Kiriburu (Shailesh Singh) : वर्ष 2011 में केन्द्र व राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से सारंडा के लगभग 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासियों व मूलवासियों का सर्वांगीण विकास व नक्सलियों का सफाया हेतु कुछ माह के अन्तराल में विशेष रणनीति के तहत पहले नक्सलियों के खिलाफ चलाया गया आपरेशन ऐनाकोंडा तथा इसके तुरंत बाद सारंडा एक्शन प्लान चलाया गया था. इसे बाद में सारंडा डेवलपमेंट प्लान नाम दिया गया. सारंडा डेवलपमेंट प्लान से सारंडा के ग्रामीणों को कितना लाभ अथवा नुकसान हुआ यह पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं के साथ-साथ आम जनता के समझ से परे है. सारंडा एक्शन-डेवलपमेंट प्लान के दौरान हुये तमाम कार्यों का पूर्ण बायोडाटा अभी भी सरकार व प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है. उस प्लान के अन्तर्गत कराये गये कार्यों में से कितना पूर्ण हुआ अथवा कितना अपूर्ण है. यही वजह है कि सारंडा में अनेक विकास योजनाओं को धरातल पर लाने से प्रशासनिक विभाग घबरा रही है, क्योंकि तबके पूर्ण या अपूर्ण योजना में से कोई दुबारा योजना उसी कार्य हेतु प्रारम्भ कर दिया जाता है तो मामला फंस सकता है अर्थात् जांच के घेरे में भी आ सकता है. इस कारण सारंडा के लोग आज भी तमाम प्रकार के विकास योजनाओं से वंचित हो रहे हैं. वर्ष 2011 में नक्सलियों के खिलाफ चला ऑपरेशन ऐनाकोंडा का तो भारी लाभ मिला, लेकिन सारंडा एक्शन प्लान का लाभ नहीं के बराबर सारंडा वासियों को मिला.
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अधिकारियों ने आदिवासियों का दिल जीतने के लिए बनाई थी रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि 18 से 20 अक्टूबर 2011 को पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार के अधिकारियों की एक विशेष टीम जिसमें एन मुरुगानंदम (संयुक्त सचिव, मनरेगा), नीता केजरीवाल (निदेशक, एनआरएमएल), एस पी वशिष्ठ (निदेशक, मनरेगा), कमलेश प्रसाद (एनएमएमयू), मीरा चटर्जी, वरुण सिंह, विनय वुतुकुरु (तीनों विश्व बैंक), परितोष उपाध्याय (स्पे. सचिव आरडी विभाग, झारखंड), एसएन पांडेय (प्रोजेक्ट निदेशक, जेएसएलपीएस, झारखंड) आदि शामिल थे. इन सभी को सारंडा में विकास की गंगा बहाकर आदिवासियों का दिल जीतने के लिए विकास से संबंधित रिपोर्ट तैयार करने भेजी थी. उक्त अधिकारियों ने विकास से संबंधित रिपोर्ट तैयार करने से पहले तब के उपायुक्त के श्रीनिवासन, एसपी अरुण कुमार सिंह, सारंडा डीएफओ केके तिवारी, विकास आयुक्त डी गुप्ता, आरएस पोद्दार (पीआरएल सचिव, आरडी) आदि से विकास व नक्सल मामले में विस्तृत चर्चा कर अपनी रिपोर्ट पूर्व मंत्री जयराम रमेश को भेजा. इसमें जिला प्रशासन द्वारा मनोहरपुर प्रखंड के छह ग्राम पंचायतों के 56 गांवों, जिसमें 10 वन ग्राम व 10 झारखंडी ग्राम को कवर करते हुए सारंडा एक्शन प्लान तैयार किया था. इस रिपोर्ट के अनुसार सारंडा के लगभग सात हजार परिवारों (आबादी लगभग 37 हजार) को सीधे लाभ पहुंचाना था.
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540 करोड़ की स्वीकृति मिली और खर्च हुए 454 करोड़ रुपए
सारंडा एक्शन प्लान के लिये लगभग 540 करोड़ रुपये की स्वीकृति की बात सामने आयी थी, लेकिन बाद में यह कहा गया कि 454 करोड़ रुपये खर्च हुये थे. इन पैसों से लघु (छह माह के अन्दर) तथा मध्यम अवधि (दो साल के अंदर) की योजना बनाई गई. इसमें इंदिरा आवास योजना के तहत लगभग चार हजार परिवारों के लिए मकान बनाना, मनरेगा कार्यों के लिए स्थानीय आदिवासी युवाओं से 56 रोजगार मित्रों की नियुक्ति, जिसके लिए 6 हजार से अधिक जॉब कार्ड बनाकर लोगों को रोजगार से जोड़ना, पीएमजीएसवाई के तहत 11 सड़कों और एक पुल का निर्माण किया. वन अधिकार अधिनियम के तहत लगभग 2,122 दावे प्राप्त हुए थे, जिसका वितरण, 7 हजार सौर लालटेन, 7 हजार ट्रांजिस्टर और 7 हजार साइकिलों का वितरण (सेल प्रबंधन द्वारा), सेल के सीएसआर कार्यक्रम के तहत पांच मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों का शुभारंभ, लगभग 36 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए छह वाटरशेड विकास परियोजनाओं की शुरुआत, शुद्ध पेयजल आपूर्ति हेतु विभिन्न गांवों में 200 हैंडपंप लगाना, मनोहरपुर प्रखंड के दीघा समेत सभी छह पंचायतों में एक-एक आईडीसी (इंटिग्रेटेड डेवलपमेंट सेंटर) का निर्माण ताकि किसी भी कार्य के लिये ग्रामीणों को प्रखंड व जिला मुख्यालय का चक्कर नहीं लगाना पडे़. राशन कार्ड से वंचित लोगों को राशन कार्ड प्रदान करना, बीपीएल सूची में छूटे हुए परिवारों को शामिल करने के बाद, सभी पात्र व्यक्तियों को ओएपी पेंशन, विधवा पेंशन और अन्य पेंशन प्रदान करने के लिए विशेष शिविर आयोजित करना, बैंक व डाक घर दूर होने की वजह से पेंशन व मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान के लिए गठित भुगतान समिति के समक्ष नकद भुगतान किया जाना, स्कील डेवलपमेंट हेतु नर्सिंग, मोबाईल बनाने, ड्राईविंग, सिलाई आदि का प्रशिक्षण दिलाना, एनआरएलएम के तहत आजीविका हेतु युवाओं को रोजगार से जोड़कर कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर खनन और अन्य क्षेत्रों में रोजगार से जोड़ना. उस समय क्षेत्र में करीब 12 बड़ी खनन कंपनियां काम कर रही थी. झारखंड में जेएसएलपीएस परियोजना 12 संगठनों के साथ काम कर रही थी जो एलएंडटी, डॉन बॉस्को और आईएल एंड एफएस सहित रोजगार से जुड़े कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रहे थे. जेएसएलपीएस, जो एनआरएलएम को लागू करने के लिए राज्य में नोडल एजेंसी है को मनोहरपुर को एनआरएलएम के तहत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शामिल करना. मुख्यमंत्री दाल-भात योजना के तहत सारंडा में 10 नए केंद्र खोलने का प्रस्ताव, आदिवासियों को सशक्त बनाने और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए, एसएचजीएस और उनके संघों में सामाजिक जुड़ाव बनाना, सारंडा में आजीविका हेतु उन्नत कृषि और बागवानी को बढ़ावा देना, पशुपालन और मुर्गी, बकरी पालन का विकास, जनजातीय कार्य मंत्रालय की योजना के तहत सारंडा में दस आवासीय विद्यालयों का निर्माण आदि अनेक योजनाओं पर कार्य प्रारम्भ हुये थे. लेकिन प्रायः योजनाएं भारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये. इनमें से कई योजनाएं आज तक धरातल पर उतर हीं नहीं पाये हैं तथा कुछ योजनाएं जैसे सड़क, दीघा का आईडीसी सेंटर आदि उतरे भी तो उसका थोड़ा भी लाभ जनता को नहीं मिल पा रहा है.
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जिला प्रशासन के पास नहीं है योजनाओं की जानकारी
विश्वस्त सूत्र का कहना है कि सारंडा एक्शन प्लान से जुड़ी अनेक योजनाओं के पूर्ण या अपूर्ण होने संबंधित विस्तृत जानकारी जिला प्रशासन के पास आज तक उपलब्ध नहीं है. अगर उक्त तमाम योजनाएं व स्वीकृत राशी ईमानदारी से सारंडा के विकास पर खर्च हो जाती तो आज सारंडा के 56 गांवों के लोगों को बुनियादी सुविधाओं से जूझना व इसके लिये अभी भी संघर्ष नहीं करना पड़ता. सारंडा के बेरोजगारों का जौब कार्ड बना लेकिन मनरेगा से रोजगार नहीं मिल रहा है. मनरेगा योजनाओं के नाम पर रोजगार सेवक व प्रखंड के उच्च अधिकारी मिलकर भारी लूट मचाये हुये हैं. इस योजनाओं की जाँच किसी स्वतंत्र एजेंसी या पूर्व न्यायाधीश की कमिटी बनाकर कर दिया जाये तो चौकाने वाला भ्रष्टाचार सामने आयेगा. आज भी सारंडा में चिकित्सा, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, संचार, यातायात आदि सुविधाओं का बुरा हाल है.