Shyam Kishore Choubey
2020 के फरवरी-मार्च में अपने पहले बजट सत्र में हेमंत सरकार ने श्वेत
पत्र जारी कर पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के द्वारा खजाना खाली किये जाने का आरोप लगाया. लेकिन उसमें ऐसा कुछ विशेष नहीं था, जिससे बात बहुत आगे तक जाय. यह बजट सत्र देश भर में दिन दूनी, रात चैगुनी गति से बढ़ते जा रहे कोरोना प्रकोप के कारण निर्धारित समय से पहले ही समाप्त किया जा चुका था.
लेकिन इसके हफ्ता भर के अंदर यानी मार्च के अंतिम दिन से कुछ घंटे पहले रांची में पहला कोरोना केस मिला, जिसके रफ्तार पकड़ने में देर न लगी. खासकर राजधानी रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, धनबाद जैसे शहरों में तो इसने आतंक ही मचा दिया. अलबत्ता गांव-गिरांव अपेक्षाकृत काफी हद तक स्वस्थ-सुरक्षित रहे. गांवों में शहरों की तुलना में इम्युनिटी बहुत अधिक
होती है संभवतः. उधर मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद आदि-आदि महानगरों में
कार्यरत झारखंडी मजदूर या इससे थोड़े उच्च कोटि के ड्राइवर,
इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर आदि-आदि की गृह वापसी शुरू हो गई. केंद्र सरकार द्वारा लागू बेहद सख्त लॉकडाउन के कारण रेल और सड़क यातायात बंद था.
इसलिए किराये के वाहनों से या पांव पैदल ही परिवार के परिवार घर के लिए रवाना हो चुके थे. उनकी सोच काफी हद तक सही थी कि रोजी-रोजगार बंद है और मरना ही है तो घर-परिवार के बीच मरें.
हेमंत ने उस समय विशेष रेल, यहां तक कि प्लेन से भी अप्रवासियों को झारखंड लाने की न केवल घोषणा की,
अपितु इसे अंजाम भी दिया. तकरीबन 12 लाख अप्रवासियों की वापसी का रिकार्ड
दर्ज किया गया. इससे यह भी पता चला कि 20 वर्ष में हमारी सरकारों ने रोजगार के क्षेत्र में कितनी बतकूचन की. स्कूल-कॉलेज, मंदिर-मस्जिद, होटल-रेस्तरां आदि-आदि सभी इस अनोखी किंतु आवश्यक तालाबंदी की जद में आ
गये थे. केवल दवा, सब्जी-फल, दूध, खाद्य सामग्री जैसी अत्यंत आवश्यक
सेवाओं की दुकानें खुली थीं, वह भी नियत समय तक ही. शुरू में तो अफरातफरी मची. लेकिन शीघ्र ही सभी लोग आदी हो गये. ठेले-खोमचे वाले और गली-नुक्कड़ पर पान, चाय आदि बेचनेवालों की परेशानियां बढ़ गईं. उनका रोजगार चैपट हो
गया. जैसा कि पूरे देश में, क्या पूरी दुनिया में हुआ, झारखंड की भी
अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ा. बहुत सारे छोटे-मंझोले उद्योग, शापिंग मॉल आदि-आदि बंद हो गये. अनेक लोगों का रोजगार छिन गया. इस महामारी का बुरा असर सामाजिकता पर भी पड़ा. लोगों का मिलना-जुलना बंद हो गया. स्थिति
इतनी विकट हो चुकी थी कि किसी स्वजन का देहांत हो जाने पर भी दूसरे शहर या राज्य में रह रहे लोग अंतिम दर्शन और अंतिम संस्कार में नहीं आ पा रहे थे.
इस तालाबंदी का एक सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा. गाड़ी-मोटर, कल-कारखाने बंद हो जाने से वायुमंडल में शुद्ध ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई. आसमान साफ रहने लगा. चिरई-चुनमुन चहचहाने लगे. वायु प्रदूषण में गुणात्मक सुधार आने के बावजूद मेडिकेटेड ऑक्सीजन की कमी से कोरोना प्रभावितों की अकाल मृत्यु में बढ़ोतरी दर्ज की जाने लगी. इम्युनिटी बूस्टर के बतौर तरह-तरह
के काढ़ा आदि का उपयोग बढ़ गया. लोग फेस मास्क और हैंड ग्लब्स लगाकर चलने लगे. राज्य और केंद्र में झांवझांव बढ़ गया. एक और बात हुई. जो लोग दो-चार दिन की छुट्टी के लिए तरसते रहते थे, वे अब या तो घर से ऑनलाइन ड्यूटी
करने लगे या दफ्तर बंद होने के कारण संपूर्ण गृहवास का लाभ उठाने लगे.
शासन-प्रशासन तो बस ‘कोरोना’ में ही व्यस्त होकर रह गया. कोरोना प्रोटोकोल के अनुसार एक-दूसरे से कम से कम छह फीट की दूरी बनाकर रहना था, वह भी फेस मास्क पहनकर. ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों को राशन, दवा आदि मुफ्त उपलब्ध कराने में न सरकार पीछे रही, न ही सामाजिक संस्थाएं. सवाल
भूख का कम, महामारी का अधिक था. मौतें महामारी से ही हो रही थीं. इस अकल्पनीय महामारी की चपेट में गरीब-अमीर, निःशक्त-सशक्त सभी आ रहे थे. कई विधायक, आइएएस-आइपीएस अधिकारी और यहां तक कि डॉक्टर भी इसके संक्रमण से अछूते न रहे. मंत्री हाजी हुसैन अंसारी तो राजधानी के एक बड़े अस्पताल में कोरोना से निजात पाने के ठीक अगली सुबह तीन अक्टूबर 2020 को उनकी मौत हो गई, जबकि दूसरे मंत्री जगरनाथ महतो के फेफड़े इस हद तक संक्रमित हो गये कि ट्रांसप्लांट कराने की नौबत आ गई. उनको आनन-फानन में एयर एंबुलेंस से चेन्नई ले जाया गया. उनको चंगा होने में दस महीने लग गये. यह उनके लिए ही संभव था. 31 मार्च 2020 को मिले पहले मरीज के बाद दिसंबर 2020 के बीच 1,11,510 लोग संक्रमित हो अस्पताल दाखिल हुए, जिनमें 999 की मौत की आधिकारिक घोषणा की गई, जबकि 1,08,940 संक्रमित स्वस्थ हुए.
जमशेदपुर इलाके में मृत्यु दर सर्वाधिक 36 प्रतिशत रही, जबकि दूसरा स्थान रांची का था, जहां मृत्यु दर 21 प्रतिशत थी. कोरोना के बदले वैरियंट के साथ दूसरी लहर लगभग एक साल बाद राज्य में 2021 के मार्च में अपना रंग दिखाने लगी, जिसने पूरे अप्रैल और मई के कुछ दिनों तक तो तांडव ही मचा दिया. इसकी संक्रमणशीलता और विकरालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है
कि शायद ही कोई घर-परिवार बचा हो, जो किसी न किसी रूप में इसके प्रभाव
में न आया हो. पूरे कोरोना काल में एक अगस्त 2021 तक राज्य में 3,47,173
लोग प्रभावित हुए, जिनमें से 5,128 काल के गाल में समा गये, जबकि
3,41,793 संक्रमित जन की जान बच गई. इस सरकारी आंकड़े में यह भी बताया गया
है कि भारत में कोरोना संक्रमितों की औसत मृत्यु दर 1.30 प्रतिशत के
सापेक्ष झारखंड में मृत्यु दर 1.47 रही. बहुत संभव है कि धरातल पर
संक्रमितों और मौतों की तादाद अधिक ही हो क्योंकि कोरोना के विस्तार का
सही-सही लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है.
इधर बाबूलाल के मसले पर राजनीति गरमायी रही. महाधिवक्ता भी सवालों के
घेरे में आने लगे तो लगभग छह महीने बाद उन्होंने कानूनी राय दे ही दी.
उसी के आधार पर स्पीकर ने बाबूलाल, प्रदीप और बंधु के विरूद्ध
स्वतःसंज्ञान लेते हुए दल-बदल अधिनियम के तहत 18 अगस्त 2020 को मामला
दर्ज कर लिया. इसी काल में इन लोगों के विरूद्ध कुछ याचिकाएं भी उनके
न्यायाधिकरण में डाल दी गईं.
मुख्यमंत्री पद धारण करने के बाद भी हेमंत ने काफी अरसे तक नौकरशाही में
फेरबदल पर संयम रखा. इसका बहुत ही सकारात्मक संदेश जा रहा था. लॉकडाउन
का तीसरा-चौथा दौर समाप्त होते-होते ताश के पत्तों की तरह ब्यूरोक्रेसी
में हर स्तर पर बदस्तूर फेरबदल की जाने लगी. राज्य की हर सरकार का यही
रूख रहा है. हेमंत सरकार उसकी अकेली उदाहरण नहीं है. जैसा कि हर बार
प्रतिपक्ष इसे ‘तबादला उद्योग’ की संज्ञा देकर कटाक्ष किया करता रहा था,
इस पारी में भी वही हो रहा है.
कोरोना की पहली लहर के दौरान ही राज्य में तीन उपचुनाव हुए. हेमंत खुद
दुमका और बरहेट दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव जीत कर आये थे, इसलिए
उन्होंने दुमका सीट ऐन गणतंत्र दिवस के दिन 26 जनवरी 2020 को त्याग दी
थी. बेरमो सीट से जीते दिग्गज कांग्रेसी नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह का 24
मई 2020 को निधन हो जाने के कारण यह क्षेत्र भी रिक्त हो गया था, जबकि
अक्टूबर में मंत्री हाजी हुसैन का इंतकाल हो जाने से मधुपुर सीट खाली हो
गई थी. इन तीनों सीटों पर हुए उपचुनाव में दलगत हिसाब से यथास्थिति कायम
रही. दुमका से हेमंत के अनुज बसंत सोरेन, बेरमो से राजेंद्र सिंह के
पुत्र कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह और मधुपुर से हाजी हुसैन के
साहबजादे हफीजुल हसन की जीत हुई. हां, एक अलहदा बात यही रही कि उपचुनाव
से लगभग दो महीने पहले फरवरी 2021 में ही हफीजुल को मंत्री पद की शपथ
दिला दी गई थी. उपचुनाव में भाजपा ने मधुपुर में अपने पुराने विश्वस्त
साथी मंत्री रह चुके राज पलिवार की जगह आजसू से फूट कर आये या फोड़कर लाये
गये गंगा नारायण सिंह को मैदान में उतारा था. खैर, 17 अप्रैल 2021 को हुए
उपचुनाव में पांच हजार वोट से ही सही हफीजुल ने बाजी मारी और उनकी
ललबतिया सलामत रह गई. हेमंत की सरकार बनने के तत्काल बाद एक खास
संवैधानिक परंपरा का निर्वाह करते हुए बतौर एंग्लोइंडियन विधायक ग्लेन
जोसेफ गॉल्सटीन का मनोनयन कर दिया गया था. वे पिछली एनडीए सरकार में भी
इसी पद पर विराजमान कराये गये थे. पूर्व में उनके पिता जोसेफ पंचोली
गॉल्सटीन को यह सुअवसर हर सरकार में मिला करता रहा था. 18 जून 2010 को
उनका देहांत हो जाने के बाद यह पद-लाभ ग्लेन जोसेफ गॉल्सटीन को मिलने
लगा. राजधानी रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर मैक्लुक्सीगंज नामक एक छोटा
सा रमणीक कस्बा है, जहां आजादी के पहले बहुतायत एंग्लोइंडियन रहते थे.
आजादी के बाद उनकी बड़ी आबादी या तो इंग्लैंड या अन्य स्थानों पर शिफ्ट हो
गई. अब गिनती के एंग्लोइंडियन परिवार बचे हैं. फिर भी परंपरा है तो है.
हर सरकार में इनमें से एक व्यक्ति को विधायक मनोनीत किया जाता है और वह
व्यक्ति गॉल्सटीन परिवार से ही होता आया है. वह और कुछ नहीं तो हाउस के
अंदर वोटिंग में सरकार के काम आता ही है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.