Ranchi : संथाली भाषा के विद्वान प्रो. दिगम्बर हांसदा को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए “पद्मश्री सम्मान” से सम्मानित प्रो. दिगंबर हांसदा का गुरूवार 19 नवंबर को निधन हो गया. ट्राईबल्स और उनकी भाषा-साहित्य के उत्थान के क्षेत्र में पद्मश्री प्रो हांसदा का महत्वपूर्ण योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता है. वे केन्द्र सरकार के ट्राईबल अनुसंधान संस्थान एवं साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे. वर्ष 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
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संविधान का संताली में किया अनुवाद
पद्मश्री हांसदा ने सिलेबस की कई पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद भी किया. उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स संग्रहित किया. उन्होंने भारतीय संविधान का संताली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद करने के साथ ही कई पुस्तकें भी लिखीं. स्कूल कॉलेज की पुस्तकों में संताली भाषा को जुड़वाने का श्रेय पद्मश्री प्रो हांसदा को ही जाता है. प्रो. हांसदा लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे. रिटायरमेंट के बाद भी काफी समय तक कॉलेज में संताली की कक्षाएं लेते रहे.
UPSC और JPSC के सदस्य भी रहे
प्रो. हांसदा यूपीएससी नयी दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य के पद पद पर भी कार्य कर चुके थे. वे ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य रहे हैं. सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संताली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जोहारथन कमिटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे.
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ऑल इण्डिया संताली फिल्म एसोसिएशन द्वारा प्रो. हांसदा को लाईव टाइम ऐचिवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया था. वर्ष 2009 में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन ने भी सम्मानित किया था. वहीं भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा उन्हें डॉ. अंबेदकर फेलोशिप प्रदान किया जा चुका है. इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसायटी नई दिल्ली ने इनको भारत गौरव सम्मान से सम्मानित किया था. इसके अलावा 37 बटालियन एनसीसी व अन्य कई संस्थानो द्वारा पद्मश्री प्रो. हांसदा को सम्मानित किया जा चुका है.
पूर्वी सिंहभूम से बनायी पहचान
पद्मश्री प्रो. दिगम्बर हांसदा का जन्म जमशेदपुर के दोवापानी नामक गांव में एक ट्राइबल किसान परिवार में हुआ था. कुशाग्र बुद्धि हांसदा की प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई. उन्होंने बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाई स्कूल से पास किया था. सन् 1963 में रांची विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान विषय में स्नातक और 1965 में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त किया. उसके बाद टिस्को आदिवासी वेलफेयर सोसायटी से जुड़ गये. कॉलेज के दिनों से ही पद्मश्री प्रो. हांसदा समाजसेवा व ट्राइबल्स हितों की रक्षा के कार्यों में रुचि लेने लगे थे. इनकी पत्नी पार्वती हांसदा और एक पुत्री का स्वर्गवास हो चुका है, इनके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं.
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साहित्य के क्षेत्र में भी इनका अविस्मरणीय योगदान रहा है उनकी प्रमुख कृतियों में “सरना गद्य-पद्य संग्रह, संताली लोककथा संग्रह, भारोतेर लौकिक देव देवी, गंगमाला , संतालों का गोत्र है.