Ranchi: झारखंड में 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति नहीं बन सकती. यह दावा 6 महीने पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा के अंदर चलते सत्र के दौरान किया था. लेकिन 6 महीने भी नहीं बीते कि उनकी कैबिनेट ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने की मंजूरी दे दी. विधायक सरयू राय ने इस पर आश्चर्य जताया है. उन्होंने कहा कि ‘पिछले विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता संभव नहीं है और अब इसे लागू कर दिया. आखिर दो महीने में ऐसा क्या हुआ. हाईकोर्ट के 5 जजों का निर्णय (2002) रहते हुए यह 9वीं अनुसूची में कैसे शामिल होगा? जबकि आधा झारखंड इसकी परिधि में नहीं आता. नीयत सही है तो सर्वेक्षण करा लें.’
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विधानसभा के बजट सत्र में मुख्य मुद्दा स्थानीय नीति का था
फरवरी-मार्च में एक महीने तक चले विधानसभा के बजट सत्र में मुख्य मुद्दा स्थानीय नीति का था. विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था. सरकार पर स्थानीय नीति घोषित करने काफी दबाव था. इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने 1932 के खतियान पर स्थानीय नीति बनाने से साफ मना कर दिया. 23 मार्च को बजट सत्र के भाषण में उन्होंने कहा कि स्थानीय नीति खतियान के आधार पर नहीं बन सकती है. क्योंकि अगर इसके आधार पर नीति बनाएंगे तो कोर्ट से वह खारिज हो जाएगा. हम जानते हैं कि नीति कैसे बनानी है.
गेंद अब विधानसभा, राजभवन और केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया
उसी वक्त मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि पहले भाजपा वाले बैटिंग कर रहे थे और हम बॉलिंग, लेकिन अब हम बैटिंग कर रहे हैं और ये बॉलिंग. इसलिए यह हम तय करेंगे कि किस बॉल पर सिंगल, कब डबल और कब चौका-छक्का लगाना है. बैटिंग करते हुए 6 महीने बाद सरकार पर छाये संकट के बीच आखिरकार मुख्यमंत्री ने मौका देखकर चौका और छक्का लगा दिया. स्थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण पर इतना बड़ा फैसला लेकर आदिवासी-मूलवासी वोटरों को बड़ा संदेश तो दिया ही. साथ ही गेंद अब विधानसभा, राजभवन और केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है.
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