LagatarDesk: आरबीआई द्वारा गठित आंतरिक कार्य समूह (आईडब्ल्यूजी) द्वारा पिछले हफ्ते की गयी सिफारिशों में एक यह भी थी कि कॉरपोरेट सेक्टर को बैंक खोलने का लाइसेंस दिया जाये. आईडब्ल्यूजी की इस सिफारिश की एक्सपर्ट ने भी आलोचना की थी. हाल ही में आरबीआई के पूर्व गवर्नर और पूर्व डिप्टी गवर्नर ने भी इसका विरोध किया था. आखिर इस फैसले की एक्सपर्ट और अन्य लोग आलोचना क्यों कर रहे हैं, इसे समझते हैं:
- बैंकिंग सेक्टर में कॉरपोरेट सेक्टर की ऐसा समय इंट्री हो रही है, जब भारत की आर्थिक स्थिति बहुत ही नाजुक है. इस फैसले से भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
- सरकारी और अन्य बैंकों का ‘बैड लोन’ भारत में काफी बढ़ गया है. बैड लोन बढ़ने के पीछे बड़े कॉरपोरेट्स का ही हाथ है, जिन्होंने लोन तो ले लिया लेकिन बैंकों को वापस नहीं किया.
- सरकार ने पूर्व में एक और बड़ा फैसला लेते हुए लोन वापस नहीं करनेवाली कंपनियों का लोन माफ कर दिया था. सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा कॉरपोरेट सेक्टर को मिला.
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बड़े कॉरपोरेट घरानों का कब्जा
यह फैसला गलत इसलिए है, क्योंकि जब कर्जदार को ही बैंक का मालिक बना दिया जायेगा, तो वो बैंक को समभालेगा कैसा. यह चोर को चौकीदार बना देने जैसी बात होगी. ऐसे में बैंकों में धन तो आम जनता का जमा होगा, लेकिन उसका फायदा केवल कॉरपोरेट्स को ही मिलेगा. इससे बाजार में बड़े कॉरपोरेट घरानों का कब्जा हो जायेगा.
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केंद्र सरकार के फैसले में कॉरपोरेट का फायदा
तो सवाल है कि आखिर केंद्र सरकार केवल कॉरपोरेट के फेवर में ही सारे फैसले क्यों ले रही है. सरकार ने बड़ी कंपनियों के कर्ज को माफ कर दिया. इसके बाद कॉरपोरेट कंपनियों के टैक्स में कटौती कर दी और अब तो सरकार खुलेआम लोगों की बचत के पैसे को कॉरपोरेट कंपनियों को देने जा रही है.
कॉरपोरेट कंपनियां कई तरह के बिजनेस में अपना पैसा लगाती हैं. ऐसे में सरकार उनके ही हाथों में बैंकों का स्वामित्व दे देगी तो देश की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान ही भय पैदा करता है.
इसके साथ आईडब्ल्यूजी ने यह भी सिफारिश की है कि बैंकों की स्थापना के 15 साल पूरे हो जाने पर उनकी हिस्सेदारी को 15 से बढ़ाकर 26 फीसदी कर दिया जाये.50 हजार से ज्यादा एसेट वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को भी बैंक में बदलने की इजाजत दे दी जाये. अगर ऐसा किया गया तो सारे सेक्टर में केवल कॉपोरेट का ही स्वामित्व हो जायेगा.
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