Bali : करीब दो साल पहले अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोमवार को अपनी पहली व्यक्तिगत बैठक की. यह बैठक दोनों महाशक्तियों के बीच बढ़ते आर्थिक और सुरक्षा तनाव के बीच हुई. इंडोनेशिया के एक लग्जरी रिसॉर्ट होटल में मुलाकात के दौरान शी और बाइडन ने एक दूसरे का अभिवादन किया और हाथ मिलाया. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि बाइडन का लक्ष्य नेताओं और राष्ट्रों के बीच संबंधों में “एक आधार बनाना”, संभावित सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करना और असहमति के क्षेत्रों पर परमाणु शक्तियों के बीच गलत आकलन से बचना है.
“टकराव” को कम करने की जरूरत- जो बाइडन
शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुरुआती टिप्पणी में अमेरिका और चीन के बीच “टकराव” को कम करने की जरूरत पर जोर दिया. कहा कि आमने सामने की मुलाकात के अलावा “कम विकल्प” बचे हैं. बोले- दोनों देशों के बीच बातचीत के रास्ते को खुला रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. ताकि दोनों देश जलवायु परिवर्तन और असुरक्षा समेत दूसरे अति आवश्यक वैश्विक मुद्दों पर साथ काम कर सकें. उन्होंने कहा कि दुनिया दोनों देशों से पार्टनरशिप की “उम्मीद” ही है.
विश्व शांति के लिए काम करना होगा- जिनपिंग
जिनपिंग ने कहा, “दुनिया चीन और अमेरिका से रिश्तों को बेहतर हैंडल करने की उम्मीद कर रही है. हमारी मीटिंग ने दुनिया का ध्यान खींचा है. हमें विश्व शांति के लिए दूसरे सभी देशों के साथ काम करना होगा. हमारी मीटिंग में सामरिक मुद्दों पर दोनों ने अच्छे से अपनी राय रखी. मैं उम्मीद करता हूं कि आपसे आगे मुलाकात होगी.”
दोनों देशों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं
दोनों नेताओं के बीच यह बहुप्रतीक्षित बैठक ऐसे वक्त हुई है, जब उन्होंने अपने घरेलू मोर्चों पर मजबूती दिखाई है. बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने हाल में हुए मध्यावधि चुनावों में अमेरिकी सीनेट पर नियंत्रण कायम रखा और अगले महीने जॉर्जिया में होने वाले चुनाव में उन्हें स्थिति और मजबूत करने की उम्मीद है. वहीं शी को अक्टूबर में हुई कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कांग्रेस में परंपरा तोड़ते हुए पांच वर्ष के तीसरे कार्यकाल के लिए चुना गया. हालांकि बाइडन के शासनकाल में अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी तनावपूर्ण रहे हैं. अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी के अगस्त में ताइवान की यात्रा करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए थे. चीन ने इसे उकसाने वाला कदम करार दिया था और इसके जवाब में स्व-शासित द्वीप के आसपास कई सैन्य अभ्यास किए थे.
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