New Delhi : केंद्र सरकार ने एक देश-एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति के लिए शनिवार को आठ सदस्यों के नाम जारी किये. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद के अलावा 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल किये गये हैं.
Congress leader Adhir Ranjan Chowdhury declines invitation to be member of High Level Committee to examine ‘one nation, one election’
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— ANI Digital (@ani_digital) September 2, 2023
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे. विधि विभाग के सचिव नितेन चंद्र समिति के सचिव बनाये गये हैं. हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने कमेटी में शामिल होने से इनकार कर दिया है. कांग्रेस ने समिति को संसदीय लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश करार दिया है.
कहा है कि इसके नतीजे पहले से ही तय हैं. शनिवार को समिति के कामकाज की अधिसूचना जारी की गयी है. अधिसूचना के अनुसार समिति देखेगी कि इस प्रक्रिया में राज्यों की सहमति कितनी आवश्यक है.कितने राज्यों की सहमति जरूरी है,
अधीर रंजन ने कहा, मैं इस कमेटी में शामिल नहीं हो सकता
खबरों के अनुसार कमेटी में शामिल किये जाने पर अधीर रंजन चौधरी ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिख तककहा कि मैं इस समिति में काम नहीं करूंगा. आरोप लगाया कि इसका गठन इस तरह से किया गया है कि नतीजे पहले से तय हो सकें. कहा कि आम चुनाव से पहले ऐसी समिति बनाना सरकार के छुपे हुए इरादों की ओर इशारा करती है.
आरोप लगाया कि संवैधानिक रूप से एक संदिग्ध व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की जा रही है. यह भी कहा कि राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को शामिल नहीं करना संसदीय लोकतंत्र का अपमान है.
1951-52 से 1967 तक एक देश एक चुनाव की व्यवस्था थी
जान लें कि दिसंबर 2015 में संसद की स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनाव दो चरणों मे करवाने की सिफारिश की थी. शनिवार को जारी अधिसूचना में सरकार ने विधि अयोग की 170वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि हर साल और बिना तय समय के होने वाले चुनाव रुकने चाहिए. सरकार का कहना था कि देश को फिर 1951-52 से 1967 तक चली एक देश एक चुनाव की व्यवस्था की ओर लौटना जाना चाहिए.
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