Faisal Anurag
कुछ समय के अंतराल पर बारबार कोल्हान से उठने वाली अलग देश की मांग न केवल राजनैतिक नेताओं,प्रक्रियाओं और सिस्टम की नाकामयाबी को प्रदर्शित करती है बल्कि ऐतिहासिक तौर पर संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को जमीन पर उतारने के संकल्प की नाकामयाबी की कहानी भी कहती है. पिछले सात दशकों से इन इलाकों का प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधियों की भी यह विफलता है जो न तो लोगों का भरोसा जीत सकें और न ही संविधान के संकल्पों से आम लोगों को रूबरू करा सके हैं. सिर्फ एमएलए, एमपी बनने की राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में उलझे नेता अपनी ही जमीन से कितना गाफिल हैं कोलहान का विवाद इसका भी एक उदाहरण है. ऐतिहासिक तौर पर कोलहन के संवेदनशील मामलों से निपटने की प्रशासनिक तैयारी भी कितनी कम और लापरवाही भरी है इसे भी कोल्हान की घटनाएं उजागर करती रही हैं. सरकार,राजनैतिक दल और समाज के प्रबुद्ध तबकों से यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाजों के असंतोष को दूर क्यों नहीं किया जा सका है.
ताजा विवाद कोल्हान गवर्नेंट इस्टेट के नाम पर शिक्षकों और सिपाही नियुक्ति से उपजा है. आखिर एक समूह को छूट किस तरह मिली कि उसने सरकार को ही चुनौती दे दी. इस चुनौती से निपटने की नाकामयबी और राजनैतिक दलों की खामोशी बताती है कि मामला सामान्य तो नहीं ही है. सरकार और सरकार में शामिल राजनैतिक दल यदि इस संदर्भ में खामोश हैं तो विपक्ष का भी यही हाल है. नियुक्ति की प्रक्रिया कोई एक दिन, सप्ताह या महीने में तो अंजाम नहीं दिया गया. इसकी तैयारी लंबे समय से की जा रही थी. 2018 में भी कोल्हान अलग राज्य की मांग उठी थी, तब राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी, लेकिन उसने भी इतने संजीदा मामले के स्थायी हल की दिशा में कदम नहीं उठाया.
झारखंड में ही चार साल पहले पत्थलगड़ी आंदोलन का शोर उठा था. तब अनेक लोगों पर देशद्रोह के मामले दर्ज हुए, लेकिन आदिवासी असंतोष के सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भों को हल करने की दिशा में कदम नहीं उठाया गया.यदि देखा जाए तो कोल्हान इस्टेट का ममाला हो या फिर पत्थलगड़ी का दोनों ही स्वायत्तता की मांग करते रहे हैं. 1898 में अंग्रेजों के समय दो रिपार्ट तैयार की गयी थी. एक रिपार्ट का शीर्षक था : फाइलन रिपोर्ट आन दें सेट्लमेंट आफ द कोल्हान गवर्मेंट इस्टेट इन द डिस्ट्रिक्ट आफ सिंहभूम और एक अन्य रिपोर्ट दामिनीकोह इस्टेट के संदर्भ में तैयार की गयी थी.जिसका संबंद्ध संतालपरगना से था. पहली रिपोर्ट डाल्टन के अध्ययनों के आधार पर बंगाल गवर्मेंट के रेवेन्यू विभाग ने प्रकाशित किया था और दूसरी रिपोर्ट सदरलैंड ने तैयार की थी. इन रिपोर्ट का सार यह था कि आदिवासियों की संस्कृति,समाजिक व्यवस्था और प्रशासनिक सिस्टम में बगैर दखल के अंग्रेजी प्रभुत्व को किस तरह कारगर बनाया जाए. इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि आदिवासी समाजों की भागीदारी उनके स्वशासी पद्धति को मान्यता दे कर ही स्थापित की जा सकती है. संविधान की पांचवीं अनुसूची और 1996 के पेसा एक्ट को नजरअंदाज करना असंतोष के बुनियादी कारक जैसे हैं. आदिवासी समूहों की भूमि, पर्यावरण और सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित रखने के लिए औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक समय दोनों के दौरान आंदोलन हुए. लेकिन आंदोलनों को स्थायी तौर पर हल करने के बजाय सरकारों और राजनैतिक दलों ने अपने हितों के लिए आंदोलनों का इस्तेमाल किया. इसी का परिणाम है कि न तो पांचवी अनुसूची और न ही पेसा एक्ट को लागू करने के प्रति संजीदगी नजर आती है और न ही झारखंड के जल,जंगल,जमीन और खदानों के संरक्षण का संकल्प नजर आता है. इसी शून्यता यानी वैक्यूम का लाभ डठाने वाली ताकतें उठ खड़ी होती हैं. पूरी राजनैतिक प्रणाली की नाकामयाबी यह है कि नेता और कार्यकर्ता केवल चुनाव के समय ही सक्रिय नजर आते हैं. रोजगार के सवाल को हल करने की विफलता युवाओं को भटकाने की राह आसान कर देती है.विकास की अंधी सुरंग में झारखंड के विभिन्न अंचल यदि फंसे हुए हैं तो जाहिर है कि एक ठोस और वैज्ञानिक विकास की नीति बनाने में झारखंड पिछले 22 सालों से नाकामयाब ही रहा है. बिहार के समय तो इन इलाकों को प्रथमिकता की सूची में कभी रखा ही नहीं गया. राजीव गांधी पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने हाटगम्हरिया में सभा कर आदिवासी स्वशासन के मानकी मुंडा सिस्टम को मान्यता देने का वायदा किया था और पंचायती राज के उनके सपने का वह हिस्सी भी था. 1996 में पेसा एक्ट बना लेकिन इस कानून की नियमावली 26 सालों में भी नहीं बनायी गयी है. 22 सालों से झारखंड की सरकारों ने इस एक्ट को लागू करने के बजाय आदिवासी स्वशासन के संवेदनशील मुद्दे को नजरअंदाज ही किया. इसी का नजीता वह असंतोष है,जो विभिन्न रूपों में उठ खड़ा होता है. कोल्हान का ममला बेहद संवेदनशील है. आदिवासी विकास की विशिष्ट नीति के निर्माण के साथ झारखंड के सवालों को हल किए जाने की जरूरत है.