Arun Burnwal
Koderma: कोडरमा के डोमचांच प्रखंड के ढोराकोला के ढिबरा मजदूर की बेटी शमा परवीन इन दिनों चर्चा में है. धरने पर बैठी यह बच्ची पढ़ाई नहीं होने के साथ दूसरी और समस्या से परेशान है. साथ ही पूरा मजदूर वर्ग परेशान है. शमा समेत जहां दूसरे बच्चों की पढ़ाई बाधित है, वहीं मजदूरों की आजीविका पर संकट गहराता जा रहा है.
बता दें कि कोडरमा जिले के अधिकतर लोग ढिबरा से अपनी जीविका चलाते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले बहुत सारे मजदूर ऐसे हैं, जो केवल ढिबरा पर ही जीवित है. वे ढिबरा उत्खनन को लेकर सरकार से ठोस नीति बनाने की मांग कर रहे हैं. इसे लेकर ढिबरा मजदूरों ने कुछ दिन पहले समाहरणालय में अनिश्चितकालीन धरना भी दिया था. जिसे उपायुक्त और पुलिस कप्तान के आश्वासन के बाद समाप्त कर दिया गया था. लेकिन अभी तक आश्वासन पूरा नहीं हो सका है. समस्या अब भी मौजूद है. उस आंदोलन में शमा परवीन ने अपनी पढ़ाई की बात उठाई थी. उसने कहा था कि क्या हम सब फिर से स्कूल नहीं जा पाएंगे, केवल डीसी और एसपी के बच्चे ही पढ़ सकते हैं. हमलोग नहीं पढ़ सकते हैं.
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अभी स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं
शमा ने कहा कि दस दिनों के आंदोलन के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. हमलोग ढिबरा चुन कर बेचकर घर का खर्च पूरा करते हैं. हमलोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या है. हम अभी स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं. हमारी पढ़ाई बाधित हो रही है. हमलोगों के पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं तो हमलोग अपनी पढ़ाई कैसे जारी रख पाएंगे. शमा ने कहा कि धरने में हर दिन लगभग 5 से 10 हजार रूपये खर्च होते थे. उतना पैसा हमलोगों के पास नहीं है. हमलोग ढिबरा से हर दिन लगभग 400 से 500 रूपये कमाते हैं. हमलोग हर दिन उतना खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं. उस वक्त कुछ लोगों ने हमारी मदद की थी. जिससे दस दिनों तक धरने पर बैठ पाए थे. पैसा नहीं रहने की वजह से हमारे गांव के एक मजदूर स्थिति बहुत गंभीर है. वह अपना इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं. अगर हमारी समस्या का निदान नहीं होगा तो हम सरकार तक जाएंगे.
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