Deepak Ambastha
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली का किला फतह करने निकल पड़ी हैं, पर क्या यह संभव है? कहते हैं कि रस्सी के लगातार घिसने से पत्थर पर भी निशान उभर आते हैं. राजनीति में ममता बनर्जी का संघर्ष और मुकाम दोनों इस बात की गवाही देते हैं. बंगाल से वामपंथ को सत्ता से बाहर करना हो, कांग्रेस को उसकी औकात बतानी हो या फिर ऊंची उड़ान भर रही भारतीय जनता पार्टी को एक झटके में जमीन पर ला देना हो, यह सब ममता बनर्जी का ही करिश्मा है.
ममता बनर्जी कई मामलों में या कहें हर मामले में देश के राजनीतिज्ञों से एकदम जुदा हैं. एक ही लक्ष्य सामने रखने वाली ममता को राजनीति के किसी खेल से परहेज नहीं रहा है, साम, दाम दंड, भेद.. कुछ भी अपनाने से परहेज़ नहीं है. यह उद्देश्य सिर्फ जीत और जीत, हर कीमत पर. पुनः बंगाल फतह ने ममता बनर्जी का आत्मविश्वास बहुत बड़ा दिया है, यह स्वाभाविक भी है. आत्मविश्वास से लबरेज ममता दिल्ली फतह के अभियान पर निकल पड़ी हैं. केंद्र की गद्दी के लिए चुनाव 2024 में होना है, पर अपनी सफलताओं से आत्ममुग्ध ममता ने अभी से ताल ठोक दी है अपना इरादा जाहिर कर दिया है.
राजनीतिक पंडित इसे जल्दबाजी कह सकते हैं, लेकिन ममता बनर्जी के पास सफलता के सूत्रों की अपनी किताब है, उसी से वह प्रेरित होती हैं और असंभव को संभव कर दिखाती हैं. ममता दिल्ली दौरे पर हैं. वहां वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल रही हैं, तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मिल चुकी हैं और शरद पवार जैसे नेताओं से मिलने वाली हैं. आज से कुछ वर्ष पहले भी ममता, सोनिया, मायावती ने मंच साझा किया था. भाजपा के खिलाफ पर गाड़ी बढ़ी नहीं क्योंकि इसमें हर ओर बैल जूते थे, तो इसे कहीं पहुंचना भी नहीं था. बंगाल विजय रथ पर सवार ममता ने फिर मन बनाया है भाजपा के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनने का, पर क्या राह इतनी आसान है? देश में बंगाल दोहराना क्या इतना सरल है?
2024 अभी दूर है, तब तक यमुना और हुबली नदियों में बहुत पानी बह चुका होगा. सोनिया गांधी ममता से भी मिलीं, लेकिन क्या वह इस मुलाकात और आने वाले समय में इसके फलाफल पर राहुल गांधी और अपने सपनों की भेंट चढ़ा देंगी, ऐसा लगता नहीं है. विपक्ष को एकजुट करना एक चेहरे पर भाजपा और नरेन्द्र मोदी को चुनौती देना तो अभी तराजू पर मेंढ़क तोलते वाली ही बात नज़र आती है.
ममता बनर्जी कांग्रेस में अपने पुराने साथी अभिषेक सिंघवी और आनंद शर्मा को बता चुकी हैं कि कांग्रेस अपनी चमक खो चुकी है. वह अब केंद्र में मुख्य भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है तो उसे अपनी महत्वाकांक्षा और मानसिकता दोनों को छोड़ना होगा. जवाब में आंनद शर्मा मीडिया से कह चुके हैं कि 2024 में अभी समय है और ममता बनर्जी बस ऐसी ही दिल्ली यात्रा पर हैं.
2004 और 2021 की भारतीय राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका है, न तो भाजपा के तौर तरीके 2004 वाले हैं और न ही कांग्रेस का वह रहा है. फिर दोनों में जो आधारभूत फर्क है, वह है कि सोनिया गांधी किंग नहीं, किंग मेकर बनना चाहती थीं और ममता बनर्जी किंग मेकर नहीं किंग बनना चाहतीं हैं, तो इस छतरी के नीचे आकर कौन राजनीतिक दल अपना भविष्य दांव पर लगा सकता है.
ममता बनर्जी धुन की पक्की हैं, पर यहां सिर्फ उनकी पार्टी नहीं है. उन्हें और पार्टियों को साथ लाने की चुनौती है, जिससे निपटना टेढ़ी खीर है. बंगाल से दिल्ली की राह निर्मम है. कठिन है फिर ममता सामान्य तौर पर अपने आगे किसी की नहीं सुनने की आदी रही हैं. राष्ट्रीय राजनीति में यह तरीका चलने वाला नहीं है और ममता बदल जाएंगी, ऐसा संभव नहीं है. कोशिश की जाए भारत की राजनीति में चमत्कार होते ही रहे हैं. क्या पता आज की कोशिश 2024 के लिए चमत्कार बन जाएं.