Sanjeet yadav
Palamu : नाबालिगों के साथ बढ़ते यौन अपराध को रोकने के लिए बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO) बनाया गया था. इसके बने हुए करीब 11 साल होने जा रहे है. पलामू प्रमंडल की बात करें तो इस प्रमंडल में वर्तमान में करीब 100 मामले में अनुसंधान लंबित है. वहीं 49 मामलों में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल किया है. नाबालिगों के साथ बढ़ते अपराध को लेकर अब झारखंड पुलिस गंभीर दिखाई दे रही है. पुलिस मुख्यालय की ओर से लगातार बैठक कर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले की समीक्षा की जा रही है. पुलिस पॉक्सो एक्ट के मामलों का जल्द से जल्द निपटारा करना चाहती है. शुक्रवार को पुलिस मुख्यालय ने झारखंड के सभी आईजी और डीआईजी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की. पॉक्सो एक्ट में दर्ज मामले का जल्द से जल्द निष्पादन करने का निर्देश दिया.
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पॉक्सो एक्ट के मामले को लेकर पुलिस गंभीर : राजकुमार लकड़ा
पलामू जोन में पलामू, गढ़वा और लातेहार के विभिन्न थानों में दर्ज पॉक्सो एक्ट मामले की समीक्षा की गई. पलामू में 30, लातेहार में 12 जबकि गढ़वा में 7 पॉक्सो एक्ट के मुकदमे में अनुसंधान को पूरा पाया गया. सभी मुकदमों में आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए योजना तैयार की जा रही है. समीक्षा बैठक में पुलिस पॉक्सो एक्ट के पीड़ितों की गवाही, साक्ष्य को इकट्ठा करने के साथ-साथ गवाहों को कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए योजना बना रही है. पलामू जोन के आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि पॉक्सो की धाराओं में दर्ज मामले को लेकर पुलिस मुख्यालय गंभीर है. पलामू जोन के सभी एसपी और अन्य पुलिस अधिकारियों को पॉक्सो की धाराओं में दर्ज मामलों में सजा दिलवाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं. राजकुमार लकड़ा ने कहा कि पॉक्सो की धाराओं में दर्ज एफआईआर गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है. इससे संबंधित मुकदमों को लेकर हाईकोर्ट के साथ-साथ सरकार भी गंभीर है. पॉक्सो के मामलों में स्पीडी ट्रायल के माध्यम से आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी. आईजी ने कहा कि इस तरह के मामलों में रिजल्ट की जरूरत है. इसलिए पॉक्सो की धाराओं में दर्ज मुकदमों की क्लोज मॉनिटरिंग की जा रही है.
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जानिए, क्या है पॉक्सो एक्ट
पॉक्सो एक्ट का मतलब होता है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है. वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है. इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो. इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है.