Bhubaneswar : ओडिशा के भुवनेश्वर में सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ लोगों द्वारा सामुदायिक भोज का आयोजन कर चिकन बिरयानी परोसने की घटना ने तूल पकड़ लिया है. संतों और धर्मगुरुओं ने सूर्य ग्रहण के समय सामुदायिक भोज में मांस परोसने की घटना पर रोष जताया है. जानकारी के अनुसार खुद को तर्कवादी बताने वाले लोगों के एक समूह ने कथित अंध विश्वास को तोड़ने के लिए इस भोज का आयोजन किया था.
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, वे अज्ञानी हैं. उनके कार्य सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं. ग्रहण के दौरान उन लोगों द्वारा खाया गया भोजन (चिकन बिरयानी) उनके जीवन का अभिशाप हो सकता है. उन्होंने कहा कि जो लोग बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन कर नये सिद्धांत गढ़ते हैं, वे अपने जीवन और बड़े पैमाने पर समाज को नुकसान पहुंचाते हैं.
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समाज को गुमराह करना स्वस्थ संस्कृति नहीं है
संत ने कहा, नियम और परंपराएं भारतीयों के दर्शन, विज्ञान और सामाजिक व्यवहार के आधार पर बनाई गयी हैं. परंपराएं बताती हैं कि किस समय क्या खाया जाना चाहिए. प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु पद्म श्री बाबा बलिया ने भी तर्कवादियों के कृत्य की निंदा की, जिन्होंने मंगलवार को सूर्य ग्रहण के दौरान उपवास की परंपरा को सार्वजनिक रूप से चुनौती दी थी. हालांकि उन्होंने कहा, कोई किसी को खाना खाने से नहीं रोक सकता. लेकिन, समाज को गुमराह करना स्वस्थ संस्कृति नहीं है. सूर्य या चंद्र ग्रहण के दौरान खाली पेट रहने की प्रथा विज्ञान पर आधारित है.
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मैंने बचपन से ग्रहण के दौरान खाना खाया है : प्रोफेसर रथ
इस बीच, तर्कवादियों ने कहा है कि वे आठ नवंबर को होने वाले चंद्र ग्रहण के दौरान भी ऐसा ही करेंगे. उत्कल विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रताप रथ ने कहा, मैं जो मानता हूं, उसके साथ खड़ा हूं. जो कुछ भी विज्ञान पर आधारित नहीं है, उसका पालन नहीं किया जाना चाहिए. मैंने बचपन से ग्रहण के दौरान खाना खाया है और आगे भी ऐसा करता रहूंगा. 66 वर्षीय रथ ने कहा, मैंने किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया है या फिर संविधान के खिलाफ काम नहीं किया है.
जानकारी सामने आयी है कि इन तर्कवादियों के खिलाफ पुरी और कटक के अलग-अलग थानों में धार्मिक संगठनों द्वारा कम से कम चार प्राथमिकियां दर्ज कराई गयी हैं.