Ashish Tagore
Latehar : अगर मन में कुछ करने की ललक और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो शारीरिक बाधा भी सफलता की राह के आड़े नहीं आ सकती है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण लातेहार की निशि रानी, गौतम पाठक और वृजनंदन पंडित है. इन तीनों ने अपनी दिव्यांगता को कभी अभिशाप नहीं समझा और आज समाज में अपनी एक अलग मुकाम बनायी है. इन तीनों के अलावा भी जिले में कई ऐसे दिव्यांग होंगे जिन्होंने दिव्यांगता को मात देकर ऊंचाईयों को छुआ होगा.
गौतम पाठक ने कड़ी मेहनत क्रैक की छठी जेपीएससी
गौतम पाठक जिले के राजकीयकृत उच्च विद्यालय में सेवानिवृत प्रधानाध्यापक केदारनाथ पाठक के दूसरे बेटे हैं. दृष्टिबाधित गौतम पाठक ने अपनी दिव्यांगता को अभी सफलता के आड़े आने नहीं दिया. उन्होंने कड़ी मेहनत की और गत वर्ष छठी जेपीएससी की परीक्षा क्रैक की. गौतम का चयन वित्त सेवा के लिए हुआ और फिलहाल वो पलामू में कर पदाधिकारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं.
गौतम ने सफलता का श्रेय माता-पिता और भाई को दिया
गौतम पाठक ने कहा कि सफलता के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है. उन्होंने कभी परिश्रम से जी नहीं चुराया. गौतम पाठक ने बताया कि शुरुआत में लोग उनका उपहास करते थे. लेकिन जब उन्होंने सफलता हासिल की तो लोगों का भ्रम टूट गया. पाठक ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता और अपने भाई गोविंद पाठक को दी.
वृजनंदन पंडित ने लोक गायन में बनायी अलग पहचान
शहर के धर्मपुर मुहल्ला निवासी देवनारायण पंडित के बेटे वृजनंदन पंडित देख नहीं सकते हैं. लेकिन उन्होंने लोक गायन में अपनी एक अलग पहचान बनायी. वृजनंदन को भोजपुरी गीत और भजन गाने के लिए ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी बुलाया जाता है. वृजनंदन ने कहा कि दिव्यांगता अभिशाप नहीं है. अगर आपके मन में कुछ करने की ललक हो तो आप अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था. दिव्यांग कुंठित होने के बावजूद उन्होंने अपने अंदर की प्रतिभा को पहचाना और सफलता हासिल की.
गायन के क्षेत्र में उभरता हुआ नाम है निशि रानी
निशि रानी जन्म से ही दृष्टिबाधित है. लेकिन 17 वर्षीय निशि रानी आज गायन के क्षेत्र में जिले में उभरता हुआ नाम है. निशि रानी ने करीब चार साल पहले ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी” गीत गाकर लोगों का दिल जीत लिया था. तत्कालीन उपायुक्त राजीव कुमार भी निशि रानी से काफी प्रभावित हुए. राजीव कुमार ने निशा को विशेष पुरस्कार भी दिया. इन तीन-चार वर्षों में निशि रानी ने कई कार्यक्रमों में भाग लिया. इतना ही नहीं सांस्कृतिक कार्य निदेशाल द्वारा आयोजित सुबह सबेरे और शनि परब कार्यक्रम में भी निशि ने कार्यक्रम प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी. निशि ने बताया कि वह गानों को सुनकर याद कर लेती है और उसे ऑडियो ट्रैक पर गाने की रियाज करती है. निशि ने इस वर्ष प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा उर्तीण की है. निशि ने कहा कि उसके पिता जीतेंद्र प्रसाद व माता सुनीता देवी ने उसे हर कदम पर साथ दिया.
दिव्यागों को प्रोत्साहन और मार्गदर्शन की जरुरत
बता दें कि आज भी समाज में दिव्यांगता को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं. बस जरुरत है दिव्यांगों के प्रति दया और सहानुभूति की बजाय उनमें सहज मानवीय दृष्टि एवं रचनात्मक व्यवहार विकसित करने की. कहना गलत नहीं होगा कि दिव्यांगों को भी अगर समुचित प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मिले तो वे खुद अपनी मंजिल तय सकते हैं.