Shyam Kishore Choubey
बाइस वर्षों के झारखंड में बनी ग्यारह सरकारों ने खूब काम किये, लेकिन समस्याएं हैं कि खत्म होने का नाम नहीं लेतीं. इन सरकारों ने सालाना बजट सात हजार करोड़ से बढ़ाकर एक लाख दस हजार करोड़ तक पहुंचा दिया, फिर भी यह अभागा राज्य पिछड़ेपन का रोना रोता ही रहता है. 11वीं सरकार ने बड़े-बड़े विज्ञापन जारी कर बताया कि उसने ‘आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार’कार्यक्रम के तहत विभिन्न जिलों में 2021 में 6,867 शिविर लगवाकर नागरिकों से 35.95 लाख आवेदन प्राप्त किये थे. जिनमें से 35.53 लाख समस्याओं का समाधान कर दिया गया था. इधर 12 से 22 अक्टूबर तक 2,669 शिविर लगवाकर 19,56,918 आवेदन प्राप्त किये और उनमें से आधे का मौके पर ही समाधान किया. अब 01 से 14 नवंबर तक पुनः समस्या शिविर लगाये जाएंगे. बजट और समस्याओं के ये आंकड़े किसी का भी सिर चकराने के लिए कम नहीं हैं. पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने भी ‘आपकी सरकार, आपके द्वार’कार्यक्रम अंधाधुंध चलाया था. उस सरकार ने तो बकायदा घोषित कर रखा था कि समस्याएं हैं तो फलां नंबर पर फोन/मेल कर दें, दन से काम हो जाएगा. 2019 में चुनाव हुआ तो कारण जो भी हों, तत्कालीन डबल इंजन सरकार को ही समस्या मानते हुए नागरिकों ने ढेर कर दिया. अब तीन वर्षों से झामुमो के नेतृत्व में गैर भाजपा सरकार है, जिसे हेमंत सोरेन चला रहे हैं.
अवाम की समस्याएं क्या होती हैं? अमूमन उनको उन्हीं समस्याओं से जूझना पड़ता रहा है, जिनके समाधान के लिए वर्षों पहले सरकार ने समय निर्धारित कर दिया था. इसके अनुसार, जन्म-मृत्यु, जाति आदि से संबंधित कोई प्रमाण पत्र, जमीन-मकान से जुड़े कोई दस्तावेज, राशन कार्ड, छात्रवृत्ति, केसीसी, मनरेगा जॉब, ड्राइविंग लाइसेंस आदि-आदि के लिए आप आवेदन कर दें, ई-पोर्टल पर डाल दें, निर्धारित समय पर सब हासिल हो जाएंगे. इसके अलावा बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी समस्याएं भी रहती हैं, जिनके लिए हर सरकार ने घोषणाएं कीं. लेकिन समाधान नहीं हो पाता. भूखे जेब ‘बबुआन’ हिलते नहीं. बेचारी सरकार करे क्या, शिविर लगवा देती है.
नागरिक समस्याओं का जवाब विपक्ष के पास भी रहता है. हेमंत सरकार के समानांतर प्रतिपक्षी भाजपा ने 07 से 13 नवंबर तक प्रखंड मुख्यालयों में और 19 से 23 नवंबर तक जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन की घोषणा कर रखी है. उसका कहना है, हेमंत सरकार कुछ नहीं कर रही, भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, अपराधी बेलगाम हो गए हैं. इसलिए राज्य की चार हजार से अधिक पंचायतों और 32 हजार गांवों में मुहिम चलाकर जनता को जगाया जाएगा. इसके पहले उसने राजधानी रांची में पांच हजार से अधिक निर्वाचित अपने पंचायत प्रतिनिधियों का 18 अक्टूबर को जुटान कर ‘सम्मान’ किया. यह अलग बात है कि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर हुआ ही नहीं था. हाल ही में हेमंत सरकार ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कैबिनेट निर्णय लिया, लेकिन प्रस्तावित नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं करने के मसले पर भाजपा ने 20 अक्टूबर को राजभवन पर धरना दिया. मतलब यह कि सरकार और प्रतिपक्ष दोनों ही जनता-जनार्दन के सवाल पर बेचैन हैं. लेकिन समस्याएं सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जाती हैं.
सरकार ने हाल ही सरकारी सेवकों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू कर दी, 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता का कैबिनेट निर्णय लिया, तीन दशक पुराने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विस्तार पर जनता की मांग पर विराम लगा दिया, सर्वजन पेंशन की भी घोषणा की, लेकिन समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं.
और तो और, खुद सरकार भी समस्याग्रस्त है. मुख्यमंत्री के नाम माइनिंग लीज मसले पर उनको अयोग्य ठहराने की भाजपा की मांग और राजभवन की इच्छा पर चुनाव आयोग ने अपना मंतव्य दो महीने पहले दे दिया. वह लिफाफ खुल ही नहीं रहा. खुला भी हो तो राजभवन मुंह नहीं खोल रहा, हालांकि खुद मुख्यमंत्री ने मांग की, जो भी निर्णय हो, बताया जाये. वे ‘बेचारे’ गुहार लगा रहे हैं, मैं दोषी हूं तो सजा दीजिए. उनके एक खैरख्वाह ने इस विषय पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी की लिखित मांग की है. यह अलग बात है कि सूचना आयोग निष्प्राण है.
इन तमाम समस्याओं के बीच एक दूसरी समस्या ईडी और सीबीआई की भी है. वे राज्य में घुसे-धंसे चले आ रहे हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं कि केंद्र सरकार पर राज्य का बकाया 1.36 लाख करोड़ मांगा तो ईडी, सीबीआई का फंदा डाला जा रहा है. 12 साल पुराने मनरेगा घोटाले की तफ्तीश के लिए ईडी घुसा तो उसने टेंडर घोटाले से लेकर माइनिंग घोटाला, शराब मामला आदि-आदि पर पंजे डालना शुरू कर दिया. सत्ता के गलियारे में वर्षों से गहरे तक पैठे एक सज्जन प्रेम प्रकाश के आवास से दो सरकारी एके 47 राइफलों की बरामदगी कर ली. यह सिलसिला और इसका फलितार्थ कहां तक जाएगा, अभी कहना मुश्किल है. फिल्म अभिनेता संजय दत्त के हवाले से एके 47 बरामद भी नहीं हुआ था, लेकिन उनको सजा भुगतनी पड़ी. यहां तो एके 47 मसले पर एफआईआर तक नहीं हुई है.
खैर, जनता की समस्याएं जनता की और ‘सरकार’ की समस्याएं सरकार की. समस्याएं बनी ही रहेंगी. समस्या केंद्र-राज्य संबंधों पर भी है. जनता की समस्याएं अपनी जगह हैं, लेकिन सरकार की समस्या का कोई समाधान नहीं. राजनीति है ही ऐसी चीज. उसका कोई ओर-छोर नहीं. इसी कारण अमूमन सरकार पसीने-पसीने रहती है. वह बेचारी क्या-क्या करे? चुनाव की कोई याद न दिलाए. समाधान चुनाव के समय होता है, जब हर दल और हर प्रत्याशी कहता फिरता है, सारी समस्याओं का समाधान मेरी जीत में है और आप हमें जीत दिलाएं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.