Jamshedpur : स्वयंसेवी संस्था ‘युगान्तर भारती’ और नई दिल्ली की संस्था ‘लीगल इनिसिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट (लाईफ)’ के संयुक्त तत्वाधान में उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र में पर्यावरणीय चुनौतियां विषय पर रविवार को कार्यशाला का अंतिम दिन था. कार्यशाला में मुख्य अतिथि जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने कहा कि इस संगोष्ठी में दो दिनों तक अनेक सूचनाएं मिलीं. शोध और बौद्धिकता पर विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य दिए. पर्यावरण संकट को न्यूनतम करने पर भी गंभीर विचार करना होगा. शासन में बैठे लोग, योजनाकार एक समझदारी बनाएं और आम सहमति बनाकर पर्यावरण संकट को कम करने पर विचार करें और उन विचारों को क्रियान्वित करें. पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभाव से जीव-जन्तु, जैव-विविधता, पर्यावरण और स्वास्थ्य, हर जगह अनेकानेक समस्याएं पैदा हो रही हैं. पर्यावरण के विभिन्न आयामों में खराब प्रभाव डालने वाले कामों से बचना चाहिए. सरकारी सिस्टम में भी यह भावना उत्पन्न हो और लोगों का जीवनस्तर बेहतर बनाने पर विचार हो. ऐसे जरूरतों, उपायों को अमल में लाने की आवश्यकता है. अगर बायें हाथ से काम करने पर दायें हाथ को तकलीफ हो तो ऐसे में एक आपसी सामंजस्य बनाने की आवश्यकता है, ताकि किसी एक को भी किसी तरह की दिक्कत, परेशानी न हो. वर्तमान समय विशेषज्ञों का है. शासन को चाहिए कि इन विशेषज्ञों की राय लेकर ही नीति और नीयत को निर्धारित करे, मनोवृति के अंतर को कम करने की आवश्यकता है. 15वें वित्त आयोग में व्यापक वायु गुणवत्ता मद में नगरपालिकाओं को बहुत बड़ी धनराशि दी गई है. उनकी सोच यह है कि खर्च करने से वायु गुणवत्ता में सुधार होगा. आजकल राजनीतिक घोषणापत्र में भी र्प्यावरण का हिस्सा कहीं कोने में छोटा सा हो गया है. आज हमें इन मुद्दों को सामाजिक-राजनीतिक और जनचेतना के रूप में घर-घर तक पहुंचाने की जरूरत है. इस दो दिवसीय संगोष्ठी से एक ठोस संदेश उभरा है कि पर्यावरण संकट एक गंभीर मुद्दा है. खासकर उत्तरी छोटानागपुर में पर्यावरण क्षेत्र में काफी चुनौतियां हैं.
नीतिगत मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है : डॉ प्रदीप
प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता विशिष्ट अतिथि और ‘सिम्फर’ धनबाद के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने की. उन्होंने बताया कि नीतिगत मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें अगर हम कोयले के माध्यम से 10 प्रतिशत भी योगदान करें तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. ‘कोल बेड मिथेन (सीबीएम)’ लॉजिस्टिक और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है. कोल बेड मिथेन, 5 प्रतिशत मिथेन गैस पर्यावरण में उत्सर्जित करता है. अगले 30 वर्षों तक कोयले की मांग कम नहीं होने वाली है, क्योंकि अगर वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल करना पड़ेगा. फिलहाल भारत में 2012 मिलियन टन कोयला आयात करते हैं. यह आयात लगभग 30 प्रतिशत है.
खनन क्षेत्र में मिथेन गैस की वजह से सुरक्षा का संकट बना रहता है : डॉ अजय
सिम्फर के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सिंह ने सीबीएम गैस बनने की प्रक्रिया को समझाते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग में कार्बन डाइऑक्साइड से 21 गुना ज्यादा मिथेन गैस का योगदान रहता है. इसके अलावा खनन क्षेत्र में मिथेन की वजह से सुरक्षा का संकट भी हमेशा बना रहता है. सिम्फर के ही डॉ. डी मोहन्ती ने बताया कि 1901 से 2015 के बीच कोलयरी में कुल 35 धमाके हुए थे, जिसमें से सबसे खतरनाक धमाका ‘धुरी’ कोलियरी में हुआ था, जिसमें 268 खननकर्ताओं की मृत्यु हुई थी. कार्यशाला को सिम्फर के रिदेश अग्रवाल ने भी संबोधित किया.
धनबाद व बोकारो में ओपेन फॉरेस्ट कवर में कमी आई : तन्वी शर्मा
दूसरे तकनीकी सत्र में लाईफ की तन्वी शर्मा ने बताया कि झारखंड में ओपेन फॉरेस्ट कवर बढ़ा है, जबकि धनबाद और बोकारो में यह अपेक्षाकृत कमी आई है. यह कमी इसलिए आई है क्योंकि सड़क, रेल, खनन, उद्योग, ट्रांसमिशन लाइन आदि के लिए घने जंगल को काट दिया जाता है. कटने के बाद वृक्षों की संख्या कम होने पर उन्हें ओपेन फॉरेस्ट कवर कहा जाता है. सरकार ने एक रिविजनल एम्पावर कमेटी बनाया जो लगभग सभी पैचेस को फ्रैगमेंट कर देती है. तृतीय तकनीकी सत्र में लाइफ के राहुल चौधरी ने कानूनी प्रक्रिया में किन-किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है इस पर विस्तार से प्रकाश डाला. लाईफ के ही डॉ. आरके सिंह ने बताया कि उन दस्तावेजों को हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं. संगोष्ठी के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन युगान्तर भारती के सचिव आशीष शीतल ने किया. यह जानकारी युगान्तर भारती के कार्यकारी अध्यक्ष अंशुल शरण ने दी है.