Kiriburu : पश्चिम सिंहभूम जिला अन्तर्गत सारंडा का अत्यंत नक्सल प्रभावित दीघा पंचायत का हतनाबुरु गांव में हो समुदाय के आदिवासी रहते हैं. इस गांव की कुछ विशेष परम्परा है जो लोगों को एक रहस्यमय संसार में पंहुचा देती है. यह परम्परा अचंभित किए बगैर नहीं छोड़ती. यहां के आदिवासी सदियों पुरानी पौराणिक परम्परा को बचाए रखने को विवश हैं. लगातार न्यूज संवाददाता जब घोर नक्सल प्रभावित हतनाबुरु गांव से आगे दीकूपोंगा गांव की तरफ बढे़ तभी घने व सुनसान जंगल में अचानक अलग वेश-भूषा में एक व्यक्ति को पैदल जाते देख सहम व चौंक गए. उक्त व्यक्ति अपने सिर पर एक वन्यप्राणी का अंग लगाए अलग ही वेश-भूषा में हाथ में थैला पकडे़ पैदल जा रहा था. जब उसे रोक उसके इस वेश-भूषा के बारे में पूछा गया तो पहले उसने अपना नाम मोटाय और गांव हतनाबुरु बताया. वह डकुवा (पुजारी) है.
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उसने कहा कि हमारी परम्परा यह है कि दुर्गापूजा के दौरान इस रूप को धारण कर आसपास गांवों में घूम-घूम कर भिक्षाटन अथवा लोगों से सहयोग (जिसमें चावल अथवा पैसा) लेते हैं. लोगों द्वारा दिए गे सहयोग से हम पारम्परिक तरीके से पूजा-पाठ करते हैं, ताकि हमारा और आसपास के गांवों में प्राकृतिक आपदा, बीमारी आदि संकट का प्रवेश न हो. गांव तरक्की व खुशहाली के पथ पर अग्रसर हो. कुछ अंजान लोग इस परम्परा के बाबत नहीं जानते हैं और जंगल में हमें अकेले इस रूप में देख डर से भाग खडे़ होते हैं. गांव की यह वर्षों पुरानी परम्परा है जिसे आज भी जिंदा रखा गया है. आने वाली नई पीढ़ी शायद इस परम्परा को आगे नहीं बढ़ा पाए और यह परम्परा भी भविष्य में इतिहास बन जाए. उन्होंने कहा जब तक वे हैं इस परंपरा को जिंदा रखेंगे.