New Delhi : मैरिटल रेप को लेकर बीते कई दिनों से देश में विवाद चल रहा है. पत्नी संग पति का जबरन संबंध बनाने (मैरिटल रेप) को दुष्कर्म के दायरे में लाने की मांग कई संगठनों ने की है. मामला देश की शीर्ष अदालत में है. अब इसपर 14 मार्च से कोर्ट में सुनवाई होगी. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है. इससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि कुछ महीने पहले सभी हितधारकों से हमने इसपर विचार मांगे थे. अब इस मामले में हम जवाब दाखिल करना चाहते हैं. इस मामले पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच सुनवाई कर रही है. 16 सितंबर 2022 को मेरिटल रेप अपराध है या नहीं? इसपर परीक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था. इस पर नोटिस जारी कर केंद्र से कोर्ट ने जवाब मांगा था.
यहां बता दें कि भारतीय कानून में फिलहाल प्रावधान है कि मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध नहीं है. लेकिन इसे अपराध घोषित करने के लिए कई संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट से ये मांग की गई है कि मेरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए. इस पर 11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. मामले की सुनवाई में दो जजों की राय अलग थी. जिसके बाद दोनों जजों ने इस केस में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को सुपुर्द किया था. दरअसल इस मामले में सुनवाई के दौरान बेंच अध्यक्षता करने वाले जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था. तो दूसरी ओर जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा था कि IPC के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.
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हाईकोर्ट के दो जजों के ने दिया था अलग-अलग फैसला
यहां बता दें कि याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375( रेप) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी. धारा 375 के अनुसार, किसी भी विवाहित महिला से उसके पति द्वारा बनाए गये यौन संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा. जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो. मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में हाईकोर्ट में पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार के बार-बार मांगने पर अदालत ने नाराजगी जतायी थी. कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और केंद्र को समय देने से मना कर दिया था. वहीं पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से तर्क रखा गया था कि उसने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को इसपर उनकी राय के लिए पत्र भेजा था.