Jyoti kumari
Ranchi: झारखंड में जनजातीय भाषाओं की शिक्षा का स्तर और भी बिखरता नजर आ रहा है. जहां एक ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड की हो, मुंडारी और कुड़ुख जैसी भाषाओं को बढ़ावा दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर रांची में इन्हीं भाषाओं के छात्र विभाग और यूनिवर्सिटी की व्यवस्था से परेशान हो चुके हैं.
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नहीं मिल रहे हैं गाइड
रांची यूनिवर्सिटी के जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग (TRL) में इस बार कुल 14 ने जेआरएफ और 101 छात्रों ने नेट क्वॉलीफाइ किया है. पर छात्रों की मुश्किलें अब और भी बढ़ चुकी हैं. पीएचडी के लिए नेट-जेआरएफ क्वॉलिफाइड छात्र-छात्रायें गाइड की खोज में भटकते नजर आ रहे हैं. टीआरएल विभाग के विकी मिंज ने बताया कि नेट क्वॉलीफाइ करने के बावजूद उन्हें गाइड की खोज में भटकना पड़ रहा है.
नतीजतन छात्र अब रांची और राज्य के बाहर गाइड ढूंढने को मजबूर हैं. नेट क्वॉलिफाइड छात्रों का मानना है कि जब जेआरएफ के छात्रों को ही गाइड नहीं मिल रहे, तो फिर उन्हें कहां से मिलेंगे. विभाग और यूनिवर्सिटी में जो भी गाइड मौजूद हैं, उनके पास पहले सत्र के ही काफी छात्र हैं.
विभाग में स्थायी प्रोफेसर की कमी
जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग में कुल 9 जनजातियों भाषाओं की पढ़ाई होती है. विभाग में नागपुरी, मुंडारी, कुड़ुख, संताली, हो, खोरठा, पंचपरगनिया, कुरमाली और खड़िया में कुल 242 छात्र हैं. विभाग में कुल 45 पद होने के बावजूद सिर्फ 36 अनुबंधित शिक्षक मौजूद हैं.
जिनमें से केवल दो ही शिक्षक स्थायी है. टीआरएल विभाग के एचओडी डॉ. हरि उरांव और अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ उमेश नंद तिवारी के अलावा सभी शिक्षक अस्थायी हैं. विभाग के एचओडी डॉ. हरि उरांव ने बताया कि छात्रों के अधिक संख्या के कारण यूनिवर्सिटी स्तर पर कई बार खाली पड़े पदों पर नियुक्ति की मांग रखी गयी है, पर फिर भी अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
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नहीं मिला एक भी प्रमोशन
विभाग में अस्थायी शिक्षकों के कारण छात्रों और स्थायी शिक्षकों दोनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. विभाग के एचओडी डॉ. हरि उरांव और अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ उमेश नंद तिवारी से बात के दौरान उनकी यूनिवर्सिटी और व्यवस्था पर नाराजगी साफ नजर आयी.
उनकी मानें तो पिछले 33 साल में उन्हें अबतक एक भी प्रमोशन नसीब नहीं हुआ है. यूनिवर्सिटी और कुलपति से उनकी मांगे यह है कि पहला स्थायी शिक्षकों की प्रोन्नति और दूसरा स्थायी शिक्षकों की बहाली. छात्रों और एचओडी डॉ. हरि उरांव के अनुसार, स्थायी शिक्षकों के नियुक्ति के बिना गुणवत्तापूर्वक पढ़ाई संभव नहीं है.
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