इस वर्ष नवरात्र में 8 दिनों में मां के सभी रूपों की पूजा की जायेगी, आज पंचमी और षष्ठी की तिथि एक दिन होने के कारण मां स्कंदमाता और कात्यायनी की पूजा साथ में की जायेगी. मां स्कंदमाता की पूजा संतान प्राप्ति की जाती है. वहीं मां कात्यायनी विवाह में आ रही अड़चनों को दूर करती है.
मां स्कंदमाता
पांचवें रूप स्कंदमाता को वात्सल्य की मूर्ति कहा गया है. ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है. हिन्दू मान्यताओं में स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं. जो भक्त सच्चे मन और पूरे विधि-विधान से स्कंदमाता की अर्चना करते हैं, उसे ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा
देवी स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री हैं और इस कारण से उन्हें पार्वती कहा गया है. महादेव शिव की पत्नी होने के कारण उन्हें माहेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. इनका वर्ण गौर है इसलिए उन्हें देवी गौरी के नाम से भी जाना गया है. मां कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं इस लिए उन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है. भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के फलस्वरूप इनका नाम स्कंदमाता पड़ा.
मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से उन्होंने स्कंद को गोद में पकड़ा हुआ है. नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है. बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. इनका वर्ण एकदम गौर है. ये कमल के आसन पर विराजमान हैं और इनकी सवारी शेर है.
पूजा विधि
नवरात्रि के पांचवें दिन घर के मंदिर या पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्धिकरण करें. अब एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें. अब पूजा का संकल्प लें. इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें. अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें. आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और खुद भी ग्रहण करें. स्कंद माता को सफेद रंग पसंद है. आप श्वेत कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं. मान्यतां है कि स्कंदमाता भक्तों की सारी इच्छाएं पूरी करती है.
मां स्कंदमाता की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, बहुत पहले एक राक्षस रहता था जिसका नाम तारकासुर था. तारकासुर कठोर तपस्या कर रहा था. उसकी तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हो गए थे. वरदान में तारकासुर ने अमर होने की इच्छा रखी. यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने उसे बताया कि इस धरती पर कोई अमर नहीं हो सकता है. तारकासुर निराश हो गया, जिसके बाद उसने यह वरदान मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही उसका वध कर सके. तारकासुर ने यह धारणा बना रखी थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और ना ही उनका पुत्र होगा. तारकासुर यह वरदान प्राप्त करने के बाद लोगों पर अत्याचार करने लगा. तंग आकर सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने लगे. तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया. विवाह करने के बाद शिव-पार्वती का पुत्र कार्तिकेय हुआ. जब कार्तिकेय बड़ा हुआ तब उसने तारकासुर का वध कर दिया. कहा जाता है कि स्कंदमाता कार्तिकेय की मां थीं.
मां कत्यायनी
नवरात्र के छठें रूप में मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. देवी कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है. ब्रजभूमि की कन्याओं ने श्रीकृष्ण के प्रेम को पाने के लिए इनकी आराधना की थी. भगवान श्रीकृष्ण ने भी देवी कात्यायनी की पूजा की थी. देवी कात्यायनी को मधुयुक्त पान अत्यंत प्रिय है. इन्हें प्रसाद रूप में फल और मिठाई के साथ शहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए. मां कात्यायनी की कृपा से भक्तों के सभी मंगल कार्य पूरे होते हैं. देवी के इस स्वरूप की पूजा से कन्याओं को योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और विवाह में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं. माता कात्यायनी की उपासना से साधक इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. साथ ही उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं.
इस मंत्र का करे जाप
पूजा में गंगाजल, कलावा, नारियल, कलश, चावल, रोली, चुन्नी, अगरबत्ती, शहद, धूप, दीप और घी का प्रयोग करना चाहिए. माता की पूजा करने के बाद ध्यान पूर्वक पद्मासन में बैठकर देवी के इस मंत्र का मनोयोग से यथा संभव जप करना चाहिए. इस तरह माता की पूजा करना बड़ा ही फलदायी माना गया है.
कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।। इस मंत्र का जाप करने से विवाह में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती
माता कात्यायनी चार भुजाधारी हैं जिनमें इनके एक भुजा में शत्रुओं का अंत करने वाला तलवार है तो दूसरी भुजा में पुष्प है जो भक्तों के प्रति इनके स्नेह को दर्शाता है. तीसरी भुजा अभय मुद्रा में है जो भक्तों को भय मुक्ति प्रदान कर रहा है. चौथी भुजा देवी का वर मुद्रा में है जो भक्तों को उनकी भक्ति का वरदान देने के लिए है.
मां कात्यायनी की कथा
माता ने यह रूप अपने भक्त ऋषि कात्यायन के लिए धारण किया था. ऐसी कथा है कि ऋषि कात्यायन मां आदिशक्ति के परम भक्त थे. इनकी इच्छा थी कि देवी उनकी पुत्री के रूप में उनके घर पधारें. इसके लिए ऋषि कात्यायन ने वर्षों कठोर तपस्या की. इनके तप से प्रसन्न होकर देवी इनकी पुत्री रूप में प्रकट हुई. कात्यायन की पुत्री होने के कारण माता कात्यायनी कहलायीं. सबसे पहले इनकी पूजा स्वयं महर्षि कात्यायन ने की थी. तीन दिनों तक ऋषि की पूजा स्वीकार करने के बाद देवी ने ऋषि से विदा लिया और महिषासुर को युद्ध में ललकार कर उसका अंत कर दिया इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है.