Faisal Anurag
विपक्षी नेताओं के हर जमावड़े के बाद संशय और संदेह के बादल ही क्यों गहराने लगते हैं ! कपिल सिब्ब्ल के डिनर पर जुटे नेताओं के इरादे यदि संशय पैदा कर रहे हैं तो इसके कारण उस डिनर में हुई बातें ही हैं. इरादा तो बताया गया था कि 2024 के लिये भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का संदेश देना. लेकिन इसमें जिस तरह गांधी परिवार पर हमले किए गए उससे अनेक सवाल पैदा होते हैं. कपिल सिब्बल जी 23 के उन नेताओं में हैं जिनके पत्र ने कांग्रेस में खलबली पैदा कर दी थी. इस पत्र में बातें तो कांग्रेस की मजबूती की गयी थी, लेकिन छुपा मकसद तो राहुल गांधी को लेकर असंतोष प्रकट करना था. सिब्बल कांग्रेस की मजबूती की बातें करते रहे हैं. जन्मदिन के अवसर पर उनके डिनर में एक तरफ अकाली दल के नेता शामिल हुए तो दूसरी ओर भाजपा के साथ खड़ी रहने वाली नवीन पटनायक की पार्टी के नेता भी.ये दोनों ही इसके पहले तक किसी भी विपक्षी जुटान से अलग रहे हैं. तो क्या बिजू जनता दल विपक्ष के साथ चलने का मन बना चुका है. अकाली दल ने तो कृषि कानूनों का विरोध करते हुए पहले खुद को एनडीए से अलग किया और अब वह भाजपा विरोधी ताकत दिखने के लिए सभी तरह का उपक्रम कर रहा है. पंजाब में अगले साल विधानसभा चुना होने वाले हैं. आकाली दल ने बसपा से तालमेल कर कांग्रेस का विकल्प बनने का दावा पेश किया है. लेकिन केंद्रीय राजनीति में अब वह भाजपा विरोधी मुहिम का हिस्सा बनने के लिए बेचैन है.
बिजू जनता दल की समस्या यह है कि नवीन पटनायक की कोई खास दिलचस्पी दिल्ली की राजनीति में नहीं है. आमतौर पर केंद्र के साथ बेहतर रिश्ते में यकीन रखने वाले वे मुख्यमंत्री दिखते रहे हैं. सिब्बल की बैठक में बिजद नेता पिनाकी मिश्रा की मौजूदगी रस्मी है या फिर नवीन पटनायक की किसी नयी रणनीति का हिस्सा यह स्पष्ट नहीं है. सिब्बल के डिनर पॉलिटिक्स का एक घोषित लक्ष्य 2024 में भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता का सवाल भी है. इसलिए पिनाकी मिश्रा की उपस्थिति मयाने रखती है. इस अवसर आए अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने गांधी परिवार पर तीखा हमला किया. सिब्ब्ल के आयोजन में अब तक गांधी परिवार पर इस तरह की बातें नहीं हुयी है. कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं के चर्चित पत्र में भी कांग्रेस की मजबूती के लिए एक पूर्णकालिक अध्यक्ष के साथ नीचे से उपर तक चुनाव कराने की बातें थीं. उसमें भी सोनिया गांधी या राहुल गांधी की सीधी आलोचना नहीं की गयी थी. नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुला ने जरूर कहा कि कांग्रेस जब भी मजबूत होती है विपक्ष भी मजबूत होता हे. उन्होने ने जानना चाहा कि कांग्रेस की मजबूती के लिए क्या किया जा रहा है.
डिनर ऐसे समय दी गयी है जब राहुल गांधी श्रीनगर के दौरे पर हैं और प्रियंका विदेश में हैं. मीडिया ख्बरों के अनुसार जुटान में एक बार फिर कांग्रेस में बदलाव का मुद्दा उठा. खबरें बताती हैं कि कुछ नेताओं ने कहा है कि कांग्रेस का कायाकल्प तभी संभव है जब गांधी परिवार लीडरशिप छोड़ दे. अकाली दल के नरेश गुजराल ने तो सीधा हमला बोलते हुए कहा कि गांधी परिवार के ”चंगुल” से बाहर निकले बिना कांग्रेस का मजबूत होना मुश्किल है. यह डिनर का आयोजन राहुल गांधी के कुछ दिनों पहले दिए गए उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि डरने वाले लोग कांग्रेस छोड़ दें. दरअसल राहुल गांधी जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे, तब से कांग्रेस की पुरानी पीढी के नेता तालमेल नहीं बैठा पाए. राहुल गांधी ने नये और युवा नेताओं पर भरोसा ज्यादा किया. इससे कांग्रेस के भीतर एक तरह के पीढ़ीगत दृष्टिकोण टकराव के हालात भी बने.
2019 के आम चुनाव के दौरान सीनियर नेताओं ने राहुल गांधी को पूरा साथ भी नहीं दिया. हार के बाद की समीक्षा बैठक में राहुल बांधी ने यह आरोप लगाया था. नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीखे हमले से भी कांग्रेस के सीनियर नेता सहमत नहीं रहे हैं जब कि राहुल गांधी ने आरएसएस और मोदी पर तीखे हमले जारी रखे. राहुल गांधी ने आरएसएस की वैचारिक चुनौती का जबाव दिया. कांग्रेस के नेता सरकार के विरोध में तो दिखते रहे, लेकिन आएसएस की चुनौती का कभी जबाव देना जरूरी नहीं समझा. राहुल गांधी मानते हैं कि आरएसएस के विचारों को चुनौती दे कर ही कांग्रेस की मध्यमार्गी प्रगतिशील छवि को मजबूत किया जा सकता है. विपक्ष के अनेक नेता भी भाजपा के खिलाफ एक साझामंच तो बनाना की इच्छा रखते हैं लेकिन वे न तो आरएसएस विचार के हैं ओर न ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिखना चाहते हैं. विपक्ष का यह एक बड़ा आंतरविरोध है. ममता बनर्जी ने बंगाल आरएसएस को भी चुनौती दी और कामयाबी हासिल की. दक्षिण भारत में डीएमके की समझ भी स्पष्ट है.
विपक्ष के इस जुटान का मकसद एकजुटता है या फिर इसके बहाने कुछ ओर साधने का प्रयास किया जा रहा है. ममता बनर्जी के इरादे में जो एक समर्पण दिखता है, उसकी तुलना भी इस जुटान से की जा रही है. पूछा यह भी जा रहा है कि इस जुटान से गांधी परिवार को अलग रखने का मकसद क्या है.