- लोगों ने जाना तुलसीराम व कार्तिक महतो का इतिहास
- ग्रामीणों ने उनके बताये मार्ग पर चलने का लिया संकल्प
Chaibasa : चक्रधरपुर प्रखंड के रोलाडीह गांव के पुनोहरिया आंगन में बीती रात को साहित्यकार सह कथाकार तुलसीराम व कार्तिक महतो की जयंती मनाई गई. इस दौरान उनकी तस्वीर पर मल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. मौके पर उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया. बताया गया कि साहित्यकार तुलसीराम महतो का जन्म 9 नवंबर 1830 में रोलाडीह गांव में हुआ था. उनके पिता गंगाधर महतो ने रोलाडीह गांव का सृजन किया था. जिसके बाद से उनके वंशज इस गांव में निवास कर रहे हैं. पारी-पारी कर उनके वंशज सह ग्रामीणों ने उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उनकी आत्मा की शांति के लिये भगवान से प्रार्थना की. इस दौरान कार्यक्रम में शामिल कलाकार राजाराम महतो ने कहा कि आज भी गांव के इतिहास को जानना हर किसी को जरूरी है. स्व. तुलसी राम सबों के लिये पुजनीय हैं. आज उनके इतिहास को खांगल कर पहली बार रोलाडीह गांव में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जो एक गर्व की बात है. इस दौरान मुख्य रूप से दलगंजन महतो, देउरी सोनाराम महतो, श्याम सुंदर महतो, गंगाधर महतो, अंगद महतो, पंडित महतो, निर्मल महतो, चांदमानी महतो, सुमित्रा महतो, संगीता महतो, हरी महतो, मालती महतो, सुनिता महतो, शिवदयाल महतो, लक्ष्मी महतो, रतनी महतो, भवानी महतो, सत्यवती महतो, उषा महतो, सीता महतो, लीलावती महतो, भावनी महतो, लोचना महतो, जम्ब महतो, रवि महतो समेत काफी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे.
तुलसीराम महतो की गायन वादन कला अद्वितीय थी
19वीं शताब्दी के 9 नवंबर 1830 को टोकलो थाना क्षेत्र के रोलाडीह गांव के एक जमींदार धनी परिवार में उनका जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम गंगाधर महतो था, जिसका पूर्व निवास सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर प्रखंड के रूगड़ी गांव था. गंगाधर और भरत दो भाई थे. दोनों भाई रूगड़ी गांव से रोलाडीह व बनडीह गांव में जाकर बस गये. गंगाधर महतो के चार पुत्र हुये, तुलसी, करण नारायण और शंकर. तुलसी इस क्षेत्र के महान कलाकार थे. कुड़मालि, बांग्ला, उड़िया व हो आदि भाषाओं की जानकारी थी. कहा जाता है कि इनकी संगीत कला अद्वितीय थी. एक ही साथ मुंह से गाना गाते, हाथ के घुंघरू बांधे ढोल, मादल बजाते, पैर में घुंघरू पहने करताल बजाते थे, जो कि असाधारण है. यह सबके वश की बात नहीं है. तत्कालीन केरा के राजा लक्ष्मी नारायण सिंहदेव से इनकी मित्रता थी. ये पांता झुमर गायक, झुमर रचयिता, झुमर गायक एवं पाता झुमर नृत्य के उस्ताद थे. यह भी कहा जाता है कि कभी मयूरभंज के किसी अखाड़े में आयोजित सात वादों अखाड़ा नृत्य प्रतियोगिता में जीत हासिल करने पर प्रण के अनुसार दान स्वरूप एक कन्या सुंदरी दिया गया था. जिसको उन्होंने स्वीकार कर पुन: उसके पिता को वापस सौंप दिया. इसके मांदल के आंतरिक वनावट में कुछ खासियत थी. यह बाहर कहीं भी जाते घोड़े पर सवार होकर जाते थे. उन्होंने फुलतुला, दुति पाला तथा करम राजाक उपाख्यान किताब भी उस समय लिखे थे.
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