Kiriburu (Shailesh Singh): लौहांचल के तमाम प्राइवेट खदानों के वर्षों से बंद रहने की वजह से की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है. इनमें हाइवा, डम्फर, लाइन ट्रक आदि भारी मालवाहक वाहनों, खदानों में भाड़े पर चलने वाले छोटे वाहन के मालिकों समेत खदानों में कार्य करने वाले हजारों अधिकारी व कर्मचारी, होटल, लॉज समेत तमाम प्रकार के दुकानदारों, पेट्रोल पंप संचालक, टायर पंक्चर दुकान से लेकर फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले लोगों की लंबी लिस्ट है.
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तीन वर्ष पहले तक होती थी 3000 करोड़ की कमाई, अब हजारों हुए बेरोजगार
इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की कई खदानें तीन वर्ष पूर्व तक चालू थीं. इन खदानों से लगभग 60 लाख मिलियन टन लौह अयस्क का वार्षिक उत्पादन होता था. इस उत्पादित अयस्क के एवज में तमाम खदान प्रबंधनों को लगभग 3000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष प्राप्त होता था. इसमें से लगभग 20 (19.5) फीसदी राशि अर्थात लगभग 600 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष सरकार को राजस्व के रूप में प्राप्त होता था. तब खदान प्रबंधनें लौह अयस्क बेचकर मिलने वाली रकम से खदान में काम करने वाले लगभग 300 से अधिक अधिकारी व कर्मचारी, लौह अयस्क की ढुलाई हेतु प्रत्येक खदान में चलने वाली लगभग 200-300 हाईवा, ट्रक, छोटे वाहन आदि के चालक, खलासी, ट्रांस्पोर्टर आदि को पैसा देती थी. इसके अलावे आसपास के गांवों में सीएसआर के तहत विकास योजनाएं चलाने, डीएमएफटी फंड में क्षेत्र के विकास हेतु करोड़ों रुपये देती थी. लेकिन इन खदानों के बंद होने से हजारों लोगों के बेरोजगार होने के साथ-साथ पूरे लौहांचल के सभी वर्ग के लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.
डीजल-पेट्रोल की बिक्री में 60-70 फीसदी गिरावट
बडा़जामदा स्थित इंडियन ऑयल के एक पदाधिकारी से संपर्क करने पर उन्होंने लगातार न्यूज को बताया कि खदानें बंद होने से पेट्रोल पंप के कारोबार पर काफी बुरा असर पडा़ है. पहले की तुलना में डीजल-पेट्रोल की बिक्री में 60-70 फीसदी गिरावट आई है. पहले पंप पर दिन-रात वाहनों की लंबी कतारें डीजल लेने के लिये लगी रहती थीं. अब वे बैठकर वाहनों के आने का इंतजार करते रहते हैं.
कर्ज में डूबे वाहन मालिकों के सामने कोई रास्ता नहीं: अरविन्द चौरसिया
माइनिंग एरिया ट्रक ऑनर एसोसिएशन बडा़जामदा के अध्यक्ष अरविन्द चौरसिया ने बताया की जिस ट्रक का बैंक लोन खत्म नहीं हुआ है उसके मालिक परेशान व कर्ज में डूबे हैं. सिर्फ टीएसएलपीएल की एक खदान चालू है. इसमें एक ट्रक को महीना में मुश्किल से 15 दिन एक-एक लोकल ट्रीप करने मिलता है. इस हिसाब से एक हाइवा मालिक को 40-50 हजार रुपये मिलता है. इतने कम पैसा से वह हाइवा का किस्त, चालक-खलासी का वेतन, वाहन का मेंटेनेंस आदि कैसे कर सकता है. अरविन्द चौरसिया ने बताया कि अब तो खदान प्रबंधन छह चक्का वाले टीपर एवं 10 साल पुराने हाइवा को खदान में नहीं चलने देने की बात कह रहा है. ऐसी स्थिति में वाहन मालिक के सामने मरने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है.
कई के ट्रक फाइनेंस कंपनी खींच ले गई
अरविन्द चौरसिया ने कहा कि लोन पर सिर्फ अपने रोजगार के लिये हाइवा, ट्रक खरीदने वाले वाहन मालिकों का सबसे बुरा हाल है. ये वाहन मालिकों ने विभिन्न फाइनेंस कंपनियों से रोजगार के उद्देश्य से लोन लिया था, ताकि इसके जरिये अपना तथा परिवार का पेट पाल सके. लेकिन खदानों के बंद होने के साथ ही इनके सपने भी पूरी तरह से टूट गए हैं. कई के ट्रक फाइनेंस कंपनी खींच ले गई तथा कई की खींचने वाली है. वाहन मालिकों का कहना है कि जब अनेक खदानें चालू थीं तो प्रतिदिन हर वाहन को 3-4 ट्रिप लोड विभिन्न खदानों से मिल जाता था. जिससे सभी में खुशहाली थी एवं वाहन मालिकों को कुछ पैसा भी बचता था. लेकिन वर्तमान हालात में हमारे दुर्गापूजा, दीपावली, होली आदि सभी त्योहार फीका व निराशा भरे रह गए हैं. जब पैसा नहीं है तो उत्साह कैसे मनाएंगे.
पेट पालने के लिये निरंतर अन्य राज्यों में पलायन जारी
खदानें बंद होने के पहले बड़बिल से हावड़ा जाने वाली जन शताब्दी ट्रेन के अलावे बसों में भी बैठने के लिये सीट नहीं मिलती थी. लेकिन अब पूरी ट्रेन व यात्री बसें खाली जाती हैं. पूरे क्षेत्र में बेरोजगारी व भुखमरी की स्थिति बनी हुई है. लोग पेट पालने के लिये निरंतर अन्य राज्यों में पलायन कर रहे हैं. पलायन करने वालों में स्कूली बच्चे व बाल मजदूर भी शामिल हैं. सरकार मानव तस्करी व बाल मजदूरों को कानूनी प्रावधानों के तहत रोक तो रही है. लेकिन उनके अभिभावक को रोजगार कैसे उपलब्ध हो जिससे वह अपना व परिवार का पेट भर सके, उस दिशा में कोई कार्य नहीं कर रही है. लौहांचल की तमाम छोटे शहरों व बाजारों से रौनक व खुशहाली गायब है. बेरोजगारी के इस दौर में महंगाई जले पर और नमक छिड़कने का कार्य कर रही है. खाने-पीने से लेकर रोजमर्रा के तमाम समानें महंगी हो गई ंहै. लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे, कहां जाये.
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