Mohammad Shahid
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए युद्ध रेखाएं खिंच गई हैं. एक तरफ भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए है, तो दूसरी ओर कांग्रेस समेत 28 विपक्षी पार्टियों का 18 जुलाई को बेंगलुरु में बनाया गया नया गठबंधन इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस). विपक्ष की मीटिंग 18 जुलाई को बेंगलरु में हुई तो भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने भी उसी दिन दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन किया, जिसमें 38 दलों ने हिस्सा लिया. इससे एक बात तो साफ है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में एनडीए बनाम ‘इंडिया’ की टक्कर होगी. हालांकि कुछ दल अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं, परंतु आने वाले दिनों में इधर या उधर जा सकते हैं.
कर्नाटक में एकत्र हुए 28 विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने सर्वसम्मति से इस गठबंधन का नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस (इंडिया) रखा, जो अपने आपमें काफी महत्वपूर्ण और आक्रामक है. आगे चल कर अगर यह नाम कानूनी दांव-पेंच में न फंसा तो भाजपा की टेंशन बढ़ा सकता है. मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में गठबंधन का मकसद बताते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि गठबंधन का मकसद ही भाजपा की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई है, जो देश को बर्बादी की ओर ले जा रही है. बेगलुरु मीटिंग की खास बात कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी थी. सोनिया गांधी, जो बीमारी के कारण सक्रिय राजनीति से दूर रहती हैं, इस मीटिंग में केंद्रीय भूमिका में नजर आईं. इससे पहले पटना मीटिंग, जिसमें 16 दलों ने भाग लिया था, में राहुल गांधी आकर्षण के मुख्य केंद्र थे, परंतु उनको लेकर कुछ क्षत्रप नेताओं को शंका भी थी. इसे सोनिया गांधी की मौजूदगी ने काफी हद तक कम कर दिया. सोनिया गांधी एक बार लगभग दो दहाइयों तक कामयाबी के साथ यूपीए (यूनाइटेड प्रोगेसिव एलायंस) का नेतृत्व कर चुकी हैं, जिसमें वर्तमान गठबंधन के कई दल शामिल थे. इसके अलावा उनके ताल्लुकात भी अक्सर क्षेत्रीय दलों के नेताओं से अच्छे हैं. इसलिए उनकी मौजूदगी से इन क्षेत्रीय नेताओं और पार्टियों में इत्मीनान और हौसले का संचार हुआ है, जो गठबंधन के लिए एक शुभ संकेत है.
विपक्षी गठबंधन की बातचीत के प्रारंभिक दौर में अक्सर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से या तो गठबंधन करना नहीं चाहते थे या गठबंधन में भी हाशिए पर रखना चाहते थे. प्रोपेगंडा ही सही, राहुल गांधी की पप्पू की इमेज, जीए 21 की बगावत, नेताओं की आपसी बयानबाजी ने कांग्रेस को निष्क्रिय बना दिया था और अक्सर लोग इसे मुर्दापार्टी कहने लगे थे. परंतु राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने न केवल राहुल गांधी की पप्पू की इमेज को झूठा साबित कर दिया, वरन कांग्रेस पार्टी में भी एक नई रूह फूंक दी. राहुल गांधी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख और हर अहम मुद्दे पर प्रधानमंत्री को घेरने से भाजपा बैकफ़ुट पर आ गई है.
शायद, भाजपा की यही घबराहट थी, जिसने उसे शक्ति प्रदर्शन के लिए उकसाया, जिसके कारण पार्टी ने एनडीए की मीटिंग उसी दिन दिल्ली में बुलाई, जिस दिन विपक्ष बेंगलुरु में मीटिंग कर रहा था. यूं कहने को तो एनडीए में कुल 38 दल हैं, लेकिन इनमें लगभग 25 दल ऐसे हैं, जिनका लोकसभा या राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं है और कुछ अपने मूल दलों से बगावत करके भाजपा मेंआए हैं. ऐसे दल भाजपा को कितना फायदा पहुंचा सकेंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. इस तरह एनडीए के पास केवल हिंदुत्व का एजेंडा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है, जो भाजपा की बड़ी ताकत है. धर्म की अफीम का नशा मनुष्य की सोचने-समझने की सलाहियत खत्म कर देता है. फिर उसे महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था दिखाई नहीं देती. चुनाव से पहले अपनी आदत के अनुसार भाजपा धार्मिक उन्माद भड़काने का प्रयत्न कर सकती है. ‘इंडिया’ को सतर्क और एकजुट रह कर इस नशे को तोड़ना होगा. अनेक सर्वेक्षणों के अनुसार हाल के दिनों में मणिपुर हिंसा, महिला पहलवानों का यौन शोषण और इस जैसे दूसरे अहम मुद्दों पर सरकार की नाकामियों और नरेंद्र मोदी की खामोशी और विपक्ष खासकर कांग्रेस के लगातार हमलों से मोदी का पॉपुलैरिटी ग्राफ कुछ नीचे आया है और भाजपा बैकफ़ुट पर दिखाई दे रही है. कल तक भाजपा एजेंडा सेट करती थी, जिसे विपक्ष फॉलो करता था, लेकिन अब उसका उल्टा हो रहा है. राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा सेट किए गए एजेंडे को सत्तारूढ़ पार्टी फॉलो करने को मजबूर है.
लोकसभा से पहले चार राज्यों, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विधान सभा के चुनाव होने हैं. पहले तीन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है. इन राज्यों के नतीजे से अंदाजा लगेगा कि कौन कितने पानी में है. देखने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी गठबंधनों के नए नाम इंडिया से इतने व्याकुल हैं कि उन्होंने भाजपा की संसदीय दल की बैठक में इसे इंडियन मुजाहिदीन और ईस्ट इंडिया कंपनी से जोड़ दिया. शायद उन्हें मालूम होगा कि इंडिया नाम से देश में तमाम संस्थाएं भी हैं, जो देश के लिए काम कर रही हैं. एयर इंडिया, इंडियन एयरफोर्स, इंडियन नेवी जैसे असंख्य संस्थान हैं, जिनमें इंडिया शब्द जुडा है. इसे सीधे-सीधे प्रधानमंत्री की व्यग्रता ही कहा जाएगा. सत्तारूढ़ दल के पास अब तरकश में तीर खाली होते दिख रहे हैं. उधर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह से नरेंद्र मोदी के इंडिया पर दिए बयान पर अपना पक्ष रखा है, वह सराहनीय है. राहुल गांधी ने स्पष्ट किया है कि इंडिया देश को जोड़ने वाला है. इंडिया जीतेगा, भारत जीतेगा. देश में नफरत हारेगी और मोहब्बत की दुकानें खुलेंगी. लगता है कि 2024 का चुनाव आते-आते सत्ता और विपक्ष की लड़ाई काफी निचले स्तर तक चली जाएगी, जिसे देश पहली बार देखेगा.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.