्री बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हैं. पूरे झारखण्ड को बाहर में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया है, लेकिन यह केवल कागजी खानापूर्ति ही है. ग्रामीण क्षेत्रों में अपवाद स्वरूप ही किसी-किसी गांवों में दिखावे के लिए दो-चार शौचालय बनाकर पूरे गांव के शौचायल के पैसे मुखिया, प्रमुख और ब्लॉक के अफसर आदि मिलकर बंदरबांट कर लिये. उदाहरणस्वरूप गोइलकेरा थानान्तर्गत आराहासा पंचायत के मुखिया रवीन्द्र पूर्ति पूरे पंचायत के शौचालय फण्ड के 16 लाख रुपए का घोटाला की खबर अखबारों की सुर्खियों में आई थी. लेकिन पुलिस-प्रशासन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की. क्योंकि वहां आराहासा में ग्रामसभा की अनुमति के बिना गांव के मुण्डा को दबाव देकर सीआरपीएफ कैम्प स्थापित करने हेतु स्वीकृति पत्र में हस्ताक्षर करवाने में मुखिया को इस्तेमाल किया. इसीलिए उस पर कार्रवाई नहीं की. अन्य दूसरे पंचायत का भी यही हाल है. इसलिए पंचायत चुनाव में वोट देकर मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य को चुनने से हम ग्रामीण गरीब जनता को क्या फायदा! व्यवहार में देखा जाए तो कोई फायदा नहीं.
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इन लोगों का काम केवल आधारकार्ड, राशनकार्ड, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण-पत्र बनवाने के दौरान आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई काम नहीं है. अभी तो बाकी काम यानी सरकार के तरफ से गांव में जनता के बीच बांटे जाने वाले भीख जैसे कंबल, साड़ी-धोती, लूंगी, खेल सामग्री, बच्चों को भुलावे के लिए किताब, कॉपी-कलम, ड्रेस पोशाक आदि का वितरण जनप्रतिनिधि यानी मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद सदस्य नहीं, बल्कि पुलिस व अर्द्धसैनिक बल के जवान करते हैं. ये जवान लोग अब जनप्रतिनिधि बन गये हैं और सरकारी भीख जनता के बीच बांटने और जनता को भिखारी बनाकर रखने का ठेका ले लिया है. यह और कुछ नहीं, जनता के दिलों को जीतने की पुलिस व अर्द्धसैनिक बल (सीआरपीएफ, आइआरबी, झारखण्ड जगुआर) की नौटंकी है.
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वास्तव में जनता के हितैषी होते तो ये जवान लोग आदिवासी जनता के मौलिक अधिकार जल-जंगल-जमीन पर अधिकार कायम करने, पेसा कानून के तहत गांव की ग्रामसभा ही एक प्रशासनिक इकाई है उसकी स्थापना करने में मदद करते. लेकिन वे इसमें मदद नहीं करते, बल्कि उल्टे पेसा कानून का धज्जियां उड़ाकर पेसा कानून को पत्थर में उकेर कर गांव में गाड़नेवालों को ही देशद्रोही का आरोप लगाकर गिरफ्तार करके जेल में डालते हैं. ग्रामसभा पर हस्तक्षेप कर ग्रामसभा के अनुमति के बिना गांव के जमीन को कब्जा कर जनता के विरोध के बावजूद जबरदस्ती पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के कैम्प स्थापित करते हैं. विरोध करनेवाली जनता को माओवादी का लेबल लगाकर बर्बरतापूर्वक पिटाई करके चुप करवाते हैं.
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पंचायत चुनाव में खड़े मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के उम्मीदवार वोट मांगने आएंगे तो उनसे जवाब तलब करें कि विगत 70 साल से पंचायत चुनाव होते आ रहा है, लेकिन आज तक जनता की एक भी बुनियादी समस्या का हल क्यों नहीं हुआ, पहले उसका जवाब दो. इस तरह मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के उम्मीदवार को जवाब-तलब करते हुए इसका सही जवाब नहीं देने पर वोट नहीं करें. संवैधानिक तौर पर वोट देने का अधिकार है, तो बहिष्कार करने का भी जनवादी अधिकार है. इसलिए पंचायत चुनाव का सक्रिय रूप से बहिष्कार करें, पंचायत चुनाव में एक भी वोट ना पड़े, इसकी गारंटी करें. डियंग (हंड़िया), शराब पिलाकर वोट दिलाने वाले बिचौलिया और दलाल के बहकावे में ना आएं और वोट ना दें. बिचौलिया और दलाल को पकड़कर जूता का माला और चूना का टीका लगाकर जुलूस में घुमाएं.