LagatarDesk : नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा अरचना की जाती है. महाअष्टमी पूजन का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महागौरी की पूजा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. सुंदर और अति गौर वर्ण होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है.
ऐसे करें महागौरी की अराधना
देवी महागौरी की पूजा भी नवरात्रि के अन्य दिनों की ही तरह करें. सुबह स्नान करके देवी मां का ध्यान करें. उन्हें फूल चढ़ायें और दीपक जलाएं. मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें क्योंकि मां को सफेद रंग पसंद है. फिर मां को रोली कुमकुम, फल, फूल और मिष्ठान अर्पित करें. मां की आरती करें और मंत्रों का जाप करें. अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन भी किया जाता है. नौ कन्या और भैरो की पूजा करें और उन्हें भोजन कराकर आशीर्वाद लें.
मां गौरी को खुश करने के लिए चढ़ायें नारियल
अष्टमी के दिन महागौरी की पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. महागौरी को खुश करने के लिए उन्हें काले चने और नारियल का भोग लगाना चाहिए. नारियल का भोग लगाने के बाद नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें. मान्यता है कि ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
महागौरी के मंत्र :
- “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”.
- श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
- या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
महागौरी की पूजा से पापों का होता है नाश
मां महागौरी को धन वैभव और सुख शांति की देवी माना जाता है. माना जाता है कि यदि आप सच्चे मन से महागौरी की पूजा अर्चना करते है तो शारीरिक शक्ति और मानसिक शांति मिलती है. माता के इस स्वरूप को अन्नपूर्णा भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि देवी महागौरी की पूजा करने से इस जन्म के पाप तो धूल ही जाते हैं. साथ ही पिछले जन्म के पापों का नाश होता है. भक्तों की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं.
महागौरी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी. जिससे मां गौरी को यह महान गौरव प्राप्त हुआ और इससे इनका नाम महागौरी पड़ा. कठोर तप के कारण माता गौरी का शरीर काला पड़ गया था. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें स्वीकार किया और उन्हें गंगा स्नान करने के लिए कहा. गंगा में नहाने के बाद देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो गयीं. इसलिए भी इन्हें गौरी कहा जाता है.