Ranchi : ओबीसी आरक्षण व स्थानीय नीति पर राजनेता अपने चाल और चरित्र बदलते रहें हैं, लेकिन मूलवासी सदान मोर्चा ओबीसी आरक्षण को लेकर लगातार संघर्षरत है. ओबीसी को 36% आरक्षण देने और1932 के साथ अंतिम सर्वे 1964 के आधार पर स्थानीय नीति को परिभाषित करने की मांग को लेकर लगातार लंबे समय से मोर्चा आंदोलन और संघर्ष करते रहा है. उक्त बातें मूलवासी सदान मोर्चा केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने रविवार को एक बैंक्वेट हॉल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कही.
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27 नहीं 36% मिले आरक्षण
मूलवासी सदान मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि झारखंंड सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 27% करके पहले की स्थिति में लाने का प्रयास किया है. सरकार की इस पहल की सराहना की, लेकिन ओबीसी को 27 % आरक्षण दिए जाने पर सवाल भी खड़ा किया. कहा कि जब राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पिछड़ी जातियों की आबादी को देखते हुए कम से कम ओबीसी को 36% आरक्षण देने और यदि सरकार चाहे तो तमिलनाडु सरकार की तरह 50% आरक्षण देने की अनुशंसा राज्य सरकार के पास भेज दी है. फिर आयोग की अनुशंसा को दरकिनार कर 27% आरक्षण की बात क्यों की जा रही है. श्री प्रसाद ने कहा कि आयोग एक वैधानिक व संवैधानिक संस्था है और इसका सम्मान करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है.
7 जिले में ओबीसी का आरक्षण जीरो
राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि 7 जिलों में पिछड़ी जातियों का आरक्षण शून्य है – खूंटी, सिमडेगा, गुमला, दुमका, चाईबासा, लातेहार. पिछड़ी जातियों के आरक्षण को बढ़ाने से पहले इन जिलों में आरक्षण रोस्टर में सुधार लाएं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ओबीसी को इन जिलों में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा.
ओबीसी का हो जातिगत जनगणना
राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि ओबीसी जातियों का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की पहले सर्वेक्षण और जनगणना करायी जाए. जिससे न्यायालय में ओबीसी आरक्षण को कोई चुनौती ना दे सके. श्री प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि आबादी के अनुसार आरक्षण हो सकता है. इसके लिए ओबीसी का डेटा होना आवश्यक है. मोर्चा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने पंचायत चुनाव में ओबीसी को आरक्षण दिए बिना पंचायत चुनाव कराने को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया.
1932 में नहीं हुआ सभी जगह सर्वे
श्री प्रसाद ने कहा कि 1932 में पूरे राज्य में सर्वे नहीं हो पाया था. स्थानीय नीति को नियोजन नीति से हर हाल में जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार में बैठे अधिकारी इसमें कोई खेल ना करें, जब तक स्थानीय नीति को नियोजन नीति से नहीं जोड़ा जाता, तब तक झारखंडी को कोई लाभ नहीं होगा.
1951 भी हो स्थानीय नीति का आधार
श्री प्रसाद ने अपने सुझाव में यह भी कहा कि यदि किसी के पास खतियान नहीं है तो 1951 के जनगणना को आधार बनाने और ग्राम प्रधान, ग्राम सभा के द्वारा पहचानी को भी आधार बनाने का सुझाव सरकार को दिया. श्री प्रसाद ने कहा कि बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जो बहुत पहले से इस राज्य में रह रहे हैं, लेकिन उनके पास खतियान नहीं है, ऐसे में उनको भी 1951 के जनगणना और पहचान के आधार पर शामिल किया जाना चाहिए.
मूलवासी सदान के बिना झारखंड की कल्पना नहीं
श्री प्रसाद ने कहा कि सदानों और और पिछड़ों को उनके अधिकारों से वंचित कर झारखंड राज्य कभी खुशहाल हो नहीं सकती है. मूलवासी सदान अलग राज्य के आंदोलन में साथ न दिया होता तो झारखंड राज्य कभी भी बन नहीं सकता था.
संवाददाता सम्मेलन में झारखंंड आंदोलनकारी व मोर्चा के सलाहकार, नागपुरी भाषा परिषद के अध्यक्ष डॉ. राम प्रसाद, मोर्चा के महेंद्र ठाकुर, अधिवक्ता रविंद्र कुमार, विशाल कुमार सिंह, ब्रज भूषण पाठक,मो. हुसैन अंंसारी, इरफान अंसारी, गौरव अग्रवाल अमित सिंह आदि उपस्थित थे.
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