Pravin Kumar
Ranchi : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत केंद्र सरकार के पास राज्यों की 7, 655 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बकाया है. इनमें से 3,207.43 करोड़ रुपये सामग्री की मद में और 4,447.92 करोड़ रुपये मजदूरी के रूप में बकाया है. मजदूरी मद के तहत केंद्र सरकार पर 30 नवंबर 2022 तक झारखंड की 162.5 करोड़ रुपये की राशि बकाया है. वहीं अन्य राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल के 2,744 करोड़, केरल के 456 करोड़ , तमिलनाडु के 210 करोड़, असम के 196 करोड़, नगालैंड के 183 करोड़ रुपये बकाया हैं.
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73,000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे
केंद्र ने 2022-23 के लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे. वित्तीय वर्ष 2021-22 में, योजना के लिए वित्तीय आवंटन 73,000 करोड़ रुपये था, हालांकि बाद में इसे संशोधित कर 98,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था. पिछले वित्तीय वर्ष में व्यय 1,11,170.86 करोड़ रुपये था.
मनरेगा वेबसाइट से पता चलता है कि 73 हजार करोड़ के कुल आवंटन में से लगभग 62.5 हजार करोड़ पहले ही राज्यों को जारी किये जा चुके हैं. अब तक लगभग 70 हजार करोड़ खर्च किये जा चुके हैं. सरकार ने अब आवंटन को तर्कसंगत बनाने के लिए कार्यान्वयन को धीमा कर दिया है, वित्तीय वर्ष के अंतिम तीन शेष महीनों में कार्यक्रम को गति नहीं मिलेगी.
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मनरेगा का लक्ष्य 100 दिनों के मजदूरी रोजगार की गारंटी देना
मनरेगा का लक्ष्य ग्रामीण भारत में प्रत्येक घर के कम से कम एक सदस्य को मिनिमम 100 दिनों के मजदूरी रोजगार की गारंटी देना है, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य कर सकते हैं. अधिनियम में यह भी कहा गया है कि मनरेगा श्रमिकों को काम किये जाने की तारीख से 15 दिनों के भीतर मजदूरी का भुगतान किया जायेगा. यदि भुगतान में देर होती है, तो मजदूर 0.05% विलंब पर मुआवजा पाने के हकदार हैं. लेकिन सरकार उन भुगतानों के लिए विलंबित क्षतिपूर्ति प्रदान नहीं करती है. केंद्र सरकार ने हाल ही में योजना में आवश्यक संरचनात्मक और अन्य सुधारों की सिफारिश करने के लिए पूर्व ग्रामीण विकास सचिव और पीएमओ में सलाहकार अमरजीत सिन्हा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है.
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