Ranchi: झारखंड में बाल श्रम और बाल प्रताड़ना का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. आरपीएफ के उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त के घर में नाबालिग नौकरानी के शोषण की खबर सुर्खियों में है. इससे पहले भी कई पदाधिकारियों पर बाल श्रम करवाने और उनपर अत्याचार करने का आरोप लगा है. ऐसा ही एक मामला 2019 में हजारीबाग के बड़कागांव में आया था. तत्कालीन बीडीओ राकेश कुमार और उनकी पत्नी के खिलाफ बाल श्रम और बच्चों के प्रति क्रूरता को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी. एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है. एनएचआरसी ने सरकार को आदेश दिया है कि पीड़ित बच्ची को एक लाख रुपये मुआवजा दिया जाये. बड़कागांव के तत्कालीन बीडीओ के घर में काम करने वाली नाबालिग बच्ची के साथ बीडीओ और उनकी पत्नी ने मारपीट की थी. इतने में भी मन नहीं भरा तो इस्त्री गर्म कर उसके शरीर में जख्म दे दिया. अस्पताल में बच्ची के दिये बयान के आधार पर 1 अक्टूबर 2019 को मामला दर्ज हुआ.
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पीड़ित परिवार को अबतक 2 लाख रुपये मिला
बचपन बचाओ आंदोलन ने इस मामले में हस्तक्षेप किया था. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बीडीओ के खिलाफ कार्रवाई के लिए आन्दोलन किया था, तब जाकर प्राथमिकी दर्ज हुई. 7 नंवबर 2019 को दंडाधिकारी ने जांच रिपोर्ट सौंपी, जिसमें आरोप को सही पाया. वहीं प्राथमिकी दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो गये, लेकिन पुलिस की बढ़ती दबिश के कारण उन्होंने हाईकोर्ट से सशर्त अग्रिम जमानत लिया. आरोपियों से वसूली गई 2 लाख की जुर्माना राशि पीड़ित परिवार को दी गयी थी.
आरोपी पर विभागीय कार्रवाई की भी मांगी रिपोर्ट
उधर एनएचआरसी ने भी मामले में संज्ञान लिया और 13 जनवरी 2021 को उसने राज्य सरकार को इस मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया. जिसमें पूछा गया कि आयोग द्वारा पीड़िता के लिए 1 लाख के मुआवजा की अनुशंसा क्यों नहीं की जाये? इसके बाद 18 जून को एनएचआरसी ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश जारी किया कि आरोपी के खिलाफ सरकारी सेवा शर्तों के अनुसार विभागीय कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट पेश किया जाये. क्योंकि वर्ष 2019 में ही दंडाधिकारी ने जांच के बाद आरोप को सही पाया था. एनएचआरसी ने डीजीपी को भी मामले की अद्यतन रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है.
डीसी को 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश
NHRC ने हजारीबाग डीसी को भी निर्देश दिया था कि बाल श्रम क़ानून के प्रावधान के मुताबिक, पीड़ित बच्ची के पक्ष में जमा की गई राशि एवं उसके पुनर्वास सम्बन्धी उठाये गए कदम के बारे में चार हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल किया जाये. वरना उनके खिलाफ मानवाधिकार कानून के धाराओं के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
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