Ranchi : झारखंड में कृषि शुल्क विधेयक को प्रभावी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. इससे राज्यभर के खाद्यान व्यापारियों एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्यमियों में आक्रोश है और वे आंदोलन पर उतर आए हैं. व्यापारी काला बिल्ला लगाकर इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. कृषि शुल्क विधेयक से होनेवाली परेशानियों पर व्यापारियों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उनका कहना है कि झारखंड के सीमावर्ती राज्यों में मंडी शुल्क नहीं है. इस शुल्क से व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा, जिससे मंहगाई बढ़ेगी. पिछली बार सरकार ने मंडी टैक्स नहीं लगाने का आश्वासन दिया था. अब तो इस विधेयक से इंस्पेक्टर राज को भी बढ़ावा मिलेगा, इसलिए हर हाल में इसका विरोध होगा. मालूम हो कि झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक-2022’ पर राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अब राज्य में मुख्य रूप से खरीदारों से दो प्रतिशत कृषि बाजार टैक्स व तुरंत नष्ट होने वाले कृषि उपज पर एक प्रतिशत टैक्स लगेगा. इसके अलावा विधेयक में कृषि विपणन में निजी भागीदारी व कृषकों को बाज़ार के अधिक विकल्प उपलब्ध कराने की बात कही गयी है. शुभम संदेश की टीम ने विभिन्न जिलों से व्यापारियों की प्रतिक्रिया ली है. पेश है रिपोर्ट.
विधेयक से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
- गौरतलब है कि 24 मार्च, 2022 को झारखंड विधानसभा से यह विधेयक पारित करा कर पहली बार राज्यपाल के पास भेजा गया था, लेकिन राज्यपाल की ओर से हिन्दी-अंग्रेजी रूपांतरण सहित अन्य कई आपत्तियों के साथ इसे अस्वीकृत कर सरकार को 17 मई, 2022 को लौटा दिया गया था.
- फिर दूसरी बार शीतकालीन सत्र में 24 दिसंबर, 2022 को विधानसभा द्वारा विधेयक को स्वीकृति के लिये राज्यपाल के पास भेजा गया था. विधेयक पर चर्चा के लिये किसी मंत्री को पहली बार राजभवन बुलाया गया था.
राज्यपाल ने एक फरवरी 2023 को विधेयक में निहित प्रावधानों को लेकर कृषि मंत्री और कृषि सचिव के साथ चर्चा की. - राज्यपाल ने विधेयक के संबंध में कई सुझाव भी राज्य सरकार को दिये हैं, जिसमें बताया गया है कि इस विधेयक के आलोक में नियमावली के गठन के दौरान सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा सुनिश्चित की जाए. इसके अलावा बाज़ार शुल्क की दर निर्धारण में राज्य के ग्रामीण तथा अनुसूचित जनजातीय (एसटी) समुदाय के कृषकों का विशेष ध्यान रखते हुए शुल्क का निर्धारण किया जाए.
- इस विधेयक में मुख्य रूप से किसानों के उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने की बात कही गई है. राज्यों से आयातित वस्तुओं पर अधिकतम स्लैब दो प्रतिशत कृषि शुल्क लगाने का प्रावधान है. कच्चे माल में एक प्रतिशत और सीलबंद पैक माल यानि जल्द खराब नहीं होने वाले माल पर अधिकतम एक प्रतिशत टैक्स लेने का प्रावधान है.
- विधेयक में कृषि बाज़ार समितियों में राज्य सरकार द्वारा मनोनीत या निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अध्यक्ष बनाया जाना, ‘एक देश एक बाज़ार’ के तहत राज्य के कृषकों को आधुनिक विपणन व्यवस्था के तहत इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल से जोड़ना, कृषि बाज़ार टैक्स से प्राप्त राजस्व से ग्रामीण हाट-बाज़ारों के आधुनिकीकरण के साथ नये बाज़ारों की स्थापना करना, ताकि किसानों को प्रत्येक 10 किमी. पर बाज़ार उपलब्ध हो सके आदि प्रावधान हैं.
व्यवसायियों ने किया रोषपूर्ण प्रदर्शन, विरोध में लगाया काला बिल्ला
- कृषि शुल्क विधेयक के खिलाफ सोमवार को गोला चौक पर हजारीबाग के व्यवसायियों ने रोषपूर्ण प्रदर्शन किया. सभी ने विधेयक के विरोध में काला बिल्ला लगाया. खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ हजारीबाग के प्रवक्ता विजय जैन ने कहा कि बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश में भी बाजार समिति शुल्क को हटा दिया गया है. जीएसटी के अलावा कर लगाने का प्रावधान नहीं है. इससे यहां के लोगों को अन्य राज्य की तुलना में ज्यादा दाम देकर सामान खरीदना होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी और आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
- इस बिल के लागू होने से झारखंड में कृषि उपज व औद्योगिक विकास के लिए काफी नकारात्मक साबित होगा.
- सभी ने एकमत से कहा कि झारखंड में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कृषि शुल्क विधेयक किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा.
- आठ फरवरी को रांची चेंबर भवन रांची में राज्य स्तरीय बैठक कर इस विधेयक के विरोध में आगे की रणनीति तैयार की जाएगी. जिलों के खाद्यान्न व्यापारी कृषि मंडी के व्यापारी, राइस मिलर्स, फ्लावर मिलर्स, कृषक कई व्यापारिक संगठन के पदाधिकारी इस बैठक में शामिल होंगे.
- कृषि उत्पादन बाजार समिति में दो फीसदी टैक्स के विरोध में मंगलवार को भी काला बिल्ला लगाकर व्यवसायी काम करेंगे.
बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं है
झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष मनोज नरेड़ी ने कहा कि कृषि विधयक बिल से खाद्यान्न पर दो प्रतिशत और सब्जी एवं फल पर एक प्रतिशत टैक्स लगेगा. राज्य के पड़ोसी राज्यों जैसे बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई भी बिल नहीं है. उन्होंने कहा कि यह झारखंड की परिस्थिति के विपरीत यह विधेयक यहां के व्यापारियों और जनता के खिलाफ है. यह विधेयक नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ को दर्शाता है. सरकार ने पिछले साल भी यह प्रयास किया था. इसके खिलाफ व्यापारियों ने राज्यव्यापी आंदोलन कर इसे वापस कराया था. अगर सरकार ने इसे वापस नहीं लिया तो इस बार भी व्यवसायी एकजुटता दिखाते हुए आंदोलन करेंगे.
स्थानीय व्यापारियों का व्यापार समाप्त हो जाएगा
सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव अनिल मोदी का कहना है कि झारखंड के खाद्यान्न व्यापारियों के तमाम विरोध एवं आपत्तियों के बावजूद प्रदेश में झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन 2022 विधेयक को मंज़ूर कर लिया गया है. राज्य में इतने विरोध के बावजूद इसका मंजूर होना निश्चित तौर पर व्यापारियों के लिए कष्टकारी है. इस विधेयक के लागू होने के बाद व्यापारियों के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा. चूंकि बगल के राज्यों बंगाल, ओडिशा और बिहार में यह शुल्क लागू नहीं है. ऐसे में छोटे व्यापारी बगल के राज्यों से माल मंगाएंगे और स्थानीय विक्रेताओं का व्यापार चौपट हो जाएगा. इससे व्यापारियों के साथ सीधे राज्य सरकार को भी राजस्व का नुकसान होगा. व्यापारी इस बात से भी सशंकित हैं कि इस विधेयक से इंस्पेक्टर राज बढ़ेगा. व्यापारी वर्ग पहले ही ऑनलाइन ट्रेडिंग से व्यापार को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है. यदि यह विधेयक लागू हुआ तो व्यापारियों के समक्ष विकराल स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.
सरकार से बात की जाएगी, नहीं मानी तो आंदोलन
झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष राहुल मारू ने कहा कि राज्य भर में बहुत तरह के व्यवसाय हैं और ऐसे में कृषि विधेयक को फिर से शुरू करना कहा तक सही है. पहले भी बिल को पारित किया गया था.अब ऐसा नहीं होगा. इसके लिए सबसे पहले सरकार से बात की जाएगी. सारी बातें सामने रखीं जाएगी. अगर इस मुद्दे पर सरकार में सुनवाई नहीं हुई तो आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी. मेरा कहना है कि सरकार को इस मामले में बहुत सोच विचार कर फैसला करना चहिए. इस बिल से राज्य में महंगाई को बढ़ावा मिलेगा.
झारखंड में मंडी शुल्क लगाने से मंहगाई बढ़ेगी
सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष विजय आनंद मूनका ने कहा है कि झारखंड कृषि उत्पादन राज्य नहीं है. यहां ज्यादातर खाद्यान्नों का दूसरे राज्यों से आयात करना पड़ता है. राज्य में ज्यादातर व्यापार ट्रेडिंग पर आधारित है. मंडी अथवा बाजार शुल्क लगने से महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक है. वहीं आस-पास की सीमावर्ती राज्यों में मंडी शुल्क नहीं है. इसके कारण लोग सीमावर्ती राज्यों से खाद्यान्न मंगाना शुरू करेंगे. इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होगा. वहीं मंडी शुल्क के लागू होने से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा. व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. एक तरफ सरकार गरीबों को मुफ्त में आनाज बांट रही है. वहीं दूसरी ओर, सरकार द्वारा मंडी टैक्स लगाकर महंगाई बढ़ाई जा रही है. टैक्स का जितना सरलीकरण होगा, व्यापार उतना बढ़ेगा. सरकार द्वारा पहले व्यापारियों को मंडी टैक्स नहीं लगाने का आश्वासन दिया जाता है. फिर चुपके से विधेयक को विधानसभा से पारित करवा कर राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है.
सरकार इस बिल को हमारे ऊपर थोप रही है
झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष किशोर मंत्री ने कहा कि सरकार इस बिल को हमारे ऊपर थोप रही है. एक अनुमान के अनुसार करीब डेढ़ लाख व्यापारी इससे प्रभावित होंगे. पहले भी सरकार ने ऐसा किया था. लेकिन सभी के कड़े आंदोलन के बाद सरकार को इस बिल को वापस लेना पड़ा. उन्होंने बताया कि इसे लेकर बुधवार को रांची में राज्य स्तरीय बैठक बुलाई अगर सरकार नहीं मानेगी तो फिर से आंदोलन किया जाएगा.
मंडी टैक्स लगाना अदूरदर्शिता का परिचायक है
जमशेदपुर व्यापार मंडल के अध्यक्ष दीपक भालोटिया का कहना है कि सरकार द्वारा मंडी टैक्स लगाने से जहां प्रदेश में व्यापार घटेगा वहीं सरकार को राजस्व का नुकसान भी होगा. सरकार द्वारा मंडी टैक्स लगाना अदूरदर्शिता का परिचायक है. सरकार द्वारा पहले व्यापारियों को बाजार शुल्क अथवा मंडी टैक्स नहीं लगाने का आश्वासन दिया जाता है. फिर इसे लागू कर दिया जाता है. यह तो सरकार द्वारा व्यापारियों को धोखा देने का काम किया गया है. सीमावर्ती राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार में मंडी टैक्स नहीं है. मंडी टैक्स लगाने से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा. व्यापारियों की परेशानी बढ़ेगी. व्यापार घटेगा और सरकार को राजस्व का नुकसान होगा. मंडी शुल्क लागू करने से सरकार को दोहरा नुकसान होगा. एक तो व्यापार घटेगा. इससे जीएसटी घटेगा. वहीं मंडी या बाजार शुल्क वसूलने के लिए सरकार को व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी. उसमें सरकार को राशि खर्च करनी होगी.
मंडी टैक्स लगाना व्यापारियों से धोखा है
कैट के राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया ने कहा है कि कोरोना काल के दो वर्षों के बाद बाजार अभी स्थिर होने की प्रक्रिया में है. कोरोना के दौर में बर्बाद हो चुके व्यापारी अभी ठीक से संभल भी नही पाएं हैं कि सरकार द्वारा मंडी टैक्स लगाकर व्यापारियों की परेशानी बढ़ाने का काम किया जा रहा है. सरकार द्वारा व्यापारी संगठनों को आश्वासन दिया गया था कि प्रदेश में मंडी टैक्स लागू नहीं होगा. फिर सरकार द्वारा मंडी टैक्स लागू करना व्यापारियों के साथ धोखा है. क्या सरकार ई कॉमर्स के माध्यम से व्यापार करने वालों पर भी मंडी टैक्स लगा पाएगी. सरकार छोटे व्यापारी पर दबाव बना सकती है, लेकिन बड़े व्यापारी इससे अछूते रहेंगे. राज्य के व्यापारी मजबूरन दूसरे राज्यों में पलायन करेंगे, तो राज्य में व्यापार घटेगा. इससे सरकार को राजस्व का सीधे नुकसान ही होगा. सरकार को इस मामले में पुनर्विचार करना चाहिए.
कृषि शुल्क स्वीकार्य नहीं, पुरजोर विरोध होगा
लातेहार चेंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष सुशील कुमार अग्रवाल ने कहा है कि झारखंड में लगने वाले कृषि शुल्क का पुरजोर विरोध किया जायेगा. इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. जिले के व्यवसायियों ने सोमवार से काला बिल्ला लगा कर अपने-अपने प्रतिष्ठानों में कार्य किया. आठ फरवरी को रांची चेंबर भवन राज्य स्तरीय बैठक आयोजित कर आगे की रणनीति तय की जायेगी.
मुख्यमंत्री से मिल कर बिल वापसी की मांग करेंगे
लातेहार चैंबर ऑफ कामर्स के उपाध्यक्ष गजेंद्र प्रसाद शौंडिक ने कहा कि आगामी 14 फरवरी को मुख्यमंत्री लातेहार मे खतियानी जोहार यात्रा मे भाग लेगें. इस यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कृषि बिल को वापस लेने की मांग की जाएगी. यह बिल कहीं से भी व्यवसायियों के हित में नहीं है. प्रदेश के व्यवसायी संगठन और व्यापारी झारखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित दो प्रतिशत शुल्क के खिलाफ चरणबद्ध आंदोलन करेगें.
इस शुल्क से स्थानीय व्यापार चौपट हो जाएगा
व्यवसायी निर्दोष प्रसाद गुप्ता ने कहा कि इस विधेयक से स्थानीय व्यापार चौपट हो जायेगा. झारखंड से सटे राज्य जहां बाजार समिति शुल्क नहीं है, व्यापारी वहां से झारखंड में कृषि उत्पादों की सप्लाई करेंगे. इससे झारखंड सरकार को भी राजस्व की भारी हानि होगी और जनता को महंगाई का सामना करना पड़ेगा. सरकार को इस विधेयक को वापस लेना चाहिए.इस बिल से पूरे प्रदेश के व्यवसासियों में असंतोष है.
कृषि शुल्क का सभी पर असर पड़ेगा
पलामू के हुसैनाबाद व्यापारी संघ के अध्यक्ष प्रकाश लाल अग्रवाल ने कहा है कि कृषि शुल्क लागू हो जाने से किसानों व्यवसायियों और दैनिक मजदूरों पर भारी असर पड़ेगा. इस बिल का भविष्य में काफी बुरा असर पड़ेगा.उसे किसानों के साथ-साथ व्यवसाय पर भी काफी बुरा असर पड़ेगा. जैसे कृषि उत्पाद ,कृषि यंत्र ,रासायनिक खाद ,बीज, कीटनाशक सभी महंगे हो जाएंगे . इससे किसान खेती करने में असमर्थ हो जाएंगे. जिसके चलते किसानों के साथ-साथ व्यापारी, दैनिक मजदूर पर इसका काफी बुरा असर पड़ेगा इसलिए हम लोग चाहते हैं कि झारखंड सरकार कृषि शुल्क सोच समझकर लागू करने का प्रयास करें.
इस बिल का सभी वर्गों पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा
पलामू से झारखंड में कृषि शुल्क लागू करने की जो तैयारी चल रही है उस पर हुसैनाबाद व्यवसाई संघ के सचिव सैयद तकी रिजवी ने कहा है कि झारखंड में अगर कृषि शुल्क विधेयक लागू हो जाता है तो कृषक ,आम नागरिक, दैनिक मजदूर एवं मध्यम वर्ग के लोग पर इसका भारी प्रभाव पड़ेगा इससे लोगों को उपयोग में आने वाले खाद्य पदार्थ पहुंच से दूर हो जाएंगे. सर्वप्रथम करोना कल के बाद भी बाजार में मंदी चल रही है. पहले की तरह की बिक्री नहीं है और कृषि शुल्क लागू हो जाने से महंगाई बढ़ जाएगी. इसमें भी झारखंड अकाल की चपेट में है कृषि बिल लागू होना झारखंड वासियों, व्यापारियों किसानों के हित में नहीं होगा.
व्यपारियों पर तीन तरफा मार है,बाजार प्रभावित होगा
हजारीबाग के खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ के जिलाध्यक्ष और उत्तरी छोटानागपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स के सदस्य ओमप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि हजारीबाग के व्यवसायियों पर तीन तरफा मार है. एक तो जीएसटी, फिर चुंगी और अब कृषि शुल्क. इन सब का टैक्स बढ़ने पर खाद्यान्न की कीमत में उछाल आएगा. इसका असर बाजार और आम जनता पर भी पड़ेगा. यह बिल सरकार को वापस लेने की जरूरत है.
काले कानून को वापस ले सरकार,यह जनता पर बोझ
हजारीबाग के खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ के जिला सचिव और उत्तरी छोटानागपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स के अरुण साव ने कहा कि यह काला कानून है, सरकार को इसे वापस ले लेना चाहिए. इससे व्यवसायी और खरीदार दोनों को नुकसान है. खाद्यान्न पर जितना टैक्स बढ़ेगा, वह बोझ आम जनता पर ही पड़ेगा. व्यापारियों पर ही बाजार टिका हुआ है. सरकार को यह समझना चाहिए इस विधेयक से सामानों के दाम बढ़ेंगे और जनता पर मंहगाई की मार पड़ेगी. इसलिए सरकार इस पर शीघ्र विचार करे.
सरकार नहीं मानी तो बिल के वापस होने तक विरोध होगा
हजारीबाग के खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ के जिला उपाध्यक्ष और उत्तरी छोटानागपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स के विकास साव ने कहा कि विधेयक वापस होने तक विरोध होगा. अभी काला बिल्ला लगाकर व्यापारी शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. अगर सरकार नहीं मानेगी, तो आगे विरोध का भी स्वरूप और उग्र होगा. राज्य सरकार को बिल लाने के पहले व्यवसायियों से सहमति बनानी चाहिए थी. इस विधेयक से कारोबार पूरी तरह प्रभावित हो जाएगा इसके साथ ही सामान के दाम भी प्रभावित होंगे.
यह सरकार कारोबारियों की विरोधी है,मंहगाई बढ़ा रही है
हजारीबाग के खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ के जिला प्रवक्ता और उत्तरी छोटानागपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स के विजय जैन ने कहा कि यह सरकार कारोबारियों की विरोधी है. टैक्स पर टैक्स लादकर सिर्फ महंगाई बढ़ा रही है. पहले से ही जीएसटी, फिर नगर निगम क्षेत्र में चुंगी और अब कृषि बिल विधेयक लाकर सरकार व्यवसायियों को मानसिक और आर्थिक तनाव देने का काम कर रही है. अभी एक तरह से सांकेतिक प्रदर्शन है, आगे सरकार से वार्ता की जाएगी. अगर सरकार ने विधेयक वापस नहीं लिया, तो आगे की रणनीति बनाई जाएगी.
कृषि शुल्क विधेयक पर सरकार फिर विचार करे
हजारीबाग के खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ के कोषाध्यक्ष और उत्तरी छोटानागपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स हजारीबाग के पीयूष खंडेलवाल ने कहा कि कृषि शुल्क विधेयक पर सरकार फिर विचार करे. यह व्यवसायियों के हित में नहीं है. इससे व्यवसायी, उनका व्यवसाय, बाजार और उपभोक्ता सब कुछ प्रभावित हो जाएगा. सरकार को व्यवसायियों पर यह बोझ लादने की जरुरत नहीं है. कोरोना काल के बाद चीजों के दाम ऐसे ही बढ़े हुए हैं.इस बिल से सामान के दाम और प्रभावित होंगे.
बाजार समिति शुल्क लागू होने से व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा
चाकुलिया के मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक कुमार झुनझुनवाला ने कहा है कि बाजार समिति शुल्क लागू होने से व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. सरकार का यह फैसला व्यापारियों और मिलरों के लिए काला कानून साबित होगा. एक तो वैसे ही चावल मिल और इससे जुड़े व्यवसाय बुरे दौर से गुजर रहे हैं. वे बंदी के कगार पर हैं. इस हालत में सरकार को चावल मिलों को मदद की जरूरत है न कि बाजार समिति शुल्क लगाकर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने की. उन्होंने कहा है कि इसके खिलाफ चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा.
चावल मिल मालिकों और व्यापारियों पर बुरा असर पड़ेगा
चाकुलिया के मिलर्स एसोसिएशन के सचिव विनीत कुमार रूंगटा ने कहा कि सरकार द्वारा बाजार समिति शुल्क लागू करने से यहां की चावल मिलों पर और व्यापारियों पर बुरा असर पड़ेगा. यहां की चावल मिलें एक-एक कर बंद होती जा रही हैं. मिल मालिक और खाद्यान्न के व्यापारी बुरे दौर से गुजर रहे हैं. सरकार को चाहिए कि वह मिल मालिकों को और व्यापारियों को प्रोत्साहित करे ना कि शुल्क का बोझ देकर हतोत्साहित करे. उन्होंने कहा कि इस शुल्क के खिलाफ व्यापारियों का आंदोलन जारी रहेगा. सरकार इसे वापस ले.
अब उग्र आंदोलन करेंगे मिल मालिक और व्यापारी
चाकुलिया के एसोसिएशन के सदस्य वासुदेव रुंगटा ने कहा कि यह शुल्क व्यापारियों के लिए काफी हानिकारक होगी. पड़ोसी राज पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में सरकार यह शुल्क लागू नहीं है. इसके कारण वहां के मिल मालिकों और व्यापारियों को काफी राहत है, परंतु झारखंड सरकार बाजार समिति शुल्क लगाकर चावल मिलों को बंद करने का मार्ग प्रशस्त कर रही है. सरकार इसे वापस ले. अन्यथा मिल मालिक और व्यापारी उग्र आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे.
सरकार काला कानून वापस ले, तभी उद्योग पनपेगा
चाकुलिया के एसोसिएशन के सदस्य अविनाश सुरेखा ने कहा कि बाजार समिति शुल्क लगाकर सरकार चावल मिलों और खदान से जुड़े व्यापार को बर्बाद करने पर तुली है. बाजार समिति शुल्क लगने से प्रति क्विंटल अनाज पर 50 रूपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा. व्यापारी 10 से 20 रुपए क्विंटल के मार्जिन पर व्यापार करते हैं. झारखंड सरकार इस काले कानून को वापस ले. ताकि यहां के उद्योग धंधों को पनपने का अवसर मिले.
अब तक 25 में से 18 चावल मिलें बंद हो चुकी हैं
चाकुलिया के एसोसिएशन के सदस्य कमल प्रसाद रुंगटा ने कहा कि चाकुलिया में कभी 25 चावल मिलें हुआ करती थीं. परंतु पिछले 10 साल के दौरान करीब 18 चावल मिलें बंद हो गईं. जो चालू हालत में है वह भी बुरे दिन से गुजर रहे हैं. पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में बाजार समिति शुल्क लागू नहीं है. ऐसे में अगर यहां बाजार समिति शुल्क लागू हुआ तो यहां के व्यापारी व्यापार की प्रतिस्पर्धा में बंगाल और उड़ीसा के व्यापारियों से पिछड़ जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार इस कानून को वापस ले. अन्यथा इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन जारी रहेगा.
इस बिल को लाने से किसानों को कोई लाभ ही नहीं
धनबाद के कृषि बाजार चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बिनोद गुप्ता कहते हैं कि वर्ष 1984 से 2014 तक भ्रष्टाचार में थोड़ी कमी आई थी,लेकिन एक बार फिर हेमंत सरकार के राज्य में मंत्री सांसद व विधायकों की मिलीभगत के साथ इसे प्रारंभ किया गया है. 2% कृषि बिल लाना झारखंड सरकार को अपनी झोली भरना है, इस बिल के लाने से लाने से झारखंड के किसानों को कोई लाभ नहीं होने वाला. क्योँकि झारखंड में लगभग 90% अनाज, तेल व खाद्यान्न वस्तुओं की आवक दूसरे राज्यों से होती है. बिल लागू होने से इसका सीधा लाभ सिर्फ राज्य सरकार को मिलेगा.
झारखंड छोड़ अब पश्चिम बंगाल कूच कर जाएंगे व्यवसायी
धनबाद के कृषि बाजार चेंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव विकास कंधवे ने कहा कि झारखंड छोड़ अब पश्चिम बंगाल कूच करेंगे धनबाद के व्यवसायी. झारखंड की हेमंत सरकार व्यवसायी और जनता विरोधी हो चुकी है. इसका प्रमाण उन्होंने झारखंड विधानसभा सत्र के अंतिम दिन के अंतिम पहर में गुपचुप तरीके से बिल को ध्वनि मद से पास कराकर दिया है. यह सरकार कभी भी व्यवसायियों और जनता का भला नहीं कर सकती. इस बिल से सभी चीजों के दाम बढ़ेंगे. लोगों को और मंहगाई झेलनी पड़ेगी.
व्यवसायी आवक पर अनिश्चितकालीन लगाम लगाएंगे
धनबाद के कृषि बाज़ार चेम्बर ऑफ कॉमर्स से जुड़े व्यवसायी बिनीत बंसल ने कहा कि गुपचुप तरीके से पास बिल को हेमंत सरकार जल्द से जल्द निरस्त करे, नहीं तो एक बार फिर राज्य भर के व्यवसायी आवक पर अनिश्चितकालीन लगाम लगाएंगे, जिसकी जिम्मेवारी सरकार पर होगी. झारखंड चेंबर के अध्यक्ष किशोर जी पिछले कई दिनों से राज्य के विधायक, सांसद व मंत्री से मुलाकात कर इसे निरस्त करने का आग्रह कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने अब तक कोई भी पहल नहीं की है. यह आने वाले दिनों में सरकार के लिए नुकसानदेह साबित होगा.
दो प्रतिशत के फेर में पांच प्रतिशत से हाथ धोना पड़ेगा
धनबाद के व्यवसायी पवन कुमार गुप्ता कहते हैं कि हेमंत सरकार के लिए 2 % अधिक मुनाफा नुकसानदेह साबित हो सकता है. सरकार जल्द से जल्द अगर 2% लाभ वाले कृषि बिल को निरस्त नहीं करती है तो व्यवसायियों द्वारा दिया जाने वाला 5% जीएसटी से भी उन्हें हाथ धोना पड़ेगा. व्यवसायी हेमंत सरकार की इस व्यवसायी विरोधी नीति से तंग आ चुके हैं. अब व्यवसायी पड़ोसी राज्य बंगाल व उड़ीसा जाने की तयारी भी कर सकते हैं. व्यवसायी कोई कड़ा फैसला ले, इससे पहले सरकार को बिल निरस्त कर देना चाहिए.