Soumitra Roy
किसी भी भारतीय के लिए अपने देश के प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता. ये हमारे लिए दुखद है. लेकिन सोमवार रात दावोस में विश्व आर्थिक मंच के शिखर सम्मेलन में मोदीजी के भाषण के दौरान जो कुछ हुआ, उसे टाला जा सकता था. अगर प्रधानमंत्री के पास अपने भाषण का लिखित हिस्सा होता, तो वे उसे बिना रुके और टैलिप्रॉम्प्टर के सुधरने का इंतज़ार किये बिना पढ़ सकते थे.
दुनिया के 190 से ज़्यादा देश मोदीजी को सुनने के लिए मौजूद थे. फिर वे टैलिप्रॉम्पटर पर देखकर पढ़ें या कागज़ पर, उनकी बात अहम होती है. चीनी राष्ट्रपति ने मोदी से पहले मंदारिन में भाषण दिया. जर्मन, फ्रेंच, रूस जैसे कई देशों के प्रमुख भी अपनी भाषा में संवाद करते हैं. हिंदी में बोलना कोई गंवारूपन नहीं है. अंग्रेज़ी के गुलामों ने हिंदी को दोयम दर्जे का बना रखा है और ये मेरे जैसे पेशेवर अनुवादक को रोजी-रोटी देता है. लेकिन पिछले माह बनारस में मोदीजी 2 टैलिप्रॉम्प्टर की मदद से हिंदी में बोल रहे थे और इतिहास ही गलत बोल गए.
हमें ऐतराज़ है मोदीजी की लार्जर दैन लाइफ इमेज से, जो उन्होंने अपने चापलूसों की मदद से खुद गढ़ी है. कागज़ पर पढ़ेंगे तो नजरें नीची होंगी, कैमरे का फोकस नहीं जमेगा और फिर उनका गुरूर टूटेगा. या तो मोदी अपना भाषण खुद डिक्टेट करवाते हैं या उनके बाबू बीजेपी IT सेल से मदद लेते हैं.
राहुल गांधी ने ठीक कहा था कि मोदी बिना टैलिप्रॉम्प्टर के एक शब्द नहीं बोल सकते और कल दुनिया ने इसे सच होते देख लिया. नेहरू, इंदिरा और अटल बिहारी वाजपेयी जैसा वक्ता बनना आसान नहीं है. हर कोई बन भी नहीं सकता. लेकिन जब आप दुनिया से मुखातिब होते हैं तो आपकी नाक नहीं, भारत की नाक दांव पर होती है. वह भी वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग और लाइव. यहां चूक की कोई गुंजाइश नहीं.
कल रात जो गड़बड़ हुई, उसके पीछे मोदीजी के ख़िलाफ़ किसी बड़ी साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता. पर, मज़ाक तो बन ही गया ना. पूरी दुनिया में. मज़ाक भी इसलिए, क्योंकि गलतियों की लंबी फ़ेहरिस्त है. यह मज़ाक बनेगा, अगर आप अपने किरदार और कर्तव्य को मज़ाक बनाएंगे.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.