– तीन विभाग चला रहे कुपोषण के खिलाफ अभियान
– फिर भी झारखंड के 40 % बच्चे कुपोषित
– छह जिलों में 45 % से ज्यादा बच्चे कुपोषित
– 9 जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे एनीमिक
– संथाल में एनीमिया के शिकार सबसे अधिक बच्चे
– फंड की कमी से दम तोड़ रहा अभियान
– पैसों की कमी के कारण 10,388 पोषण सखियां हटाई गईं
– केंद्रांश नहीं मिलने से आंगनबाड़ी केंद्रों से नहीं मिल रहा पोषाहार
– केंद्र को फंड रिलीज करने के लिए भेजा गया है प्रस्ताव
– जनवरी तक आएगा केंद्र से पैसा, तब मिलेगा बच्चों, महिलाओं को नियमित पोषाहार
Satya Sharan Mishra
झारखंड में कुपोषण और एनीमिया बड़ी समस्या है. सरकार भी मानती है. तभी तो इससे मुक्ति के लिए तीन विभाग काम करते हैं. महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग. तीनों विभाग बच्चों को कुपोषण मुक्त रखने के लिए कार्यक्रम चलाते हैं. इन सबके बावजूद जो आंकड़े हैं, वह डरावने हैं. 67 % बच्चे आयरन की कमी से एनीमिया के शिकार हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक झारखंड में पांच साल तक के 39.4 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं. शहरी इलाकों में 30 % जबकि ग्रामीण इलाकों में 41 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट. वहीं, पांच साल तक के 22.4 % बच्चे अपनी उम्र की तुलना में कम लंबे हैं. 11.4 % बच्चे गंभीर रूप से अंडरवेट हैं. राज्य में 56.8 % गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. इस कारण अधिकांश बच्चे गर्भ में ही कुपोषण और एनीमिया का शिकार होकर पैदा होते हैं.
फंड की कमी
महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ अभियान शुरू तो किए जा रहे हैं, लेकिन फंड की कमी के कारण अभियान रुक जा रहा रहा है. सरकार ने वर्ष 2021 में कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ 1000 दिनों का महाअभियान शुरू किया था. फंड की कमी के कारण अभियान सही तरीके से नहीं चल पा रहा है. अफसरों के मुताबिक, केंद्र से मिलने वाली मदद में कटौती से अभियान में बाधा आ रही है. केंद्रांश के लिए राज्य ने प्रस्ताव भेजा है. जनवरी 2023 में राशि मिलने की उम्मीद है.
पोषण सखियों की सेवा समाप्त
केंद्र प्रायोजित समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत झारखंड में बहाल 10,388 पोषण सखियों की सेवा भी अप्रैल 2021 से समाप्त कर दी गई है. केंद्र सरकार के निर्देश पर वर्ष 2015 में राज्य के छह जिले धनबाद, गिरिडीह, दुमका, गोड्डा, कोडरमा और चतरा में अतिरिक्त आंगनबाड़ी सेविका सह पोषण परामर्शी के रूप में इन पोषण सखियों की नियुक्ति हुई थी. इन्हें प्रतिमाह तीन हजार रुपये मानदेय दिए जा रहे थे. केंद्र सरकार ने नवंबर 2017 में मानदेय राशि बंद कर दी. इसके बाद राज्य सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए. पोषण देने वाली पोषण सखियां अब अपने हक के लिए आंदोलन कर रही हैं.
डायटीशियन नहीं, सारे काम नर्स के जिम्मे
कुपोषण खत्म करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. गांव में आयरन और फोलिक एसिड की दवाइयां बांटी जा रही हैं. 96 कुपोषण उपचार केंद्र खोले गए हैं. उपचार केंद्रों में डायटीशियन नहीं हैं. डायटीशियन की जिम्मेदारी नर्सें निभा रही हैं. यह स्थिति तब है, जब तीन साल के भीतर झारखंड को कुपोषण मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है.
कुपोषण और एनीमिया के जिलेवार आंकड़े
जिला – अंडरवेट बच्चे (5 साल तक) – एनीमिक बच्चे (5 साल तक)
बोकारो – 32 % – 66.5 %
चतरा – 39.8 % – 62.6 %
देवघर – 39.9 % – 73.9 %
धनबाद – 25.1 % – 66.5 %
दुमका – 44.9 % – 75.1 %
गढ़वा – 40.6 % – 62.5 %
गिरिडीह – 34.3 % – 62.8 %
गोड्डा – 40.7 % – 75.1 %
गुमला – 38.7 % – 65.8 %
हजारीबाग – 32.5 % – 62.1 %
जामताड़ा – 46.2 % – 72.8 %
खूंटी – 44.0 % – 66.9 %
कोडरमा – 31.7 % – 60.0 %
लातेहार – 39.4 % – 68.3 %
लोहरदगा – 43.4 % – 68.7 %
पाकुड़ – 37.3 % – 72.1 %
पलामू – 37.3 % – 68.2 %
पश्चिम सिंहभूम – 62.4 % – 73.3 %
पूर्वी सिंहभूम – 41.6 % – 67.4 %
रामगढ़ – 35.3 % – 59.7 %
रांची – 40.6 % – 62.8 %
साहिबगंज – 44.8 % – 72.6 %
सरायकेला – 48.7 फसदी – 76.1 %
सिमडेगा – 37.0 % – 75.4 %
हम कोशिश कर रहे हैं : मंत्री
कुपोषण-एनीमिया के संबंध में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग लगातार अभियान चला रहा है. हम राज्य को कुपोषण मुक्त बनाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लोगों को जागरूक किया जा रहा है. महिलाओं के बीच स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से आयरन की गोली का वितरण भी किया जा रहा है. कुपोषण से मुक्ति के लिए इलाज केंद्र भी बनाए गए हैं, जहां बच्चों का इलाज होता है.
स्वयंसेवी संस्थाएं भी कर रहीं जागरूक
सरकार के अलावा कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी कुपोषण और एनीमिया को लेकर जागरूकता अभियान चला रही हैं. सृजन फाउंडेशन के सपन ने बताया कि एनजीओ के कार्यकर्ता गांव-गांव में जाते हैं. विभिन्न माध्यमों से लोगों को कुपोषण और एनीमिया को लेकर जागरूक करते हैं. खान-पान की सलाह और कुपोषण को लेकर सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी दी जाती है.