Gladson Dungdung
आजकल मास्टर स्ट्रोक का जमाना है. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के निर्णयों को मीडिया मास्टर स्ट्रोक बताकर आम जनता को किसी खास राजनेता या पार्टी के पक्ष में प्रभावित करती है. विगत कुछ वर्षों के अंदर मास्टर स्ट्रोक अति हो गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रत्येक निर्णय को मीडिया मास्टर स्ट्रोक बताकर उसका जोर-शोर से प्रचार-प्रसार करती है ताकि चुनाव में भाजपा को इसका लाभ मिल सके. लेकिन झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने मास्टर स्ट्रोक से इसे बेअसर कर दिया है.
दिल्ली की कुर्सी पर काबिज होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी झारखंड में जेएमएम का किला ढाहने हेतु निरंतर मास्टर स्ट्रोक लगाते रहते हैं. 2014 में दुमका के चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “मेरे रहते हुए आदिवासियों की जमीन कोई माई का लाल नहीं ले सकता है.” आदिवासियों ने उनकी बातों पर विश्वास करते हुए भाजपा को वोट दिया, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद किये गये वादे के ठीक विपरीत कार्य हुआ. रघुवर दास को राज्य का पहला गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया, “लैंड बैंक” का गठन कर राज्य के सामुदायिक, धार्मिक एवं वनभूमि सहित 20 लाख एकड़ जमीन को उसमें सूचीबद्ध कर दिया गया, औद्योगिक एवं विनिवेश बढ़ावा नीति 2016 बनायी गयी, सीएनटी/एसपीटी कानूनों का संशोधन किया एवं ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का आयोजन कर 210 एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया.
फलस्वरूप, आदिवासियों के बीच संदेश गया कि भाजपा सरकार उनकी जमीन छीनकर पूंजीपतियों को सौंपना चाहती है. आदिवासियों ने सीएनटी/एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन के खिलाफ पूरे राज्य में आंदोलन छेड़ दिया. इसके अलावा मुंडा बहुल क्षेत्र के 200 गांवों में “पत्थलगड़ी” की गयी. आदिवासियों के प्रतिरोध ने कोरियन कंपनी स्मॉल ग्रिड को सात हजार करोड़ रुपये की लागत वाले प्रस्तावित “ओटोमोबाइल पार्क” वापस लेने हेतु मजबूर कर दिया, जिससे खलबली मच गई. सरकार ने “पत्थलगड़ी” आंदोलन को असंवैधानिक, सरकार विरोधी एवं देशद्रोही घोषित करते हुए इसे सैन्य शक्ति से कुचल दिया. 11,100 लोगों के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा हुआ, 115 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, 3210 अभियुक्तों को फरार घोषित किया गया, एक आंदोलनकारी पुलिस फायरिंग में मारा गया एवं सैकड़ों लोग पुलिस अत्याचार के शिकार हुए.
सीएनटी/एसपीटी कानूनों का संशोधन एवं पत्थलगड़ी का मुद्दा आदिवासियों की भावना से जुड़े होने के चलते हेमंत सोरेन ने इसे अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाते हुए घोषणा की कि यदि राज्य में उनकी सरकार बनती है तो वे पत्थलगड़ी और सीएनटी/एसपीटी आंदोलन से संबंधित सभी मुकदमों को वापस ले लेंगे. इस घोषणा का राज्यभर में व्यापक असर पड़ा. फलस्वरूप, महागठबंधन चुनाव जीत गया और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. अपने वादे के मुताबिक उन्होंने प्रथम कैबिनेट मीटिंग में सभी मुकदमों को वापस लेने का निर्णय लिया. उनके इस मास्टर स्ट्रोक से उनकी लोकप्रियता और ज्यादा बढ़ गई.
झारखंड में सरना-ईसाई के नाम पर नफरत फैलाकर भाजपा ने सबसे लंबे समय तक शासन किया और जब सत्ता चली गई तब जेएमएम को सरना आदिवासी विरोधी के रूप में स्थापित करने में लगी रही. लेकिन संघ परिवार सरना कोड के खिलाफ है, इसलिए भाजपा नेता उसके पक्ष में खड़े नहीं हो सकते हैं एवं भाजपा सरकार ने राज्य के हजारों सरना स्थल, जहेरथान एवं देशाउली को लैंड बैंक में डाल दिया है, जिसका फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री सोरेन ने नवंबर 2020 में विधानसभा के विशेष सत्र में सरना कोड विधेयक को पारित कराकर एक और बड़ा मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए भाजपा नेताओं को स्तब्ध कर दिया.
भाजपा जानती है कि मौजूदा वक्त में झारखंड में सत्ता हासिल करने के लिए जेएमएम को अपने साथ लाना जरूरी है. उन्होंने एक रणनीति के तहत मुख्यमंत्री सोरेन एवं उनके इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों के पीछे जांच एजेंसियों को लगाया. लेकिन जब उससे कामयाबी नहीं मिली तब उन्होंने जेएमएम को मजबूर करने की नीति अपनायी, जिसके तहत द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर से मास्टर स्ट्रोक लगाया, लेकिन यहां भी मुख्यमंत्री सोरेन अपनी परिपक्वता का परिचय देते हुए महागठबंधन के घटक कांग्रेस एवं आरजेडी को विश्वास में लेकर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में खड़े हो गये.
जब महागठबंधन की गांठ नहीं खुली तब मुख्यमंत्री सोरेन के पीछे ईडी को लगाया गया, लेकिन बेचैन होने के बजाय उन्होंने कई मास्टर स्ट्रोक लगाकर भाजपा को सकते में डाल दिया. इसमें नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज परियोजना के अधिसूचना विस्तार पर रोक, 1932 खतियान विधेयक विधानसभा से पारित, आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव पारित, पुराना पेंशन योजना लागू करना एवं निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने हेतु नियोजन नीति शामिल है. इसके अलावा झारखंड हाई कोर्ट के द्वारा सरकारी कर्मचारी नियोजन नीति को रद्द करने का ठिकरा बाहरी लोगों पर फोड़ना भी उनका एक मास्टर स्ट्रोक था.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मास्टर स्ट्रोक का जवाब देने हेतु भाजपा ने दीपक प्रकाश और बाबूलाल मरांडी को मोर्चा पर लगाया, लेकिन इनकी जोड़ी राज्य में हुए उपचुनावों में असफल रही. मुख्यमंत्री सोरेन ने अपने मास्टर स्ट्रोक से प्रधानमंत्री मोदी को मत दे दिया है. बावजूद इसके सत्ता में बरकरार रहने हेतु उन्हें कई और मास्टर स्ट्रोक लगाना होगा, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के पास तिल को ताड़ बनाने वाली फौज, जांच एजेंसियां, देश के बड़े पूंजीपति, मीडिया एवं संघ परिवार व भाजपा समर्थित सैकड़ों संगठन एवं लाखों कैडर हैं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.