Jammu/Kashmir : जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में कहा कि 2019 में आर्टिकल 370 को निरस्त किये जाने के बाद से जम्मू कश्मीर में विश्वास की कमी तथा अलगाव की भावना और बढ़ गयी है. महबूबा ने शनिवार को अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किये गये पत्र में कहा कि मैं आपको देश और विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में गहरी चिंता के साथ लिख रही हूं. लोकतंत्र में सामान्य मामलों में जमानत देने में निचली न्यायपालिका की अक्षमता पर आपकी हाल की टिप्पणियों को समाचार पत्रों में केवल एक कॉलम की खबर के रूप में जगह मिलने के बजाय एक निर्देश के रूप में अपनाया जाना चाहिए था.
Wrote a letter to the Hon’ble Chief Justice of India about the worrying state of affairs in the country especially Jammu & Kashmir. Hoping for his kind intervention to ensure justice is served. pic.twitter.com/PdZ3zgZL1T
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) December 31, 2022
63 लाख से अधिक मामलों में वकीलों की अनुपलब्धता के कारण देरी हुई
बता दें कि शुक्रवार को आंध्र प्रदेश न्यायिक अकादमी के उद्घाटन के अवसर पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि देश भर में 63 लाख से अधिक मामलों में वकीलों की अनुपलब्धता के कारण देरी हुई है और 14 लाख से अधिक मामले किसी प्रकार के दस्तावेज़ या रिकॉर्ड के इंतजार में लंबित हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं.
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जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है
उन्होंने कहा था कि जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है, लेकिन व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या एक विरोधाभासी तथा स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय संविधान में निहित और सभी भारतीय नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का खुलेआम हनन किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से, ये बुनियादी अधिकार अब ‘सुख साधन और हकदारी बन गये हैं जो केवल उन चुनिंदा नागरिकों को दिये जाते हैं जो राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक मामलों पर सरकार के रुख का पालन करते हैं.
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मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया
महबूबा ने आरोप लगाया कि 2019 के बाद से, जम्मू कश्मीर के प्रत्येक निवासी के मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया है और विलय के समय दी गयी संवैधानिक गारंटी को अचानक तथा असंवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया गया. उन्होंने कहा कि सैकड़ों युवा केंद्रशासित प्रदेश के बाहर की जेलों में विचाराधीन कैदियों के रूप में बंद हैं और उनकी स्थिति खराब है, क्योंकि वे गरीब परिवारों से हैं जिनके पास कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए साधनों की कमी है. महबूबा ने कहा, “यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब विश्वास की कमी और तथा अलगाव की भावना 2019 के बाद से और बढ़ी है. पत्रकारों को जेल भेजा जा रहा है और यहां तक कि उन्हें देश से बाहर जाने से भी रोका जा रहा है.
रिहाई का आदेश देने में सुप्रीम कोर्ट को एक साल से अधिक समय लगा.
उन्होंने कहा कि इन अंधकारमय परिस्थितियों में आशा की एकमात्र किरण न्यायपालिका है, जो इन “गलतियों को ठीक कर सकती है. महबूबा ने कहा, ‘‘हालांकि, मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न्यायपालिका के साथ हमारे अनुभव ने विश्वास की बहुत अधिक भावना भरने का काम नहीं किया है. महबूबा ने कहा कि 2019 में जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लिये जाने के बाद उनकी रिहाई का आदेश देने में सुप्रीम कोर्ट को एक साल से अधिक समय लगा. उन्होंने कहा हालांकि प्रधान न्यायाधीश के हस्तक्षेप से न्याय दिया गया है और जम्मू-कश्मीर के लोग गरिमा, मानवाधिकारों, संवैधानिक गारंटी तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपनी अपेक्षाओं की ओर देखते हैं, जिसने उनके पूर्वजों को महात्मा गांधी के भारत में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था.