Sonia Jashmin
Ranchi: क्या आप माड़झोर या डुंबू के बारे में जानते हैं. हममें से बहुतों ने तो कभी इनका नाम भी नहीं सुना होगा. इसी तरह जब कभी झारखंड के परंपरागत जनजातीय व्यंजनों की बात होती है, तो हमारी स्वाद यात्रा धुस्का और छिलका तक आकर रुक जाती है, लेकिन झारखंड के परंपरागत स्वाद और व्यंजनों का कारवां बहुत समृद्ध है. जिन लोगों ने यहां के गांवों में परिवारों का आतिथ्य सुख लिया है, वे तो यहां के लजीज भोजन, व्यंजन और सत्कार से वाकिफ हैं, लेकिन अब राजधानी रांची में ही जनजातीय स्वाद और सत्कार का आनंद ले सकते हैं.
राजधानी के कांके रोड में है ‘आजम एम्बा’. कुड़ुख भाषा में इसका अर्थ है, ‘बहुत लजीज’. अपने नाम के अनुसार ही यह रेस्टोरेंट झारखंड की लजीज रेसिपी अपने ग्राहकों को परोसता है. थाली-गिलास और बरतन से लेकर बैठने और यहां की साज-सज्जा सबमें झारखंड की लोक संस्कृति रची-बसी है. यहां की संचालक हैं अरुणा तिर्की. अरुणा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) से जुड़ी थीं. इसी बीच उनके मन में झारखंड के विशिष्ट लोक स्वाद को देश-दुनिया तक पहुंचाने का विचार आया और इस तरह वर्ष 2018 में ‘आजम एम्बा’ की शुरुआत हुई.
अरुणा बताती हैं, वक्त के साथ-साथ हमारे पारंपरिक भोजन और व्यंजनों के प्रति रुझान घट रहा है. चाईनीज, थाई और मैक्सिकन भोजन की दीवानगी में हमारे अपने स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन पिछड़ते जा रहे हैं. ‘आजम एम्बा’ में हमने न केवल कुछ पुराने व्यंजनों को पुनर्जीवित किया है, बल्कि स्थानीय उपज के साथ भी प्रयोग कर कई तरह के नये व्यंजन बनाये जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि मडुआ (रागी) से बना छिलका और चावल के छिलके को चने की घुघनी के साथ परोसा जाता है. इसी तरह से देसी चिकन को मोटे लाल चावल के साथ विभिन्न प्रकार के साग व चटनी के साथ ग्राहकों को पेश किया जाता है. गेटू फिश करी, देसी मांगुर करी, घोघी तियान वेज, सनई फूल भर्ता, कोइनार साग जैसे कई लोकप्रिय व्यंजन भी यहां के मेनू कार्ड में शामिल हैं.
रांची के करमटोली में एक और रेस्टोरेंट है- ‘मंडी एडपा’. यहां आनेवालों का स्वागत वेज भूंजा चावल से किया जाता है. झारखंड के पारंपरिक आतिथ्य के साथ भोजन परोसने पर यहां काफी ध्यान दिया जाता है. इसके संचालक कपिल टोप्पो कहते हैं कि बाहर आनेवाले लोग होटलों के कृत्रिम रंग मिले भोजन के नहीं, बल्कि ‘मंडी एडपा’ जैसे शुध्द आदिवासी ढाबों के खाने के मुरीद होते हैं. यहां शुद्ध मसालों से बने परंपरागत व्यंजन उपलब्ध हैं. कपिल बताते हैं कि उनकी कोशिश परंपरागत झारखंडी भोजन को संरक्षित करने की है.
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इन रेस्टोरेंट की खास बात यह है कि यहां सिर्फ परंपरागत और जनजातीय भोजन पर ही ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि माहोल भी ऐसा रखा गया है कि यहां आनेवालों को किसी आदिवासी गांव में बैठ कर भोजन करने की अनुभूति मिले. मिट्टी से लीपी गयी दीवारें, रस्सियों से बुनी हुई चारपाई, मांदर और सिंगा जैसे वाद्ययंत्रों के बीच मिट्टी और पत्तों पर परोसा गया भोजन स्वाद के दीवानों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है.