Sunil Badal
2013 में सनातनियों के प्रसिद्ध तीर्थस्थल केदारनाथ धाम में भारी बारिश के बीच मंदाकिनी नदी ने विकराल रूप दिखाया था और उस ऐतिहासिक घटना में 6 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे, जिसके कारण मारे जाने वालों का आधिकारिक आंकड़ा भी साफ नहीं हो पाया. पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों ने इसके लिए अन्य कारणों के साथ इस बात की भी चर्चा की कि एक प्राकृतिक स्थल पर बिना किसी रोक-टोक के किए गए निर्माण और भारी भीड़ के कारण यह त्रासदी हुई. जिसके बाद तीर्थ स्थलों को धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित करने के प्रस्तावों पर पुनर्विचार किया जाने लगा.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हाल में झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने कई संगठनों की मांग के अनुरूप केंद्र सरकार से यह अनुशंसा की कि झारखंड स्थित जैन धर्मावलंबियों के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मधुवन और पार्श्वनाथ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव रोक दिया जाए और इसे तीर्थ स्थल के रूप में ही रहने दिया जाए. दोनों में जो मौलिक अंतर है. वह है कि एक में सीमित संख्या में जिस धर्म विशेष का वह धार्मिक स्थल होता है, उसके लोग वहां जाते हैं, जबकि पर्यटन स्थल में धार्मिक के साथ मौज मेले के लिए लोग जाते हैं और उनके मनोभाव में पूजा से अधिक छुट्टियां मनाने का भाव रहता है, जहां पर उस स्थान की पवित्रता, साफ सफाई या अन्य बंदिशों को मानने की बाध्यता नहीं रहती.
कई बार जो पर्यटक जाते हैं, वे वहां प्रतिबंधित मांस मदिरा जैसे साधनों का प्रयोग करते हैं, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. दोनों घटनाओं के बाद एक वैचारिक बहस पूरे देश में अंदरूनी तौर पर चल रही है कि निजी क्षेत्र से संसाधन जुटाने और लोकप्रियता बढ़ाने के लिए तीर्थ स्थलों को धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित करना कितना उचित या अनुचित है. पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग या व्यवसाय जगत से जुड़े हुए लोग पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने को बुरा नहीं मानते. उनका कहना है कि प्रतिबंधों के साथ ऐसा किया जाना चाहिए. लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसा संभव नहीं हो पाता, इसलिए कि मांस मदिरा जैसे साधनों से मोटी कमाई होती है और धार्मिक कार्यों में लगे लोग इसमें लिप्त वैसे आपराधिक छवि के लोग साथ उलझना नहीं चाहते. भारत के प्रायः सभी धार्मिक स्थलों के आसपास बड़ी संख्या में विदेशी या विशुद्ध रूप से पर्यटन की भावना से आने वाले लोगों की बड़ी संख्या देखी जाती है. कई बार इनकी गतिविधियां जाने अनजाने उस धार्मिक स्थल की पवित्रता के अनुरूप नहीं होती. बनारस, हरिद्वार, पुष्कर जैसे महत्वपूर्ण सनातनी धार्मिक स्थलों में ऐसे अनेक लोग जाते हैं, जो नशा पान के साथ-साथ अन्य कुकृत्य भी करते देखे गए हैं, कुछ लोग पकड़े भी गए हैं.
विश्व में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर धाम है, लेकिन उसे मेले का रूप दे दिया गया है, जहां पश्चिमी देशों के पर्यटक बड़ी संख्या में जाते हैं. उनको लुभाने के लिए स्थानीय उत्पादों के साथ धीरे-धीरे नशीली वस्तुएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं. कई क्लबनुमा झोंपड़े वहां पर देखे गए हैं, जिनमें माहौल किसी धार्मिक स्थल का न होकर किसी मनोरंजन स्थल जैसा है. इसी प्रकार बनारस और हरिद्वार जैसे पर्यटन स्थलों में मसाज पार्लर धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं. कुछ समाचार पत्रों ने कुछ दृष्टांत देकर इन पर रोक की भी मांग की थी.
दक्षिण भारत के एक मंदिर में उनकी सदियों पुरानी परंपरा को ध्वस्त कर नई परंपरा प्रारंभ करने की मांग जितनी जोर शोर से उठी थी उससे श्रद्धालुओं और आधुनिकतावादी विचारधारा के लोगों के बीच टकराव भी हुआ. मामला न्यायालय तक पहुंचा. इसी प्रकार प्रायः सभी पर्यटन स्थलों में प्लास्टिक के कूड़े कचरे और बीयर या शराब की बोतलें आमतौर पर फेंकी जाती हैं. स्थानीय निवासी कई बार इससे अपनी संस्कृति पर हमला और देखा देखी उनके बच्चों पर अपसंस्कृति का प्रभाव होने जैसी शिकायतें करते हैं. इसका बड़ा कारण है कि भारत के कुछ गिने-चुने पर्यटन स्थलों में ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग या पर्यटन विभाग से मान्यता प्राप्त गाइड उपलब्ध हैं या टूरिस्ट पुलिस की व्यवस्था है.
हिमाचल, अंडमान निकोबार और दक्षिण के उटी जैसे कुछ गिने-चुने स्थानों में ऐसी व्यवस्था है, जो बेरोकटोक पर्यटन स्थलों को विरूपित करने, प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने, अपने प्रेमी-प्रेमिकाओं के नाम लिखने और नशा पान जैसे कार्यों पर रोक लगाती है, अन्यथा बहुत से दुर्लभ पर्यटन स्थलों को बुरी तरह विरूपित किया गया है और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता. कई बार अगर कुछ समझदार लोग उन्हें रोकने का प्रयास करते हैं तो गर्मागर्मी या आपसी उलझन की स्थिति बन जाती है. इसलिए समय आ गया है कि भारत सरकार और राज्य सरकार मिलकर इस पर एक ठोस नीति और गाइडलाइन बनाएं और प्रशिक्षित मान्यता प्राप्त गाइड टूरिस्ट पुलिस जैसे लोगों को नियुक्त किया जाए. भले वह निजी क्षेत्र के हों, लेकिन पर्यटन स्थलों के बारे में सही जानकारी उपलब्ध कराएं और उनके द्वारा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धार्मिक संरक्षण की भी बात वहां पर रखी जाए, तभी ये पर्यटन स्थल मूल स्वरूप में बचे रह पाएंगे और उनकी पवित्रता भी बची रह पाएगी.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.