Ranchi: भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका यह भाषाएं झारखंड के मोहल्ला, टोला, कस्बों तक सीमित हैं. इन भाषाओं को झारखंड के किसी गांव में नहीं बोला जाता है. स्थानीय नीति से भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका भाषा को झारखंड के जिलों से हटाया जाए. ताकि झारखंड आंदोलन के उद्देश्य को पूरा किया जा सकेगा. झारखंड में अपनी भाषाएं हैं, अपनी संस्कृति है, झारखंड की भाषाओं के आधार पर ही झारखंड को बिहार से लड़कर अलग किया गया था. आज फिर से नियोजन नीति में भाषा के अंतर्गत बाहरी भाषाओं को झारखंड में स्थान दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. यह बातें जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के अंतर्गत हो भाषा की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ दमयंती सिंकू ने लगातार डॉट इन के संवाददाता वीरेंद्र राउत के साथ बातचीत में कहीं. उन्होंने भाषा विवाद पर उठ रहे सवालों का सीधा जवाब देने के साथ इसके प्रभाव पर भी बातें कहीं हैं.
इसे भी पढ़ें-जमशेदपुर : श्री राजपूत करणी सेना ने बेटी की शादी में राशन देकर किया सहयोग
झारखंड में भाषा संस्कृति पर तेजी से हो रहा आक्रमण
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के अंतर्गत हो भाषा की शिक्षिका डॉ दमयंती सिंकू ने कहा कि झारखंड में भाषा संस्कृति पर आक्रमण तेजी से हो रहा है. राज्य के आदिवासी-मूलवासी अपने ही घर में बेगाने हो जाएंगे. अगर बाहरी भाषा दोबारा झारखंड में लागू की गई तो बाहरी लोग झारखंडियों के हक अधिकार को ले लेंगे और फिर एक बड़े आंदोलन की दरकार होगी. उन्होंने कहा कि भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका को अगर झारखंड में जनजातीय भाषा की श्रेणी में शामिल की जाती है तो, बिहार, झारखंड, उड़ीसा जैसे राज्यों में झारखंड की नौ भाषाओं को शामिल करना चाहिए. जिसमें पांच जनजातीय भाषा है, जिसमें पहला हो, मुंडारी, संथाली, कुडुख, खड़िया और चार क्षेत्रीय भाषाएं हैं, जिसमें नागपुरी, कुरमाली, खोरठा, पंचपरगनिया हैं. इन भाषाओं को अन्य राज्यों में भी दर्जा दी जानी चाहिए. ताकि झारखंडियों को अन्य राज्यों में भी रोजगार का मौका मिल सकेगा.
इसे भी पढ़ें- खरसावां : बड़ाबाम्बो स्टेशन के रेलवे ट्रैक पर मिला बालजुड़ी गांव के युवक का शव
रोजगार के क्षेत्र में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं से बनेगी झारखंड की पहचान
डॉ दमयंती सिंकू ने कहा कि झारखंड के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से झारखंड की पहचान देशभर में बनेगी. जेपीएससी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा को जिलेवार नौकरी में जगह देने से रोजगार के आयाम खुलेंगे. इससे लोगों की दिलचस्पी भाषाओं की ओर बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि 1939 से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के क्षेत्र में कई नियुक्तियां रद्द हुई हैं. अब उन नियुक्तियों को भरने का समय आ गया है. सरकार भाषा विवाद को जल्द निपटा लें, झारखंड में बेरोजगार युवा नौकरी पाने के लिए व्याकुल हो रहे हैं.
झारखंड के जल, जंगल, जमीन की पहचान भाषा से
डॉ दमयंती सिंकू ने कहा कि झारखंड के जल, जंगल, जमीन की पहचान भाषा से जुड़ी हुई है. भाषा के आधार पर ही झारखंड में कई गांव, पंचायत, सड़क, चौक-चौराहों यहां तक की जिलों के नाम रखे गए हैं. भाषा के आधार पर ही हमें झारखंड अलग राज्य मिला है. झारखंडी अंग्रेजों से लड़ने के दौरान जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में युद्ध की रणनीति तैयार करते थे. यह युद्ध की रणनीति झारखंड आंदोलन के दौरान भी देखने को मिला था. झारखंड आंदोलन में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं का अहम योगदान है.
इसे भी पढ़ें- जमशेदपुर : सिदगोड़ा शादी समारोह में चोरों ने उड़ाये 2 लाख के जेवरात
प्राइवेट क्षेत्रों में हो रही है जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई, सरकारी क्षेत्र में भी हो पहल
डॉ दमयंती सिंकू ने कहा कि संथाल, कोल्हान, छोटानागपुर के क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई हो रही है. लेकिन सरकारी क्षेत्रों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई अब तक शुरू नहीं हुई है. सरकार इस दिशा में सकारात्मक पहल करें. उन्होंने बताया कि झारखंड में जनजातीय एवं क्षेत्रीय यूनिवर्सिटी बनकर तैयार है. जल्द इसकी शुरुआत होगी. इससे राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को पहचान मिलेगी.