Ranchi: गोस्सनर महाविद्यालय के सभागार में एकदिवसीय कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, क्षेत्रीय केंद्र रांची और गोस्सनर महाविद्यालय, रांची के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को हुआ. इस गोष्ठी का विषय था द्वितीय जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा कवि गोष्ठी.
अतिथियों का स्वागत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. कुमार संजय झा ने किया. उन्होंने विद्यार्थियों से जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति जागरूक होने का आह्वान किया और कहा कि वे अपनी भाषा में लिखें, पढ़ें और रचनाओं के माध्यम से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में योगदान दें.
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि महादेव टोप्पो ने अपनी साहित्यिक यात्रा साझा करते हुए कहा कि झारखंड के कवियों की आवाज़ अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी गंभीरता से सुनी जा रही है. उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया आदिवासी ज्ञान, संस्कृति और देशज जीवनशैली को अपनाने में गर्व महसूस कर रही है.
विशिष्ट अतिथि प्रो. इलानी पूर्ती ने कविता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि केवल शरीर से मनुष्य होना पर्याप्त नहीं है, कविता ही आदमी को सच्चा मनुष्य बनाती है. कविता जीवन की गहराइयों से उपजती है और कवि यथार्थ जीवन में घटित घटनाओं को अपनी आंखों से देखता है. कवि की दृष्टि आम लोगों से भिन्न होती है और वह समाज को एक नई सोच प्रदान करता है.
कार्यक्रम का संचालन संत जेवियर कॉलेज, रांची के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कमल बोस ने किया. उन्होंने अपनी तार्किक बातों और संक्षिप्त कविताओं से अतिथियों और छात्रों को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि कविता दिल की भाषा है और कवि दिल की आत्मा. कवि की भावना कविता के रूप में सामने आती है और वह हमें प्रेरित करता है. कविता में सत्य होता है और कवि हमें जगाने का काम करता है.
गोष्ठी में झारखंड के विभिन्न स्थानों से आए कवियों ने हिंदी, क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं में अपनी कविताओं का पाठ किया. इन कवियों ने कविता में गांव की मिट्टी, लोकजीवन और संघर्षों की झलक प्रस्तुत की, और समसामयिक मुद्दों पर केंद्रित कविता सुनाई. इसमें समाज की विडंबनाओं और आशाओं का चित्रण किया गया और आदिवासी समुदाय के पारंपरिक लोकगीतों और रीति-रिवाजों को साझा किया गया.
पांच जनजातीय और चार क्षेत्रीय भाषाओं के कवि इस कार्यक्रम में शामिल हुए. कवियों ने श्रम और मेहनतकश समाज की वास्तविकता को उजागर करते हुए प्रकृति और आदिवासी अस्मिता को केंद्र में रखकर सशक्त कविता प्रस्तुत की. कविताओं के माध्यम से जनजातीय समाज की संघर्षशीलता और प्राकृतिक सौंदर्य को अभिव्यक्त किया गया.
इस कार्यक्रम में विनोद कुमार (खोरठा), आशीष कुमार (हिंदी), अनिमा तेलरा (बिरजिया), रतन कुमार महतो (कुरमाली), डॉ. हेमंत टोप्पो (कुडुख), डॉ. प्रशांत गौरव (हिंदी), डॉ. अमित कुमार (खोरठा), तिलक सिंह मुंडा (पंचपरगनिया), डॉ. हाराधन कोइरी (पंचपरगनिया), सुचीत कुमार राय (खोरठा), डॉ. जॉन कंडुलना (मुंडारी), डॉ. ठाकुर प्रसाद मुर्मू (संताली), सुधीर साहू (नागपुरी), प्रो. फ्रांसिस मुर्मू (संताली), और प्रो. आइजक कंडुलना (मुंडारी) प्रमुख थे.
कार्यक्रम में कला संकाय की डीन डॉ. ज्योति टोप्पो, वाणिज्य विभाग के प्रमुख डॉ. श्यामलेश कुमार, भूगोल विभाग के प्रमुख प्रो. प्रमोद तिर्की, दर्शनशास्त्र के प्रमुख डॉ. पीके. गुप्ता, वनस्पति विभाग के प्रमुख डॉ. मृदुल्ला खेस, बंगला विभाग के प्रमुख डॉ. ध्रुपद चौधरी, मुंडारी विभागाध्यक्ष मीना सुरीन और अन्य छात्र-छात्राएं शामिल थे.
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