Vikash
Ranchi: राजधानी रांची से महज 18 km की दूरी पर स्थित है कमड़े बाबा आश्रम. जिसकी स्थापना 1949 में स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती ने की थी. स्वामी पूर्णानन्द बंगाल से चल कर रांची पहुंचे थे. वे खड़ाऊ पहनते थे, उनके पास हिरण की एक खाल थी. यह अभी भी आश्रम में मौजूद है. जिस पर बैठकर वे अपने शरीर से पृथ्वी में ऊर्जा के संचरण को रोकने के लिए कुछ समय बैठते थे. शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए इसे एक आध्यात्मिक तंत्र के रूप में विशिष्ट माना गया है.
स्वामी पूर्णानन्द बांग्ला, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषा के ज्ञानी थे. बताया जाता है की स्वामी ने भोजन के तौर पर अपने पूरे जीवन काल में बिना नमक के उबले आलू और पानी का सेवन किया. आश्रम के पुरोहित पवन कुमार भट्ट के अनुसार बाबा ने अनाज का सेवन नहीं किया. साथ ही उन्होंने यह भी बताया की 1947 के दौरान रांची के प्रथम डीसी एमपी सिंह किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसका इलाज डॉक्टर भी नहीं कर पा रहे थे. इस दौरान स्वामी पूर्णानन्द स्वामी को तत्कालीन डीसी ने पत्र लिख कर रांची बुलाया था. और उन्हें डीसी आवास में ही अथिति के रूप में ठहराया गया. उनके ध्यान और औषधि से ही बीमारी ठीक हुई थी.
आश्रम की खासियत
उनके द्वारा चुने गये स्थान के बारे में कुछ सबसे आश्चर्यजनक तथ्य थी, कर्क रेखा जो की वास्तव में केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान से होकर गुजरती है. यह कमड़े के पास 23.4 डिग्री उत्तर में है. इसके अलावा, वहां कांके डैम में बहने वाली वर्षा आधारित नदी थी. ऐसा माना जाता है की ध्यान के लिए ठंडी जगह होने के कारण इस स्थल का चुनाव किया गया. आश्रम के आसपास ग्रेनाइट के कई पत्थरों से ढंकी हुई भूमि थी.
रांची के तत्कालिन उपायुक्त एमपी सिंह के निर्देशों के आलोक में यह आश्रम की नींव रखी गई. जिसके बाद 9.81 एकड़ की कुल भूमि परमपूज्य बाबा को दी गयी. उनके दो भक्तों नारायण दास मुंजाल और कमड़े गांव के जमींदार कैलाश नाथ मां भारती ने 2.7 एकड़ और 7.34 एकड़ भूमि दान में दी. जिसके बाद भक्तों द्वारा किसी भी बड़े खंड को नष्ट या आघात पहुंचाये बिना आश्रम का निर्माण कराया गया. उस समय आश्रम में एक गुफा सहित एक मंजिल वाली इमारत थी, जिसमें मात्र एक ही प्रवेश द्वार था.
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मंदिरों की खासियत
शिव मंदिर
स्वामी पूर्णानन्द ने सबसे पूर्व शिव मंदिर की स्थापना की. यह गुफा के ठीक ऊपर स्थापित किया गया था. जहां उन्होंने अपना ध्यान लगाया और नौ दिन लंबी समाधि ली थी. जैसे ही इससे जुड़ा काम शुरू हो गया, बाबा ने प्रतिमा के स्वरूप, आकृति और आकार की परिकल्पना की थी और फिर भगवान शिव की संगमरमर की प्रतिमा को जयपुर से कमड़े आश्रम लाया गया था.
हनुमान मंदिर
1960-62 के दौरान आश्रम के कुछ भवनों का निर्माण अथवा विस्तार किया गया. 1969 में स्थापित हनुमान मंदिर के अंदर कमड़े बाबा ने अपने भक्तों से भगवान हनुमान की पूर्ण आकार की धातु से बनी प्रतिमा स्थापित करने के लिए कहा. प्रतिमा से संबंधित तकनीकी कार्य, हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के फाउंड्री फोर्ज प्लांट के महाप्रबंधक एसडी जोशी को दिया गया.
जबकि अन्य भक्तों जैसे गुरुदेव खेमानी और राजदेव सिंह आईपीएस के भाई को हनुमान प्रतिमा बनाने के लिये आवश्यक उपकरण जुटाने का दायित्व सौंपा गया.मूर्ति का निर्माण कृष्ण मिस्त्री द्वारा इसकी प्रारंभिक आकृति और संरचना तैयार की गयी. इसके साथ ही बाबा ने उन्हें प्रतिमा का आकार दिखाया. इसके आधार पर मिस्त्री ने 1.5 फीट ऊंची एक मिट्टी की मूर्ति तैयार की.
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