Vinit Abha Upadhyay/Saurav Singh
झारखंड के कुछ जिलों में पुलिस अफसरों की एक से एक दास्तान फिर से चर्चा में है. एक जिले के साहेब के पिता से थानेदार परेशान हैं. तो एक प्रमंडल के पुलिस पदाधिकारी उजले रंग की स्कॉर्पियो से चलने वाले बड़े साहेब के खासमखास बॉडीगार्ड और भट्ट से परेशान हैं.
Ranchi : झारखंड के एक जिले के थानेदार पिता-पुत्र से परेशान हैं. परेशानी पुत्र से ज्यादा पिता की वजह से है, क्योंकि साहेब के पिता न समय देखते हैं और न दिन, जब उनका मन करता है, फोन उठाते हैं और जिले के किसी भी थानेदार को फोन कर अपनी डिमांड ठोक देते हैं. मामला साहब के पिता का रहता है, तो किसी की मजाल नहीं की टाल सके. लेकिन साहब के पिता जी का फोन आते ही थानेदार थर्रा जाते हैं, उन्हें डर सताने लगता है कि पता नहीं इस बार डिमांड ड्राफ्ट कितने का होगा? आलम यह है कि थानेदारों को यह भी समझ नहीं आ रहा है कि साहब को किया कमिटमेंट पूरा करें कि उनके पिता की डिमांड. दरअसल सिस्टम के तहत जिले के सभी थानेदार अपनी औकात के हिसाब से साहब को हर महीने तय तारीख पर रिचार्ज करते रहते हैं, ताकि उनकी कुर्सी सुरक्षित रहे. अब साहेब के पिता के मैदान में आ जाने से लोड ज्यादा बढ़ गया है. इस बीच चर्चा यह भी है कि साहब की नजर अब राजधानी की हॉट सीट पर है. रांची में वह पहले भी काम कर चुके हैं और यहां के आबो-हवा से पूरी तरह वाकीफ हैं.
जिले के साहब का बॉडीगार्ड तो बड़े साहब का भट्ट सक्रिय
एक पुलिस प्रमंडल से तो अजीब खबर आ रही है. एक भट्ट नाम का आदमी और एक सिंह नाम का बॉडीगार्ड है. दोनों पुलिस विभाग के ही हैं. लेकिन बड़े साहेब के खासमखास हैं. उजले रंग की स्कॉर्पियो से चलते हैं. स्कॉर्पियो में कोई नंबर नहीं होता. लेकिन मजाल है किसी पुलिस अफसर की कि गाड़ी रोक दे. इस भट्ट से प्रमंडल भर के पुलिस पदाधिकारी परेशान हैं. क्योंकि उसमें ना तो बात करने की तहजीब है, ना ढ़ंग से काम करने-कराने की. वहीं दूसरी तरफ जिले के साहब के वफादार बॉडीगार्ड सिंह भी काफी सक्रिय हैं और हर दिन जिले के साहब के लिए वसूली में लगे रहते हैं. भट्ट का बोकारो में घर है. वह जिला बल से नहीं, बल्कि आर्म्ड फोर्स वाले संगठन से है. वसूली के लिए वह जिस मोबाईल का इस्तेमाल करता है, वह 62…..234 है.